बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग में छà¥à¤†à¤›à¥‚तः बद से बदतर à¤à¤²à¤¾?
कथादेश में अविनाश के कॉलम पर अपनी राय लिखी पर समय पर पोसà¥à¤Ÿ करने से चूक गया। चà¥à¤‚कि अब कमेंटियाकर कà¥à¤› लाठनहीं अतः इस पोसà¥à¤Ÿ का ही नाजायज लाठउठाया जा रहा है।
नारद काà¤à¤¡ के बाद से बारंबार चिटà¥à¤ ाजगत में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ की बात उठरही हैं। बेवजह ही सही पर चिंताजनक बात है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बà¥à¤²à¥‰à¤— खà¥à¤²à¥€ खरी बात कहने के ही माधà¥à¤¯à¤® हैं। पर मà¥à¤à¥‡ इन नारों में केवल संघरà¥à¤· का ही पà¥à¤Ÿ दिखता है। नारद के विवाद के समय ये गीकी और साधारण चिटà¥à¤ ाकारों का संघरà¥à¤· था (जो कà¥à¤› कà¥à¤› अब à¤à¥€ जारी है, मसलन “इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मंटो और चà¥à¤—ताई को नहीं पà¥à¤¾ इसलिये अशà¥à¤²à¥€à¤² à¤à¤¾à¤·à¤¾ की पहचान में अकà¥à¤·à¤® हैं”) और à¤à¥œà¤¾à¤¸ के बाद ये साधारण बà¥à¤²à¥‰à¤—ारों और अà¤à¤¿à¤œà¤¾à¤¤à¥à¤¯ बà¥à¤²à¥‰à¤—रों में लटà¥à¤ म लटà¥à¤ बन चà¥à¤•ा है। और इस में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ का मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ कहीं पीछे छूट गया है।
कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ ज़रूर हà¥à¤† है जिससे चिटà¥à¤ ाकारी में à¤à¤• तरह की “छà¥à¤†à¤›à¥‚त की पैठबन पड़ी है, या जातिय महासà¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ बन रही हैं”, पर à¤à¤¾à¤·à¤¾ का मसला कृपया ना उछालें, छूआछूत इस पर तो कतई नहीं है। ये पृथकतावाद है नारद वालों और मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ वालों के बीच। “नारद वाले” कौन हैं ये कोई नहीं जानता पर इनसे “पोसà¥à¤Ÿ मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¤¾” बà¥à¤²à¥‰à¤—ियों को सखà¥à¤¤ परहेज़ है। मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ पर चà¥à¥‡ बà¥à¤²à¥‰à¤—रोल को देख कर आप “जात बाहर” चिटà¥à¤ ाकारों का अंदाज़ा लगा सकते हैं, इस सूची में मेरा चिटà¥à¤ ा तो खैर होने लायक ही नहीं था पर फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾, जीतेंदà¥à¤° और रवि रतलामी का à¤à¥€ नहीं है। और फà¥à¤°à¤¸à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ तो गीकी तमगा à¤à¥€ नहीं लगाते।
तो अविनाश और नीलिमा à¤à¥œà¤¾à¤¸ के समरà¥à¤¥à¤¨ में उठखड़े हà¥à¤¯à¥‡ हैं ये नकारते हà¥à¤¯à¥‡ कि ना ना कर के à¤à¥€ मेरे जैसे अनेक à¤à¥œà¤¾à¤¸ नियमित रूप से पà¥à¤¤à¥‡ हैं। पà¥à¤¨à¥‡ के बाद ज़ाहिर तौर पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ अलग अलग होती है। नीलिमा ने बद और बदतर में बदतर को चà¥à¤¨à¤¨à¤¾ उचित समà¤à¤¾ है, पहले गीकी, और अब कथित अà¤à¤¿à¤œà¤¾à¤¤à¥à¤¯ चिटà¥à¤ ाकारों को मà¥à¤à¤¹ चिà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के लिये। अविनाश शायद à¤à¥œà¤¾à¤¸ से जà¥à¥œà¥‡ लोगों की संखà¥à¤¯à¤¾ से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हैं, à¤à¤¸à¥€ ही संखà¥à¤¯à¤¾ वे मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¤¾ पर देखना चाहते थे, और यहाठà¤à¥€ वे सतà¥à¤¯ नकार रहे हैं कि संखà¥à¤¯à¤¾ में अंतर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¤à¥€ इंटरनेट पर पॉरà¥à¤¨ और इरॉटिक लेखन के बाजार पर तवà¥à¤µà¤œà¥‹à¤¹ नहीं दिया। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥œà¤¾à¤¸ à¤à¤• नया आंदोलन लग रहा है। पर ये आंदोलन à¤à¤¨à¤¡à¥€à¤Ÿà¥€à¤µà¥€ या उन अखबारों में कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं है जिनसे अविनाश या à¤à¥œà¤¾à¤¸ के लेखक जà¥à¥œà¥‡ हैं? अलहदा माधà¥à¤¯à¤®? संपादकीय नियंतà¥à¤°à¤£? अविनाश बà¥à¤²à¥‰à¤— की परिà¤à¤¾à¤·à¤¾ तो ठीकठाक लिखते हैं, “संपादकीय पाश से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿”, तो ये मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ कैसी है? à¤à¥œà¤¾à¤¸ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ होली वाली है तो कà¥à¤¯à¤¾ हम इंटरनेट पर रोज होली मनायें, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ये हमारा घर, आफिस या हमारा समाज नहीं है? और अगर रोज़ मनाना है तो मेरा सवाल परंपरागत मीडिया से जà¥à¥œà¥‡ इन लोगों से ये है कि हम आपके मीडिया में इस परीकà¥à¤·à¤£ को कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना दà¥à¤¹à¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚? आप के अपने आफिशीयल मीडिया, या खरी कहें तो रोजी रोटी के ज़रिये, में ये “साहस” कहाठऔर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ छà¥à¤ªà¤¾ बैठा है? कथनी और करनी में ये अंतर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚?
इसके बावजूद आप à¤à¥œà¤¾à¤¸ पर यशवंत के संपादकीय नियंतà¥à¤°à¤£ के पà¥à¤Ÿ देख सकते हैं, और ये कोई कमी नहीं है बलà¥à¤•ि à¤à¤• जिमà¥à¤®à¥‡à¤µà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤•ाशन का परिचायक है। “नीलिमा को à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ की हेडमिसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤¸ बनाने” के हासà¥à¤¯ में ये इचà¥à¤›à¤¾ छà¥à¤ªà¥€ है कि à¤à¥œà¤¾à¤¸ में कीचड़ कम न हो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ये हमारे मन में छà¥à¤ªà¥‡ शूकर के यदा कदा लोट लगाने में सहायक होता है। ये अजीब जिद है, किसी शà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥‡ सà¥à¤•ूली बचà¥à¤šà¥‡ जैसी जो अपने उपदà¥à¤°à¤µà¥€ साथी को खिड़की के काà¤à¤š तोड़ने को उकसाये सिरà¥à¤« इसलिये कि उससे ये पतà¥à¤¥à¤° उछाला नहीं जाता। इचà¥à¤›à¤¾ यही है तो मैं वाकई हिनà¥à¤¦à¥€ पॉरà¥à¤¨ बà¥à¤²à¥‰à¤— का इंतज़ार करà¥à¤‚गा।
कà¥à¤¯à¤¾ मà¥à¤à¥‡ आप बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को ये बार बार समà¤à¤¾à¤¨à¤¾ होगा कि जहाठकोई औपचारिक नियामक, कोई सेंसर नहीं है या हो नहीं सकता वहाठतो सेलà¥à¤« सेंसरशिप या सà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤®à¤¨ और à¤à¥€ ज़रूरी हो जाता है। इसमें कोई गला घोंटने वाली बात नहीं है, ये वैसी ही बात है कि जब डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤‚गरूम में देर शाम मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ और जाम के साथ खà¥à¤²à¥€ छूट बात हो रही हो तो पतà¥à¤¨à¥€ और बचà¥à¤šà¥‡ को दूसरे कमरे में à¤à¥‡à¤œ दिया जाता है। ये उनके अधिकारों की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की बात है, जैसा किसी ने लिखा था कि “आप की लहराती छड़ी की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ की हद वहाठखतà¥à¤® हो जाती है जहाठमेरी नाक शà¥à¤°à¥ होती है”।
मà¥à¤à¥‡ लगता है कि ये तबका ये सोचता है कि पहले मà¥à¤¹à¤²à¥à¤²à¥‡ और फिर à¤à¥œà¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लेखन से इंटरनेटिय लेखन को “कलà¥à¤šà¤° शॉक” लगा है। ये बात निहायत हासà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤ªà¤¦ है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अवà¥à¤µà¤² तो बà¥à¤²à¤¾à¤—िंग के पहले नेट पर हिनà¥à¤¦à¥€ में परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ लेखन था ही नहीं और दूसरे, कि इंटरनेट पर पॉरà¥à¤¨ तब से है जब से लोग इंटरनेट कà¥à¤¯à¤¾ है ये जानने लगे। इस लेखन से कोई शॉक वॉक किसी को नहीं लगा, जब रिकà¥à¤¶à¥‡ और सबà¥à¤œà¤¼à¥€ वाले हमारी पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ बेपरवाह माठà¤à¥ˆà¤¨ करते हैं तो वे इसे अनà¥à¤¸à¥à¤¨à¤¾ कर चलते जाने की आदि हैं। à¤à¥œà¤¾à¤¸ à¤à¥€ करेगा तो जिसे पà¥à¤¨à¤¾ है पà¥à¥‡à¤—ा जिसे अनसà¥à¤¨à¤¾ करना है करेगा। पर जिस तरह हम अपनी बहन और पतà¥à¤¨à¥€ को कलारी के नज़दीक से न गà¥à¤œà¤°à¤¨à¥‡ की सलाह देते हैं वही सलाह हम à¤à¥œà¤¾à¤¸ के मामले में à¤à¥€ देने लगेंगे। इतनी सी बात है। यूटà¥à¤¯à¥‚ब गà¥à¤°à¤¾à¤«à¤¿à¤• विडियो संपादित कर देता, हटा देता है, मेटाकैफे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सॉफà¥à¤Ÿ पॉरà¥à¤¨ के सà¥à¤¤à¤° तक जाने देता है। अलग अलग मंच है, अलग अलग आचारनीति। कà¥à¤¯à¤¾ यूटà¥à¤¯à¥‚ब पर आजादी का हनन हो रहा है? ये साबित करना चाहते हैं कि ये नया आंदोलन लाये हैं, पर मेरा मानना है कि ये कोई नीयो-बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग नहीं है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हिनà¥à¤¦à¥€ बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग ही नीयो है। अà¤à¥€ तो ये दिशायें तलाश रहा है, फैल सिकà¥à¥œ कर आकार ले रहा है तो किस पैमाने पर माप रहे हैं आप इसे? जैसे जैसे लेखन बॠरहा है इसकी छटा à¤à¥€ निखर रही है। किस लेखन को कैसा पाठक मिले ये आप कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ तय करते हैं? नारद नहीं दिखाता à¤à¥œà¤¾à¤¸ की पोसà¥à¤Ÿ, न दिखाये, जिसे पà¥à¤¨à¤¾ होगा सीधे बà¥à¤²à¥‰à¤— पर पॠलेगा। आप घर में मà¥à¤œà¤°à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ देखना चाहते हैं, मà¥à¤œà¤°à¤¾ जहाठहोता है वहाठजाकर देखें। कौन रोकता है?
अपà¥à¤°à¥‡à¤² 2004 में लिखी à¤à¤• पोसà¥à¤Ÿ में मà¥à¤à¥‡ “साले” शबà¥à¤¦ लिखने में à¤à¥€ संकोच हो रहा था। आज शायद अपशबà¥à¤¦ à¤à¥€ बेखटके लिख सकूं। ये महज़ तीन साल के विकास(?) का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤«à¤² है। अविनाश को जो à¤à¤¾à¤·à¤¾ होली वाली लगी वो à¤à¤• समय पर मà¥à¤à¥‡ अनूप शà¥à¤•à¥à¤² के बà¥à¤²à¥‰à¤— की लगी थी जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤ की थी अपने चिटà¥à¤ े की। यह और कà¥à¤› नहीं इवालà¥à¤µà¤¿à¤‚ग चिटà¥à¤ ाकारी का सà¥à¤µà¤°à¥‚प है। जब मामला ही विचाराधीन है तो अà¤à¥€ इस पर फैसले कैसे सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¥‡ जा सकते हैं?
फ़ैसले सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ का सवाल ही नहीं है, पर आपकी गाथा सà¥à¤‚दर है, सà¥à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ है। हम तो बस कह रहे हैं कि इस नई बनती दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में घर और बाहर का विà¤à¥‡à¤¦ न करें। न नारद ज़रूरी है, न बà¥â€à¤²à¥‰à¤—वाणी। ज़रूरी हमेशा वो बात होगी, जो कही जाà¤à¤—ी। आपकी à¤à¥€, हमारी à¤à¥€ और उनकी à¤à¥€, जो दरअसल बेआवाज़ हैं। हां, लेकिन आपकी वो गà¥à¤œà¤¼à¤¾à¤°à¤¿à¤¶ या अपील या कहें दलील बेकार-बेमतलब है, जब आप कहते हैं कि आप जहां पेशेवर तौर पर जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ हैं, वहां इस तरह की मांग या इस तरह की à¤à¤¾à¤·à¤¾ या इस तरह की अà¤à¤¿à¤µà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की मà¥à¤¹à¤¿à¤® कà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं चलाते। नहीं चलाते इसलिठकà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚कि पहले à¤à¥€ ये मैं साफ कर चà¥à¤•ा हूं कि अà¤à¤¿à¤µà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के तमाम पारंपरिक साधनों में जिस तरह के पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ जड़ हालात हैं, उसमें बà¥â€à¤²à¥‰à¤—िंग à¤à¤• हथियार की तरह है, जिसका इसà¥â€à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² वही कर रहा है, जिसके हाथ लग रहा है। हां, मैं आपका लिंक अà¤à¥€ डाल रहा हूं। आप à¤à¤²à¥‡ नामोलà¥â€à¤²à¥‡à¤– में à¤à¥€ नीलिमा का लिंक डालने के साथ हमारा लिंक डालना à¤à¥‚ल जाà¤à¤‚।
बहà¥à¤¤ खूब देबाशीष जी, मज़ा आया। मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ बिलà¥à¤•à¥à¤² साफ है।
वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त तौर पर मेरा मानना है कि à¤à¤¡à¤¾à¤¸ निकालने का हक सबको है मगर à¤à¤¾à¤·à¤¾ का à¤à¤¦à¥‡à¤¸…उस पर तो जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ से सोचना चाहिà¤à¥¤ यह मानना संकà¥à¤šà¤¿à¤¤ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ दरà¥à¤¶à¤¾à¤à¤—ा कि à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ तो à¤à¤¦à¥‡à¤¸ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में ही उजागर होती है। à¤à¤¸à¤¾ नहीं है। à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ के बावजूद आपकी वाणी पर बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ का अंकà¥à¤¶ लगा है इसीलिठआपने अपना मंच बनाया है। खामखà¥à¤µà¤¾à¤¹ साहसी कहलाने के लिठमà¥à¤‚हजोरी या à¤à¤¦à¥‡à¤¸ की शरण लेने में कोई तà¥à¤• नहीं। फिलहाल तो हिनà¥à¤¦à¥€ में à¤à¤¦à¥‡à¤¸ के समरà¥à¤¥à¤¨ या विरोध में किसी आंदोलन की गà¥à¤œà¤¾à¤‡à¤¶ नहीं है, आवशà¥à¤¯à¤•ता à¤à¥€ नहीं।
आपके विचार पसंद आà¤. धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦!
आपने कà¥à¤šà¥à¤› कायदे की बात की है. बडी जà¥à¤¤à¤® पैजार हो रही है. शायद कà¥à¤› फ़रà¥à¤• आये.
इस लेख में आपने कई महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ उठाये है. इन पर अà¤à¥€ काफी दिनों तक विचार विमरà¥à¤¶ चलेगा. उमà¥à¤®à¥€à¤¦ है कि यह चरà¥à¤šà¤¾ सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ तरीके से आगे बढेगी.
हां, हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ाजगत के 1000 चिटà¥à¤ ों (जिनके पीछे मà¥à¤¶à¥à¤•िल से 250 चिटà¥à¤ ाकर हैं) में दो तीन धà¥à¤°à¥à¤µà¥€à¤•रण दिख रहे है. यह अचà¥à¤›à¥€ बात नहीं है — शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ जे सी फिलिप
आज का विचार: हिनà¥à¤¦à¥€ ही हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ को à¤à¤• सूतà¥à¤° में पिरो सकती है.
इस विषय में मेरा और आपका योगदान कितना है??
बहà¥à¤¤ सीधी सी बात है, अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ का तो सिरà¥à¥ž नाम पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जा रहा है, à¤à¤¸à¥‡ लोग सिरà¥à¥ž और सिरà¥à¥ž बà¥à¤²à¥‰à¤—सà¥à¤ªà¤¾à¤Ÿ, वरà¥à¤¡à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ डाट काम और अपनी होसà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग कमà¥à¤ªà¤¨à¥€ के कानà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤Ÿ को दोबारा पढकर देखे। मà¥à¤à¥‡ पूरा यकीन है उसको पढने के बाद (और समà¤à¤¨à¥‡ के बाद) इन सà¤à¥€ साहबान को पूरी समठआ जाà¤à¤—ी। यदि नही आयेगी तो समà¥à¤¬à¤‚धित वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ उनसे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ निबटेगी। हमे कà¥à¤¯à¤¾!
हमे सिरà¥à¥ž चिनà¥à¤¤à¤¾ उस बात की है, à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार (जो अà¤à¥€ à¤à¥€ तकनीकी रà¥à¤ª से पैदल है) कंही à¤à¤¸à¥‡ हिनà¥à¤¦à¥€ बà¥à¤²à¥‰à¤— देखकर सारे हिनà¥à¤¦à¥€ बà¥à¤²à¥‰à¤—à¥à¤¸ पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¨à¥à¤§ की मांग ना कर दें। वैसे à¤à¥€ सरकारों के फरमान à¤à¤¸à¥‡ ही होते है।
देबू बाबू, जीतू जी को समà¤à¤¾à¤‡à¤à¥¤ इतिहास के अनगिनत पड़ावों पर बहाल की गयी पाबंदियों का हशà¥à¤° कà¥â€à¤¯à¤¾ हà¥à¤†à¥¤ अà¤à¤¿à¤µà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के ये तकनीकी सà¥à¤°à¥‹à¤¤, जिनकी चरà¥à¤šà¤¾ जीतू जी कर रहे हैं, अगर à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¥‚ से सबको बà¥à¤¹à¤¾à¤° à¤à¥€ देंगे- तो कà¥â€à¤¯à¤¾ à¤à¤¸à¥€ अà¤à¤¿à¤µà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को कोई दूसरी ज़मीन नहीं मिलेगी। à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार को छोड़िà¤à¥¤ ये मूरख मन का बयान आपने दिया है। सरकारी दमन की लंबी फेहरिसà¥â€à¤¤ के बावजूद सरकार के खिलाफ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‹à¤§ हर समय जारी रहता है। आप जैसे लोग सरकारी मोहताज के छाते में लिखते रहें- जिनà¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ कोई छाता नहीं चाहिà¤, वे à¤à¥€ लिखते रहेंगे। à¤à¤¾à¤·à¤¾ में तमीज और तरतीब आदमी को खà¥à¤¦ सीखने दीजिà¤à¥¤ और यक़ीन मानिà¤, वही à¤à¤¾à¤·à¤¾ और कहन बचेगी, जो कायदे से कही जाà¤à¤—ी। सजावट से कही जाà¤à¤—ी। लय में कही जाà¤à¤—ी।
à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर नियंतà¥à¤°à¤£ जरूरी है….वरà¥à¤¨à¤¾ à¤à¤¸à¤¾ ना हो कि अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ के इस खेल में ,खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलनें लगे और सà¤à¥€ उसी à¤à¥œà¤¾à¤¸à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का इसà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤² शà¥à¤°à¥‚ कर दे।
जीतू जी ने परंपरागत हडà¥à¤•ौआ वाला रà¥à¤– यहां à¤à¥€ अपनाया है -उनसे यही अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¥€ था ! देवाशीष की बातों में कई मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ उठे हैं उनपर बहस बाद तक जारी रह सकती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की आजादी के सही मायनों की खोज लगातार होती रहेगी !
यह लेख देख कर थोड़ा सकà¥à¤¨ मिला. साधूवाद.
अविनाश बाबू,
वैसे तो मै किसी बहस मे पड़ना नही चाहता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आप बहस मे मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ से उठकर, वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त सà¥à¤¤à¤° पर उतर आते है। सिरà¥à¥ž à¤à¤• उदाहरण देना चाहता हूà¤à¥¤
हिनà¥à¤¦à¥€ नà¥à¤¯à¥‚ज चैनल हमारे देश में खबरों का सà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤ हà¥à¤† करते थे, टीआरपी, अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿, जागरà¥à¤•ता और आम आदमी के समाचारों के नाम पर आजकल कà¥à¤¯à¤¾ परोसा जा रहा है उससे कà¥à¤› छिपा नही। टीआरपी की अंधी दौड़ ने चैनलो को (अपराध करके) खबरें बनाने के लिठमजबूर कर दिया है। चैनलो ने सैलà¥à¥ž सैंसरशिप की बात की, तब à¤à¥€ बात बनी नही। अब सरकार जलà¥à¤¦à¥€ ही इस पर à¤à¤• बिल लाने वाली है, जिसमे à¤à¤¾à¤·à¤¾ और कनà¥à¤Ÿà¥‡à¤¨à¥à¤Ÿ की मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ रखने की बात होगी। इससे कà¥à¤› घटिया चैनलों के साथ साथ कà¥à¤› अचà¥à¤›à¥‡ चैनल à¤à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होंगे। आम आदमी तो अब तक नà¥à¤¯à¥‚ज चैनल देखने से वैसे ही तौबा कर चà¥à¤•ा है। बस वही हाल हिनà¥à¤¦à¥€ बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का ना हो।
बाकी à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ मे ही सब कà¥à¤› लिखा है। हम और आप सिरà¥à¥ž à¤à¤¾à¤·à¤¾ की मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बनाठरख सकते है, वो à¤à¥€ यदि आप नही चाहते तो जो मरà¥à¤œà¥€ मे आठकरिà¤à¥¤
इस लेख को मैं आपका अब तक का सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ लेख कहूंगा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कà¥à¤› लोग जो अपने पेशे से अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•,पतà¥à¤°à¤•ार और संवेदनशील लेखक है उनको शायद नये बà¥à¤²à¥‰à¤—रों का पà¥à¤°à¤¤à¥‹à¤°à¥‹à¤§ करने का साहस ही नहीं है ये बात आपने सच कही कि आप जो बà¥à¤²à¥‰à¤— पर लिखते है वो अपने जीवन में à¤à¥€ उतार पायें तो हम आपकी लेखनी को à¤à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ समà¤à¥‡à¤‚गें लेकिन उनको डर है कि अगर वो अचà¥à¤›à¤¾ लिखेंगें तो उनके पà¥à¤°à¤¶à¤‚सको की संखà¥à¤¯à¤¾ में गिरावट आयेगी जो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पसंद नहीं.
बहà¥à¤¤ सधी हà¥à¤ˆ बात कही आपने, विचार के बाद हम यही सकते हैं कि सहमत!
साहितà¥à¤¯ में à¤à¤¦à¥‡à¤¸ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— से सहमत होते हà¥à¤, जीतू à¤à¤¾à¤ˆ की इस बात से à¤à¥€ मैं सहमत होना चाहूंगा कि कहीं à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤¦à¥‡à¤¸ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के अधिकाधिक पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— के आधार पर ही कहीं सारे बà¥à¤²à¥‰à¤—मणà¥à¤¡à¤² पर पाबंदी की नौबत ना आ जाà¤!
कल की बैठक में सवाल सीधा दागा था यशवंत पर – “कà¥â€à¤¯à¤¾ यार इरादे कà¥â€à¤¯à¤¾ हैं, योजना कà¥â€à¤¯à¤¾ है, पता à¤à¥€ है कि आप धà¥à¤°à¥€ बन रहे हो और यह à¤à¥€ कि नारद विरोधी रवैया तà¥â€à¤¯à¤¾à¤—ों मितà¥à¤° , नारद अब विरोध करने लायक चीज नहीं है, संरकà¥à¤·à¤£ लायक चीज हो गई है (à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• मानà¥â€à¤¯à¥‚मेंट टाईप)”. यशवंत की राय साफ थी कि à¤à¤ˆ लरà¥à¤¨à¤¿à¤‚ग पà¥à¤°à¥‹à¤¸à¥‡à¤¸ में है और ये à¤à¥€ कहा कि आप न जाने कà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚ पढते हैं हमारे आरà¥à¤—ेट पाठक आप नहीं है वरन वे कसà¥â€à¤¬à¤¾à¤ˆ पतà¥à¤°à¤•ार हैं जिनमें à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ à¤à¤°à¥€ हà¥à¤ˆ है- शà¥à¤šà¤¿à¤¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¦à¥€ जहॉं चाहें जाà¤à¤‚। इस आतà¥â€à¤®à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¸ व साफगोई के बाद इतना तो मानना ही होगा कि à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर उनकी समठके ठीक ठाक होने के पेशेवर आधार हैं, उनमें से अधिकांश पतà¥à¤°à¤•ार हैं तथा à¤à¤¾à¤·à¤¾ से उनका नाता वैसे ही है जैसे कि बढई का रंदे से होता है।
वैसे किसी नठबà¥â€à¤²à¥‰à¤—र मितà¥à¤° ने कहा, “à¤à¥œà¤¾à¤¸ और नारद में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अनà¥à¤¤à¤° नहीं है. दोनों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ अलग है लेकिन असहमति के लिठदोनों के पास कोई जगह नहीं है. नारद वाले माअ à¤à¤¸à¥‡ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— नहीं करते हैं, à¤à¤¡à¤¾à¤¸ वाले करते हैं. इसके सिवा दोनों 1 जैसे हैं, जिसकी बात उनको अचà¥à¤›à¥€ नहीं लगती वो विरोधी है. à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ वालों के लिठवो नारद वाला है, और नारद वालों के लिठवो à¤à¤¡à¤¾à¤¸ वाला।” इसलिठसाफ है कि à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ और उससे असहमतियों दोनों का अपना लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• सà¥â€à¤ªà¥‡à¤¸ है जिसे वे इसà¥â€à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² कर रहे हैं। à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ के बाद राहà¥à¤² शिषà¥â€à¤Ÿ दिखने लगे :))
वैसे सà¥â€à¤¤à¥à¤°à¥€à¤µà¤¾à¤¦à¥€ बà¥â€à¤²à¥‰à¤—िंग समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ ने à¤à¤¡à¤¼à¤¾à¤¸ और बाकी लोगों की à¤à¤¾à¤·à¤¾ का विरोध किया तो है – शà¥à¤šà¤¿à¤¤à¤¾ के आगà¥à¤°à¤¹ में नहीं पर सà¥â€à¤¤à¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤°à¥‹à¤§à¥€ तेवर के लिà¤à¥¤
पर जाहिर है कि बहस जारी रहने वाली है।
मजा आ गया आपके विचार पढ़कर। सवाल वही है कि आखिर कब तक हम थोथे आरà¥à¤¦à¤¶à¥‹à¤‚ को अपने ऊपर ओढ़ते रहेंगे। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हम दूसरे के पीछे-पीछे चलते रहना चाहते हैं।
जीतू जी, आप बात ही नहीं समठरहे, तो कितना समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ जाà¤à¥¤
à¤à¤• बार फिर से वही बहस यहां होती दिख रही है। जब तक कोई सतà¥à¤¯ कह रहा है, उसकी अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ मिलनी चाहिà¤à¥¤ यदि उसके सतà¥à¤¯ कहने का तरीका अपà¥à¤°à¤¿à¤¯ या अशोà¤à¤¨à¥€à¤¯ हो तो यह सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वाले पर निरà¥à¤à¤° करता है कि वह उस अपà¥à¤°à¤¿à¤¯ सतà¥à¤¯ को सà¥à¤¨-समà¤à¤•र गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर ले, या फिर नजरंदाज कर दे।
लेकिन यह बात हर किसी को याद रखनी होगी कि अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का चाहे जो à¤à¥€ माधà¥à¤¯à¤® चà¥à¤¨à¤¾ जाà¤, उसकी सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ उस देश के संविधान और क़ानूनों के अधà¥à¤¯à¤§à¥€à¤¨ ही होती है। यदि किसी की अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से देश के क़ानूनों का उलà¥à¤²à¤‚घन होगा, तो उसे नतीजे à¤à¥à¤—तने के लिठà¤à¥€ तैयार रहना चाहिà¤, चाहे वह कोई पतà¥à¤°à¤•ार हो, कलाकार हो, बà¥à¤²à¥‰à¤—र हो या कोई अनà¥à¤¯ नागरिक।
अपनी बात अचà¥à¤›à¥€ तरह से कह ली। यशवंतजी ने कल बताया कि वो अपने ‘टारगेट पाठकों’ के लिये लिखते है। दूर-दराज के इलाके के पतà¥à¤°à¤•ार उनके ‘टारगेट पाठक’ हैं। अविनाश से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बात नहीं हो पायी लेकिन जितनी हो पायी उसमें मैंने कहा- मोहलà¥à¤²à¥‡ में बहस के चकà¥à¤•र में अकà¥à¤¸à¤° मामला खिच़ड़ी हो जाता है। समठनहीं आता। उनका कहना था-जो खिच़ड़ी लगता है उसे आप इगà¥à¤¨à¥‹à¤° कर दीजिये। इस सहज बात के बाद कà¥à¤› और कहने को रह नहीं जाता।
मà¥à¤à¥‡ अचà¥à¤›à¥€ तरह याद है कि जब तà¥à¤®à¤¨à¥‡ कमेंट किया था मेरे बà¥à¤²à¤¾à¤— की à¤à¤¾à¤·à¤¾ पर फिर उसके बाद मैंने पोसà¥à¤Ÿ लिखी थी तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ खिंचाई करते हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ फिर तà¥à¤®à¤¨à¥‡ कमेंट किया था जिसमें अपने कमेंट के लिये अफसोस जाहिर किया था। तà¥à¤®à¤•ो खराब लगा यह सोचकर मैंने तà¥à¤®à¤•ो मेल लिखी। फोन किया। ताकि अपना अफसोस जाहिर कर सकूं अपनी पोसà¥à¤Ÿ के लिये।
तो यह वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के अपनी समठके ऊपर है कि वो किसी चीज को कैसे लेना चाहते है। अपने विचार के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° तरà¥à¤• à¤à¥€ गढ़ लिये जाते हैं। तरà¥à¤• शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की आउटसोरà¥à¤¸à¤¿à¤‚ग à¤à¥€ होती है à¤à¤¾à¤ˆ!
वैसे ये à¤à¥€ à¤à¤• रंग है। हर तरह के रंग आ रहे हैं। बà¥à¤²à¤¾à¤—िंग रंग-बिरंगी हो रही है। सही है। लगे रहो। बाकी फिर कà¤à¥€!
बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लेख। बाकी साधारण सा नियम है कि:
सतà¥à¤¯à¤‚ बà¥à¤°à¥‚यात पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤‚ बà¥à¤°à¥‚यात, मा बà¥à¤°à¥‚यात सतà¥à¤¯à¤‚ अपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤®à¥¤
bhayi…maine aaj syber cafe me baith kar ye past n comments padhe. mera jo computer tha, uspe devashish ke blog ke shabd agdam-bagdam dikhte hai.
Debu ji, aapko baaten prabhawshali hain lekin hawa-hawayi hain…. aap ki sochdaani ki apni simaayen hain. lekin debate start karne ke liye saadhuwaad. es post n comments ko mai bhadas pe daalen jaa reha hu. jidhar baitha hu udhar hindi type karne ke pryas me ek-do ghante kharch karne ki bajay maine roman mi likhna jyaada uchit samjha. ummid hai aap maaf karenge aur blogs ke baare me essi tarah likhte rahenge. mera propsal hai ki aap ek saptahik column apne blog pe shuru kariye, blogo me andarkhane chal rahi dhamachaukdi ke upar…
thanks n regards
yashwant