संदेशों में दकियानूसी
अपना मà¥à¤²à¥à¤• à¤à¥€ गजब है। सवा १०० करोड़ लोग उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो गये पर सेकà¥à¤¸ पर खà¥à¤²à¥€ बात के नाम पर महेश à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ के मलिन मन की उपज के सिवा कà¥à¤› à¤à¥€ खà¥à¤²à¤¾ नहीं। à¤à¤¾à¤°à¤¤ किसी अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ खेल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता में कोई रिकारà¥à¤¡ à¤à¤²à¥‡ न तोड़ पाया हो पर à¤à¤¡à¥à¤¸ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में सतत उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ की राह पर अगà¥à¤°à¤¸à¤° है। सरकारी बजट बनते हैं तो करोड़ो की रकम रोग का फैलाव रोकने और जन जागृति लाने के लिये तय होती है पर न जाने किन उदरों में समा जाती है। जब यà¥à¤µà¤¾à¤“ं में खà¥à¤²à¥à¤²à¤® खà¥à¤²à¥à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¥‡à¤® के पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‹à¤—िक इज़हार की बातें सà¥à¤¨à¤¤à¤¾ देखता हà¥à¤ तो लगता है कि या तो इन तक संदेश की पहà¥à¤à¤š तो है ही नहीं या फिर संवाद का तरीका ही à¤à¤¸à¤¾ है कि कान पर जूं नहीं रेंगती।
गत कà¥à¤› सालों तक शहर देहातों तक सरकार कहती थी “à¤à¤¡à¥à¤¸à¤ƒ जानकारी ही बचाव है”। बà¥à¤¿à¤¯à¤¾ है, जानकारी होनी चाहिये। पर कौन सी जानकारी? “कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ददà¥à¤¦à¤¾? à¤à¤¡à¥à¤¸ से कैसे बचोगे?”, “जानकारी से à¤à¤ˆà¤¯à¤¾, और कैसे?” गोया जानकारी न हो गयी, à¤à¤¸.पी.जी के कमांडो हो गये। मिरà¥à¤œà¤¼à¤¾ बोले, “अरे मियां! अहमक बातें करते हो। सारा पाठà¤à¤• बार में थोड़े ही पà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है। पहले साल कहा, जानकारी होनी चाहिये। फिर दूसरे साल कहेंगे, थोड़ी और जानकारी होनी चाहिये। जब पाà¤à¤šà¥‡à¤• साल में यह पाठदोहरा कर बचà¥à¤šà¥‡ जान जायेंगे कि à¤à¤ˆ हाà¤, जानकारी होनी चाहिये तब पैर रखेंगे अगले पायदान पर”। सरकारी सोच वाकई à¤à¤¸à¥€ ही लगती है। आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ होता है कि जिन à¤à¤œà¥‡à¤‚सियों को काम सोंपा जाता है उनकी कैसी समठहै मास कमà¥à¤¯à¥‚निकेशन की। मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ पर सीधे वार करने की बजाय अपनी डफली पर वही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ राग। अरे सीधे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बताते कि à¤à¤ˆà¤¯à¥‡ अनजान लोगों से सेकà¥à¤¸ संबंध रखने से बचो, खास तौर पर जिसà¥à¤® की मंडियों से परहेज़ रखो। और अगर चमड़ी मोटी है और बाज़ नहीं आ सकते अपनी आदतों से तो काà¤à¤¡à¥‹à¤® का सही इसà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤² करो। असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ में, होशियार रहो कि “नये डिसà¥à¤ªà¥‹à¤œà¥‡à¤¬à¤²” या अचà¥à¤›à¥€ तरह उबले सिरिंज ही छà¥à¤à¤‚ शरीर को। यदि रोग लग गया है तो दूसरो को संकà¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ करने या बचà¥à¤šà¥‡ को जनà¥à¤® देने की न सोचो।
बहरहाल, पिछले साल से सरकारी à¤à¥‹à¤‚पू पर राग बदला है। बà¥à¥‡ अचà¥à¤›à¥‡ और दो टूक बात करने वाले कà¥à¤› सीरियलों की बात मैं कर चà¥à¤•ा हूà¤, यह बात अलग हैं कि अब ये कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® पà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤® टाईम से नदारद हैं। निःसंदेह संदेश कà¥à¤› सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ होना शà¥à¤°à¥ हà¥à¤¯à¥‡ हैं। इसके अलावा गरà¥à¤à¤ªà¤¾à¤¤ और गà¥à¤ªà¥à¤¤ रोगों पर à¤à¥€ बात सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से रखी जा रही है। जिस दकियानूसी की सेंसर बोरà¥à¤¡ में ज़रूरत है वह सरकारी संदेशों में न ही आये तो अचà¥à¤›à¤¾à¥¤
आपका लेख ही सरकारी संदेश की जगह पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ हो जाये तो काम बन जायेगा। काफी असरकारक à¤à¤¾à¤·à¤¾ है।