अगर आपने ध्यान दिया हो तो विगत दो हफ्तों (शायद उससे भी पहले) से विभिन्न चैनलों पर एक सरकारी विज्ञापन दिखाया जा रहा है। एक चिकन पपेट के द्वारा मुर्गियों की सहसा मौत या बीमार मुर्गियों की जानकारी देने का अनुरोध किया जा रहा है। मुझे तभी खटका था कि अखबारों में तो इस तरह कि कोई खबर नहीं आ रही, फिर भला ऐसे विज्ञापन के सहसा प्रसारण की क्या दरकार हो सकती है। स्पष्टतः पिछली दफा के बर्डफ्लू और फिर चिकन गुनिया जैसी बीमारियों की घटनाओं से सरकार ने सबक सीख लिया है और वो सबक है मीडिया को ऐसी खबरें ही न देना। ऐसी खबरों से पोल्ट्री व्यवसाय को भारी नुकसान होने की संभावना रहती है, शहरी क्षेत्रों में पैकेज्ड व रेडीटूईट उत्पादों की बाजार में बहुतायत है और इसमें चिकन से जुड़े अनेकों उत्पाद हैं, गोदरेज और वेंकीज़ जैसे बड़े नाम इस उद्योगों से जुड़े हैं। ज़ाहिर है, मामला करोड़ों का है।

विगत 20 मार्च को सरकार ने पहली बार चुप्पी तोड़ी और स्वीकारा की भारत में भी बर्ड फ्लू के फैलने की आशंका है। ताज़ा खबरों के मुताबिक पड़ोसी देश बांग्लादेश में एवियन इंफ्लूएंज़ा तेज़ी से फैल रहा है और वहाँ पर कलिंग बड़े तादात में शुरु कर दी गई है। मुझे याद है कि पिछली दफा वेंकीज़ के मालिकों ने मुर्गियों के मरने की खबर दबाने के लिये केवल फार्म मालिकों के हाथ ही गर्म ही नहीं किये, सरकार पर भी दबाव बनाये रखा ताकि इन उत्पादों की बिक्री बंद न हो। वेंकीज़ की कर्ताधर्ता नेशनल एग कोआर्डिनेशन कमिटी की भी अध्यक्षा हैं सो अंडों की बिक्री का भी ख्याल रखा गया। मामला के ठंडे होने पर संजय दत्त और सुनील शैट्टी जैसे नामी सितारों को लेकर करोड़ों के पब्लिसिटी कैंपेन भी कराये गये ताकि तंदूर बुझे नहीं।

यह बात छुपी नहीं कि पैसों और व्यवसाय को बचाये रखने के लालच में जनता के स्वास्थ्य की चिंता न सरकार को रही है और न ही अपने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के बड़े बड़े दावे करने वाली इन बड़ी कंपनियों को। ऐसे में अपना बचाव आप ही करें।