भैया बोलके कचरा नई करने का!

कई बार चित्र वाकई वो कहानी बयां कर जाते हैं जिसको हजार शब्दों की दरकार नहीं होती. ईमेल फॉर्वर्ड से प्राप्त 🙂

सुरक्षा का आभास?

मेटाकैफे पर ये शानदार विडियो देखा, भारत में ही बना प्रतीत होता है। हाथी पर बैठे वन्यजीवन टूरिस्ट सुरक्षित दूरी से बाघ देखने आये हैं। पर क्या इतनी दूरी सुरक्षित दूरी थी? मेटाकैफे की साईट पर एक पाठक ने संजीदा टिप्पणी की, “भला हो महावत के पास बाँस की छोटी सी डंडी थी जिसकी मदद […]

मैन विथ अ ब्रीफकेस

आफिस जाते वक्त वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (डब्ल्यूटीसी) के पास बने लिबर्टी पार्क से गुजरता हूँ और वहाँ हमेशा एक सूटेड बूटेड साहब बैंच पर बैठे मिलते हैं, अपने ब्रीफकेस में कुछ खोजते हुये। लोग उनके साथ बैठ कर, गले में हाथ डालकर या बाल सहलाते हुये फोटो खिंचवाते हैं। ये साहब यहाँ बरसों से जमे […]

गया गया गया

नेटभ्रमण के दौरान आज भाषा प्रयोग के विषय में कुछ मज़ेदार बातें पता चली, शायद आपको पता हो। “होमोनिम्स” ऐसे शब्द होते हैं जिनका उच्चारण और हिज्जे समान हों पर अर्थ अलाहदा होते हों। अंग्रेज़ी में तो ऐसे शब्दों की भरमार है जैसे कि bank जो कि नदी के किनारे, बिजली के स्विच की कतार […]

काव्यालय ~ इस सफ़र में

मैंने कवि बनने की अपनी नाकाम कोशिशों का ज़िक्र इस चिट्ठे पर कभी किया था। उन दिनों गज़ल लिखने पर भी अपने राम ने हाथ हाजमाया, बाकायदा तखल्लुस रखते थे साहब, बेबाक। तो उन्ही दिनों की एक गज़ल यहां पेश है। अगर उर्दु के प्रयोग में कोई ख़ता हुई हो तो मुआफी चाहुँगा। इस सफ़र […]

काव्यालयः बनकर याद मिलो

कॉलेज के दिनों में हर कोई कवि बन जाता है, कम से कम कवि जैसा महसूस तो करने लगता है। जगजीत के गज़लों के बोलों के मायने समझ आने लगते हैं और कुछ मेरे जैसे लोग अपनी डायरी में मनपसंद वाकये और पंक्तियाँ नोट करने लगते हैं। कल अपने उसी खजाने पर नज़र गयी तो […]