अनुगूंज ६: चमत्कार या संयोग?
वैसे तो मैं सर्टिफाईड नास्तिक हूँ पर मेट्रिक्स देखने के बाद से मैं इसकी थ्योरी का कायल भी हो गया। कई दफा जीवन में ऐसा हो जाता है कि इस बात पर यकीन सा होने लगता है कि जीवन मानो कोई कंप्यूटर सिमुलेशन हो। एम.आई.बी के अंतिम हिस्से में मेरे इस विचार से मिलता जुलता दृश्य था जिसमें पृथ्वी पर से कैमरा ज़ूम आउट करता है और हमारी आकाशगंगा से होते हुए बाहर चलता ही जाता है। जान पड़ता है कि जो हमारे लिए विहंगम है, विराट है वो किसी और के लिए हैं महज़ कंचे। ये रिलेटिविटि मुझे बड़ा हैरान करती है। हाल ही मैं अपनी पुरानी कंपनी की प्रॉविडेन्ट फंड के बारे में दरियाफ्त कर रहा था, रकम के अंक पर नज़र पड़ी, १९४७८। बड़ा जाना पहचाना सा अंक लगा, पर हैरत भी हुई, दो चार अंक का मेल संयोग वश हो ही जाता है, ये तो पाँच अंक थे। दिमाग पर ज़ोर डाला तो याद आया कि ये तो किसी पूर्व नियोक्ता के यहाँ मेरी इम्प्लाई आई.डी थी। हूबहू वही नंबर! कैसा चमत्कार था यह?