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ल ही में पढ़ा कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा भविष्य निधि (पीएफ) अंतिम निपटान (फाइनल सेटलमेंट) दावों की अस्वीकृति में विगत 5 वर्षों में 13% से 34% की वृद्धि देखी गई।  हैरत की बात ये है कि ये संख्या सारा सिस्टम आनलाईन होने के बाद बढ़ी है, जब मामला मेनुअल था तब विवरण में विसंगतियों को कोई बताने पर ठीक कर दिया करता था।

केपी शिवरामन अपना अंतिम पीएफ बकाया प्राप्त करने के लिए ईपीएफओ के कोच्चि कार्यालय में नौ साल चक्कर काटते रहे। फरवरी 2024 में उन्होंने हार मानकर ईपीएफ कार्यालय के अंदर ही जहर खाकर आत्महत्या कर ली।

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2013 में सभी भविष्य निधि अंतिम निपटान दावों में से लगभग एक तिहाई को खारिज कर दिया गया, जो वित्त वर्ष 2018 में 13% था। ये अस्वीकृति आधार की जानकारी के अलावा नाम और केवाईसी विवरण में विसंगतियों जैसे मामूली मुद्दों के कारण थे। इस अवधि के दौरान लगभग 24% भविष्य निधि ट्रांसफर दावों को भी अस्वीकार कर दिया गया।

इसी खबर में कई ऐसे लोगों कि दुखद कहानी बताई गई है जो स्थिति की गंभीरता को उजागर करती है। अपोलो टायर्स कंपनी के सेवानिवृत्त कर्मचारी केपी शिवरामन अपना अंतिम पीएफ बकाया प्राप्त करने के लिए ईपीएफओ के कोच्चि कार्यालय में नौ साल चक्कर काटते रहे। फरवरी 2024 में उन्होंने हार मानकर ईपीएफ कार्यालय के अंदर ही जहर खाकर आत्महत्या कर ली। उनके पीएफ रिकॉर्ड और आधिकारिक दस्तावेजों में पहचान विवरण में विसंगति के कारण देय पीएफ राशि अस्वीकार कर दी गई थी।

मुंबई स्थित ईपीएफ सेवानिवृत्त की बेटी, दीप्ति डी, अपने पिता के अंतिम निपटान दावे पर जद्दोजहद कर रही हैं। उनके मामले में ईपीएफओ ऑनलाइन पोर्टल पर निपटान पूर्ण दिखाया गया है, जबकि पीएफ राशि न तो उनकी पासबुक में है, और न ही उनके बैंक खाते में जमा हुई।

पेशेवरों के तौर पर हम अपने खून पसीने की कमाई सरकार पर भरोसा कर उनके पास जमा रखते हैं ताकि हमारे जीवन की संध्या बेफिक्र बीते, पर ये राशि ज़रूरत पड़ने पर हमें मिले ही नहीं तो क्या होगा? हमें ईपीएफओ जैसे संगठनों के भीतर पारदर्शिता और दक्षता की मांग करनी चाहिए, जो लाखों लोगों की वित्तीय भलाई की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आप भी सुनिश्चित कर लें कि आपके पीएफ खाते में सारी जानकारियाँ सही व अद्यतन हैं।