दवा नहीं बैसाखी
मैं तब इंजीनियरिंग के पà¥à¤°à¤¥à¤® वरà¥à¤· में था जब मंडल कमीशन की अनà¥à¤¶à¤‚सा के खिलाफ छातà¥à¤° आंदोलन जोर पकड़ रहे थे। मà¥à¤à¥‡ याद है, तब सीनियरों ने पकड़ पकड़ हम सब को इकटà¥à¤ ा किया था और फिर à¤à¥‡à¥œà¥‹à¤‚ की नाई चल पड़े थे हम “पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨” करने। दोपहर जब पà¥à¤²à¤¿à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾ लाठियाठचलीं तो जिसको जो रासà¥à¤¤à¤¾ मिला बस सरपट à¤à¤¾à¤—े। शाम तलक फिर आ जà¥à¤Ÿà¥‡, सà¥à¤µà¥‡à¤šà¥à¤›à¤¾ से गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤°à¥€ दी, अंधेरा होने तक थाने के बाहर मैदान में बैठे रहे और फिर न जाने कब हॉसà¥à¤Ÿà¤² लौट आये। बरसों बाद मंडल का जिनà¥à¤¨ बोतल से बाहर निकाला गया है। जो काम तब सीनीयरों ने किया अखबार बोल रहे हैं कि इस बार इवेनà¥à¤Ÿ मैनेजमेंट कंपनियाठकर रही थीं, डॉकà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ की मà¥à¤¹à¥€à¤® को “डॉकà¥à¤Ÿà¤°” कर के। मीडिया को समठनहीं आ रहा कि कशà¥à¤®à¥€à¤°, फà¥à¤Ÿà¤¬à¥‰à¤²,शेयर बाज़ार, कà¥à¤°à¤¿à¤•ेट और आरकà¥à¤·à¤£ में से किस को कितनी तरजीह दें।
ईमानदारी से कहूठतो मà¥à¤à¥‡ समठनहीं आता कि किस का पकà¥à¤· लूà¤à¥¤ हमारी सामाजिक संरचना ही जाति और वरà¥à¤£ आधारित रही है। यह आज की बात तो नहीं है। और आजाद à¤à¤¾à¤°à¤¤ के जनà¥à¤® से पहले से ही इन पर आधारित राजनीति की शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤ हो गई थी। बस खिलाड़ी बदलते गये, खेल वही रहा। à¤à¤¨à¤¡à¥€à¤Ÿà¥€à¤µà¥€ के सरà¥à¤µà¥‡à¤•à¥à¤·à¤£ से पता चला कि गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ यह तो मानता है कि आरकà¥à¤·à¤£ का मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ महज़ राजनीतिक तिकड़म है पर यह à¤à¥€ मानता है कि आरकà¥à¤·à¤£ से समाज का à¤à¤²à¤¾ होगा। चिदंबरम कहते हैं कि मैंने अपनी आà¤à¤–ों से दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ को आरकà¥à¤·à¤£ के सहारे आगे बà¥à¤¤à¥‡ देखा है। सचाई यह है कि आज तक कोई फीसीबिलिटी सà¥à¤Ÿà¤¡à¥€ नहीं हà¥à¤ˆ जो यह बता सके कि अब तक आरकà¥à¤·à¤£ से लोगों को फायदा पहà¥à¤à¤šà¤¾ कि नहीं।
पर यह सही है, जिस वरà¥à¤— को अपने हिसà¥à¤¸à¥‡ से कà¥à¤› जाता दिखेगा उसे गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ तो आयेगा पर आरकà¥à¤·à¤£ के विरोधी जब यह आपतà¥à¤¤à¤¿ जताते हैं कि इससे नालायक लोगों को मौका मिल जायेगा तो मà¥à¤à¥‡ बात समठनहीं आती। कà¥à¤¯à¤¾ सवरà¥à¤£ जाति के “नालायक छातà¥à¤°” कैपीटेशन फी की मारà¥à¤«à¤¤ à¤à¤¡à¤®à¤¿à¤¶à¤¨ नहीं पा जाते? तो मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ दरअसल काबिलियत का है ही नहीं। मà¥à¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ यह है कि आज आजादी के साठसाल बाद à¤à¥€ आरकà¥à¤·à¤£ की दरकार कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ महसूस हो रही है? आपका कहना सही है, उ.पà¥à¤°. के चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥€ मैदान में काà¤à¤—à¥à¤°à¥‡à¤¸ जाति की राजनीति के माहिर खिलाड़ी मà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤® सिंह को शिकसà¥à¤¤ दे कर राहà¥à¤² को पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ की कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ का सही हकदार साबित करना चाहती है। यह तो हर कोई जानता है कि यह राजनीतिक तिकड़म है और हर राजनीतिक दल इस हमाम में नंगा है। तो मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ यह कि आजादी के साठसाल बाद à¤à¥€ इस देश में जातिगत वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की जड़ें इतनी गहरी बसी हैं कि जातिगत राजनीति करने वाले दलों की दालरोटी बदसà¥à¤¤à¥‚र चल रही है। मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ यह है कि समानता की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की बात करने वाले हमारे समाज में असमानता की अà¤à¥€ à¤à¥€ गहरी पैठहै।
दà¥à¤– की बात यह है कि असमानता के सही कारणों की खोज न कर बस तà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥€à¤•रण की राजनीति इस देश में होती है। जखà¥à¤® पर मरहम न लगाओ, बैसाखी दे दो! आरकà¥à¤·à¤£ के सही ज़रूरतमंदों की पहचान मत करो, उनको पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—ी परीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं की महंगी तैयारी करने में मदद न करो, उनकी शालाओं को पबà¥à¤²à¤¿à¤• सà¥à¤•ूलों के बराबर की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ न दो, बस ओ.बी.सी का तमगा लगाये किसी à¤à¥€ बंदे को, à¤à¤²à¥‡ वो मà¥à¤à¤¹ में चांदी का चमà¥à¤®à¤š लिये हो बंदरबाà¤à¤Ÿ में रेवड़ीयाठबाà¤à¤Ÿ दो। बीस साल बाद फिर हिसाब लगाना और देखना कि असमानता तो बनी हà¥à¤ˆ है, तब तक राजीव या मà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤® या मायावती के बेटे सिंहासन संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ के लायक हो जायेंगे। तो किसी चà¥à¤¨à¤¾à¤µ के शà¥à¤ अवसर पर फिर खोल देना बोतल का मà¥à¤à¤¹!
बहà¥à¤¤ बढिया लिखा है.
सही कहा!
मेरा विचार मे à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ उपाय है…जैसे नालायक छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के लिये कैपिटेशन वाले कालेज हैं, उसी तरह ठीक उसी तरह, सरकारी या पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ आरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ कालेज खोले जाने का सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® विचार, जिसमे आरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• à¤à¥€ हों का विचार राजà¥à¤¨à¥€à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¥‹à¤‚ को कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नही आता। उनको न à¤à¥€ आये तो हमारे सृजन शिलà¥à¤ªà¥€ जैसे सजà¥à¤œà¤¨ इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° मे आगे कà¥à¤¯à¥‹ नही आते? नये कालेज सà¥à¤•ूल , विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ खोलिये, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आरकà¥à¤·à¤£ की तरफ़ ललचायी निगाहों से देखते है, और जब तक अरà¥à¤œà¥à¤¨ सिंह ने नही बताया, तब तक कà¥à¤¯à¤¾, इसके औचितà¥à¤¯ और समरà¥à¤¥à¤¨ के लिये आवाज नही उठानी चाहिये थी? जब इनके जैसे बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¥€ à¤à¥€ राजà¥à¤¨à¥€à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¥‹à¤‚ के पिछà¥à¤²à¤—à¥à¤—ू बने रहेगें तो हमारे पिछà¥à¤¡à¤¾ वरà¥à¤— का विकास, कोई à¤à¥€ आरकà¥à¤·à¤£ नही कर सकता, ५० से à¤à¥€ अधिक सालों का इतिहास इसका साकà¥à¤·à¥€ है।
इससे à¤à¤• फायदा ये à¤à¥€ होगा कि समानता की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ विकसित होगी, और बहà¥à¤¸à¤¨à¥à¤–à¥à¤¯à¤• पिछडा वरà¥à¤— के योगà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ समान उचà¥à¤š मानसिक सà¥à¤¤à¤° के छातà¥à¤° किसी विषय को अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• के समान पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ से समठसकेनà¥à¤—े। आप लोग à¤à¤¸à¥‡ सनà¥à¤¸à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ को उस ऊनà¥à¤šà¤¾à¤ˆ तक ले जाइये जहां कि वो पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता सनà¥à¤¸à¤¥à¤¾à¤¨ सà¥à¤¤à¤° पर हो जाये, IIT Aluminies दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किये गये पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ इस पà¥à¤°à¤•ार की पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ के जà¥à¤µà¤²à¤¨à¥à¤¤ उदाहरण हैं। IITs मे बढता आरकà¥à¤·à¤£ उसकी विशà¥à¤µ मे साख को जरूर गिरा देगा, उसकी चिनà¥à¤¤à¤¾ किसी को कà¥à¤¯à¥‹ नही है?
जब तक पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में ईमानदारी नहीं होगी ये समसà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤¸à¥‡ ही बनी रहेंगीं।