रवि भैया की इस हालिया पोस्ट पर एक चिट्ठाकार रचना की तल्ख टिप्पणी आई।

आप कि ये पोस्ट पढ़ कर सिर्फ ये समझ आया कि जो नये ब्लॉगर आये है आप सब पुराने वरिष्ठ ब्लोग्गेर्स के बीच वह केवल कुडा कबाड़ लिख रहें हैं, इसलिये उनको ना पढा जयाए। क्योंकी जो ब्लॉगर भी ऐसा खाता बना लेगे वह कभी नये ब्लॉगर को नहीं पढ़ेगे या पढ़ सकेगे। फिर वरिष्ठ ब्लॉगर समाज ये क्यो कहता है कि हम Hindi को बढावा दे रहें हैं या हम नये ब्लॉगर का स्वागत करते हैं। और कुडा कबाड़ का फैसला करना किस पंच का अधिकार है? क्या वाद विवाद करना कुडा कबाड़ मे आता है? या कुडा कबाड़ वह हैं जो हमे पसंद नहीं होता है।

रचना, आप भले इस पोस्ट को नये पुराने ब्लॉगर के घिसे पिटे तर्क में घसीट कर अपनी बात कह रही हैं मैंने इस पोस्ट को उसके आशय से जोड़ कर पढ़ने की ही कोशिश की। रवि तकनीक के जानकार हैं और यह उन्हें दो सींग प्रदान नहीं करता जिस के बल पर आप ब्लॉग में भी पृथकतावाद रोंपने और पुराने ब्लॉगरों को पानी पी पी कर कोसने लगें। उनका उद्देश्य रहता है इंटरनेट के प्रयोक्ताओं को सुझाव देना, नेट पर अपने काम को सरल बनाने के लिये, और यही उन्होंने इस पोस्ट में भी किया है। अगर बात समझ नहीं आई तो आगे पढ़ना अच्छा होगा।

aggregator.jpgइस बात से आँखें मूंद लेने से क्या यह असत्य हो जायेगा कि हिन्दी ब्लॉगों को पढ़ना क्रमशः दुश्कर होता जा रहा है? प्रतिदिन प्रकाशित प्रविष्टियों की संख्या के लिहाज़ से शायद कुछ महीनों में किसी मानव के लिये तो संभव न हो पायेगा सारे पोस्ट पढ़ कर टिपिया भी ले, ऐसे में फिल्टर कर अपने काम की पोस्ट निकालना ही होगी और कोई तंत्रांश ही ये मदद दे सकता है। जो पोस्ट आप नहीं पढ़ पा रहे वो कचरा ही तो है, पर ये कचरा क्या हो ये हर पाठक की निजी पसंद नापसंद पर तय होगी। साहित्य में रुचि रखने वाले कथा, कहानियाँ, कवितायें बाँचना चाहेंगे, मेरे जैसे तकनीक और समाचार विचार से जुड़े विषय छाँट कर पढ़ना चाहेंगे, आप कुछ और। जो आपके लिये कचरा पोस्ट हैं, मेरे काम की हो सकती है। इस बात पर राई का पहाड़ बनाने की क्या तुक है?

पिछले दिनों चिट्ठाकार पत्रसूची में क्षणिक चर्चा के उपरांत ही चिट्ठाजगत ने भारी बदलाव कर प्रविष्टियों का वर्गीकरण कर अपना मुखपृष्ठ ही बदल डाला। करीब दो माह पहले ही मैंने नारद की फीड अपने गूगल रीडर खाते से हटा दी थी, हर घंटे दर्जनों पोस्ट पढ़ने का धैर्य अब मुझ में नहीं रहा और ईमानदारी की बात है कि इतने पोस्ट पढ़ना समझदारी भी नहीं, कुछ और काम धाम न हो तो शर्तिया ये किया जा सकता था। तब से मैंने अपने पढ़ने का तरीका बदला और अब चिट्ठाजगत या नारद के मुखपृष्ठ पर दिन में एकाध बार घूम लिया करता था, शीर्षक या अंश देख कर जो जमें वो पोस्ट ही पूरी पढ़ता। पर चिट्ठाजगत ने इसमें एक क्लिक खामख्वाह बढ़ा दिया। जाहिर तौर पर मुझे भी अब ब्लॉगवाणी या नारद का सरल मुखपृष्ठ भाने लगा है।

मैं चिट्ठाजगत में पोस्ट के वर्गीकरण की सुविधा को खराब नहीं कहूंगा, पर ये तभी बढ़िया काम करेगी जब काफी संख्या में पाठक इस काम में मदद करें और विकीपीडीया जैसे उदाहरणों से पता चलता है कि कलेक्टिव विज़डम हमेशा सटीक नहीं होता। चिट्ठाजगत को मैं तकनीकी रूप से श्रेष्ठ मानता ही रहा हूँ पर इसमें सुविधा के हिसाब से कुछ बदलाव भी होने चाहिये। चिट्ठाजगत में अपनी पसंद के चिट्ठों के ताज़ा पोस्ट देखने की सुविधा है, जिसका ज़िक्र रवि भैया ने भी किया, पर ये पर्सनलाईज़ेशन के स्तर तक तभी पहुंचेगा जब टेक्नोराती की तरह लॉग्ड इन होने पर मुखपृष्ठ ही मेरा पृष्ठ बन जावे। श्रेष्ठ एग्रीगेटर बनने के लिये मेहनत काफी लगनी है, क्योंकि मेरी राय में मेरे एग्रीगेटर को मेरे बारे में काफी कुछ जानना होगा। मैं किस तरह के पोस्ट पर क्लिक करता हूँ यह जानकार क्या ये बुद्धिमतापूर्वक मिलते जुलते पोस्ट खोज नहीं ला सकता? पर यह तय करना इतना सरल भी नहीं है। ज़रूरी नहीं कि एक ही ब्लाग के हर पोस्ट मुझे पसंद आयें, भले वो टॉपीकल ब्लॉग हो। हमारी रीडिंग हैबिट बदलती रहती है और एग्रीगेटर द्वारा इसे ही ताड़ना ज़रूरी है। कुछ हद तक ये पोस्ट की टैग द्वारा संभव है, पर होशियार चिट्ठाकार अगर कैटरीना कैफ के चित्रों वाली पोस्ट को ‘हरि स्मरण’ टैग कर दें तो?

ऐसे में तंत्रांश को फोक्सोनॉमी और स्वचालित टैग निर्माण का मिला जुला तरीका इस्तेमाल करना होगा। याहू अपनी ऐसी ही टर्म एक्सट्रैक्शन एपीआई मुहैया कराती है, टैग्यू की ऐसी ही एक सेवा शायद अब बंद है। तीन साल पहले मैंने इस पर पोस्ट लिखी थी और तब यह यूनीकोड के लिये काम न करता था, आज की स्थिति पता नहीं। कह नहीं सकता कि हर पोस्ट से टैग निकाल पाना कितना संभव उपाय है, Noise यानी अवाँछित टैग को कई स्तरों पर हटाना होगा। जो भी हो, स्वचालित रूप से पोस्ट का सबब निकालना आसान ज़रूर हो जायेगा। इसके बाद पाठक के टैग-रीडिंग-पैटर्न से उसकी पसंद या अटेंशन प्रोफाईल का पता लगाना शायद आसान हो जाये।

पाठक के अटेंशन प्रोफाईल से पोस्ट के कीवर्ड का मिलान कर प्रविष्टियों को काफी हद तक सटीक रूप से फिल्टर किया जा सकेगा। और पाठक के पृष्ट पर उसके मतलब की पोस्ट वैसे ही परोसी जा सकेंगी जैसे गूगल या अन्य कंटेक्सट सेंसिटिव विज्ञापन सेवायें आपके पृष्ठ से कीवर्ड खोज कर उपयुक्त विज्ञापन पेश करती हैं। इस तरह का एक स्पेसीफिकेशन ए.पी.एम.एल पहले से ही मौजूद है, इसे ब्लॉगलाईंस जैसे न्यूज़रीडर अपनाने की भी सोच रहे हैं। ए.पी.एम.एल, ओ.पी.एम.एल की तरह ही एक क्षमल प्रारूप है। ओ.पी.एम.एल से ब्लॉगरोल, यानी आपके पसंदीदा चिट्ठों की सूची, बनाई जा सकती है। ए.पी.एम.एल के द्वारा आपके द्वारा देखे गये जाल पृष्ठों, आपके टैग, मनपसंद विडियो, संगीत, कड़ियाँ, आनलाईन शाँपिंग द्वारा खरीदी वस्तुओं, फीड से पढ़ी जा रही प्रविष्टियाँ आदि अनेक चीजों के आधार पर प्रोफाईल निर्मित होगी जो आपकी पसंद नापसंद का परिचायक होगी। ओ.पी.एम.एल पर अधिक जानकारी के साथ निरंतर पर एक विस्तृत लेख लिखने का निश्चय मैं कर चुका हूं, याद दिलाईयेगा।

नारद, ब्लॉगवाणी या चिट्ठाजगत में से जो भी ये सुविधा पहले उपलब्ध कराये, मेरी कंसल्टेंसी फीस देना न भूलियेगा ;), मेरी अमेज़ान विशलिस्ट यहाँ है