मैंने कवि बनने की अपनी नाकाम कोशिशों का ज़िकà¥à¤° इस चिटà¥à¤ े पर कà¤à¥€ किया था। उन दिनों गज़ल लिखने पर à¤à¥€ अपने राम ने हाथ हाजमाया, बाकायदा तखलà¥à¤²à¥à¤¸ रखते थे साहब, बेबाक। तो उनà¥à¤¹à¥€ दिनों की à¤à¤• गज़ल यहां पेश है। अगर उरà¥à¤¦à¥ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में कोई ख़ता हà¥à¤ˆ हो तो मà¥à¤†à¤«à¥€ चाहà¥à¤à¤—ा। इस सफ़र […]