Kids with Marbles
छायाः अक्षय महाजन

एक बात कहूं?
बचपन के दिन अच्छे थे।
कान उमेठे जाने पर दर्द तो होता था
पर वो शरारतों में नहीं उतरता था।
कान तो अब भी उमेठे जाते हैं
पर दर्द ज़रा नहीं होता।
अब शरारत करने से जी घबराता है।

एक बात कहूं?
बचपन के दिन अच्छे थे।
लड़ते थे, रोते थे, रुलाते भी थे
और कुट्टी की उम्र पल भर की होती थी।
लड़ते रोते रुलाते अब भी हैं
पर सुलह के रास्ते अनजाने लगते हैं।
अब कुट्टी करने से जी घबराता है।

एक बात कहूं?
बचपन के दिन अच्छे थे।
गंभीर शब्द पास नहीं फटकता था
और हर पल होता था धींगामस्ती का।
अब चित्त पर संजीदगी का नकाब है
लोग जिसे उम्र का तकाज़ा कहते हैं।
उम्र के यूं बढ़ने से जी घबराता है।