अनà¥à¤—ूंज ६: चमतà¥à¤•ार या संयोग?
वैसे तो मैं सरà¥à¤Ÿà¤¿à¤«à¤¾à¤ˆà¤¡ नासà¥à¤¤à¤¿à¤• हूठपर मेटà¥à¤°à¤¿à¤•à¥à¤¸ देखने के बाद से मैं इसकी थà¥à¤¯à¥‹à¤°à¥€ का कायल à¤à¥€ हो गया। कई दफा जीवन में à¤à¤¸à¤¾ हो जाता है कि इस बात पर यकीन सा होने लगता है कि जीवन मानो कोई कंपà¥à¤¯à¥‚टर सिमà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¨ हो। à¤à¤®.आई.बी के अंतिम हिसà¥à¤¸à¥‡ में मेरे इस विचार से मिलता जà¥à¤²à¤¤à¤¾ दृशà¥à¤¯ था जिसमें पृथà¥à¤µà¥€ पर से कैमरा ज़ूम आउट करता है और हमारी आकाशगंगा से होते हà¥à¤ बाहर चलता ही जाता है। जान पड़ता है कि जो हमारे लिठविहंगम है, विराट है वो किसी और के लिठहैं महज़ कंचे। ये रिलेटिविटि मà¥à¤à¥‡ बड़ा हैरान करती है। हाल ही मैं अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ कंपनी की पà¥à¤°à¥‰à¤µà¤¿à¤¡à¥‡à¤¨à¥à¤Ÿ फंड के बारे में दरियाफà¥à¤¤ कर रहा था, रकम के अंक पर नज़र पड़ी, १९४à¥à¥®à¥¤ बड़ा जाना पहचाना सा अंक लगा, पर हैरत à¤à¥€ हà¥à¤ˆ, दो चार अंक का मेल संयोग वश हो ही जाता है, ये तो पाà¤à¤š अंक थे। दिमाग पर ज़ोर डाला तो याद आया कि ये तो किसी पूरà¥à¤µ नियोकà¥à¤¤à¤¾ के यहाठमेरी इमà¥à¤ªà¥à¤²à¤¾à¤ˆ आई.डी थी। हूबहू वही नंबर! कैसा चमतà¥à¤•ार था यह?