बड़े भोले हैं जी हम!

लोगबाग या तो वाकई भोले हैं या सिर्फ मज़े लेने के लिये पूरी मासूमियत के साथ खबरों पर यकीन कर उसका वाईरल प्रसार किये जाते हैं? क्या उन्हें पता नहीं कि अमिताभ शत्रुध्न विवाद फिलहाल प्रेस में क्यों बोया जा गया या फिर कि अमिताभ अचानक ब्लॉगिंग के मैदान में क्यों उतर पड़े?

छम्मा छम्मा

क्या आप जानते हैं ये किस फिल्म का गाना है? भले तपाक से बोलें या थोड़ा सोच कर, मेरे ख्याल से आप ये बता सकेंगे कि ये अल्का याग्निक का गाया चाईनागेट फिल्म का गीत है। पर इस गीत से जुड़ी एक हालीवुड से जुड़ी कहानी भी है। जी हाँ…ये गीत केवल उर्मिला मातोंडकर पर […]

ऐसा हीरो अपुन को भी मंगता है

निर्विकार भाव से समाचार पढ़ती सलमा सुल्तान याद है? मुझे हमेशा से ये लगता था कि समाचार वाचक भी अजीब हैं, जो भी लिख दे दिया है पढ़े जाते हैं। दूरदर्शन के समय न्यूज़ बुलेटिन था, सैटेलाईट टीवी के ज़माने में टेलीप्रॉम्पटर है। इनेगिने ही हैं जो समाचार प्रस्तुतकर्ता की भी भूमिका अदा करते हैं। […]

फिर वही तलाश

वक्त भी कैसे कैसे रंग दिखाये! कुछ साल पहले तक भारतीय मूल के हॉलीवुड फिल्म निर्माता जगमोहन मूँदड़ा अपनी सी ग्रेड फिल्मों के लिये जाने जाते थे। उनकी फिल्मों की पटकथा में कहानी का कम और सेक्स सीन्स का महत्व ज्यादा रहता था। दर्शक ऐसी फिल्मों में “काम के सीन्स” देखने के लिये ही टिकट […]

बेअदब इश्तहार

एएक्सएन पर एक कार्यक्रम आता है, जिसमें दुनिया भर से नामचीन उत्पादों के टी.वी कमर्शियल दिखाये जाते हैं। कहना न होगा कि इनमें से बहुत सारे विज्ञापन उत्तेजक होते हैं। भारतीय विज्ञापन जगत को देश में भाषा, जाति, राज्य की सेंसिबिलिटी आदि का काफी ध्यान रखना होता है। हमारे यहाँ देर रात केबल पर चाहे […]

लताजी को नहीं पता जी?

व्यक्तिपूजन हमारे यहाँ की खासियत है। मकबूलियत मिल जाने भर की देर है चमचों की कतार लग जाती है। मैंने एक दफा लिखा था राजनीति में अंगद के पाँव की तरह जमें डाईनॉसारी नेताओं की, दीगर बात है कि आडवानी ने बाद में दिसंबर तक तख्त खाली करने की “घोषणा” की। पर समाज के अन्य […]

कौड़ियों से करोड़ों?

जो यह हजरत कह रहे है कुछ कुछ वैसा ही ख्याल मेरा भी है। पर पहले बात इस पेंटिंग, जिसका नाम यकीनन कुछ भी हो सकता था, “महिशासुर” की, यह तैयब मेहता साहब की पेंटिंग है। आपने सुना ही होगा कि यह तिकड़म १ नहीं २ नहीं ३ नहीं पूरे ७ करोड़ रुपये में किसी […]

मंगल पर दंगल

कहने को तो हम एक मुक्त समाज हैं, जहाँ हमें बोलने की मुकम्मल आज़ादी है पर यही आज़ादी बहस के नाम पर रोक टोक लगाने के भी काम आ जाती है। फिल्में तो ऐसे मामलों में ज्यादा प्रकाश में आती हैं। कभी आपत्ति फिल्म के टाईटल पर तो कभी एतराज़ कथानक या किरदार पर। आमिर […]

अब अबला कहाँ?

फिल्म माई वाईफ्स मर्डर में अनिल कपूर के निभाये पात्र के हाथों अपनी पत्नी का कत्ल हो जाता है। यह फिल्म वैसे किसी चर्चा के लायक नहीं हैं, पर स्टार के ग्रेट इंडियन कॉमेडी शो में व्यंग्य किया गया कि जहाँ महिलायें कथानक में गुस्सेल पति के बड़ी आसानी से छूट जाने पर खफा हैं […]

सृजनात्मकता और गुणता नियंत्रण

उत्पाद चाहे कैसा भी हो गुणता यानि क्वालिटी की अपेक्षा तो रहती ही है। भारतीय फिल्मों के बारे में कुछ ऐसा लगता नहीं है। शायद इसलिये कि सफलता के कोई तय फार्मुले नहीं हैं और गुणता नियंत्रण की संकल्पना किसी क्रियेटिव माध्यम में लाना भी दुष्कर है। यह बात भी है कि जब बड़े पैमाने […]

मुगालते में ऐश है

हम भारतीय तो जन्मजात हिपोक्रिट हैं ही। कथनी और करनी का अंतर न हो तो हमारी पहचान ही विलीन हो जाये। कुछ दिनों पहले जब देह मल्लिका के कॉन्स के पहनावे की बात आयी जिसमें कपड़ा कम और जिस्म ज़्यादा था तो मुझे मल्लिका और ऐश्वर्या कि महत्वाकाक्षांओं में कुछ खास फर्क नहीं नज़र आया। […]

वर्ज़न वरण बनाम ईंटरएक्टिव माध्यम

बजाज अपनी एक वाहन श्रेणी के लिए बने टीवी विज्ञापन में रेडियो सम्राट अमीन सायानी की आवाज़ का प्रयोग कर रहा है। दरअसल यह एक ही विज्ञापन है पर इसका प्रर्दशन अदनान सामी के साथिया फ़िल्म के लिए गाए एक चर्चित गीत के प्रारंभिक हिन्दी अंतरे के बाद अन्य भाषाई अंतरों के पृथक कॉम्बीनेशन के रूप […]

बॉलीवुड और चोरी की प्रेरणा

मेहमान का चिट्ठा: हेमन्त विगत दिनों जब बार्बरा टेलर ने सहारा टीवी के धारावाहिक करिश्मा को कॉपीराईट उल्लंघन के आधार पर बंद करवाने की धमकी दी थी तो बॉलीवुड में सपने बुनने के कारखाने को तो जैसे साँप सूँघ गया था। हालाँकि बाद में बार्बरा मान‍ मनोव्वल से बस में कर ली गईं पर इस […]