हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ाकारी के दिन बहà¥à¤°à¥‡?
ये सवाल रवि à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ पूछ रहे हैं चिटà¥à¤ ा चरà¥à¤šà¤¾ पर। पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग है अनामदास, रवीश तथा पà¥à¤°à¤®à¥‹à¤¦ की बà¥à¤²à¥‰à¤— पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का किसी पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा (“बया”) में पà¥à¤°à¤•ाशन।
चिटà¥à¤ ाकारों का मà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ के पà¥à¤°à¤•ाशन में जाना नई बात तो नहीं है पर हिनà¥à¤¦à¥€ चिटà¥à¤ ाजगत के लिये ये ज़रूर नई बात है। चिटà¥à¤ ाकारी के शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤à¥€ दिनों में लोग बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग से बà¥à¤• डील के सपने देखा ही करते थे, कà¥à¤› सपने सच à¤à¥€ हà¥à¤¯à¥‡à¥¤ बिज़ सà¥à¤Ÿà¥‹à¤¨ ने अपनी चिटà¥à¤ ाकारी से 2 किताबें लिखने का काà¤à¤Ÿà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤Ÿ हासिल किया और गूगल में नौकरी तक पाई। (निरंतर पर हमने बिज़ की किताब के अंश हिनà¥à¤¦à¥€ में पà¥à¤°à¤•ाशित किये था जो दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯à¤µà¤¶ अब जाल पर नहीं है।) बिज़ ने बà¥à¤²à¥‰à¤—र के मदद पृषà¥à¤ पर “बà¥à¤²à¥‰à¤— से बà¥à¤•” तक जाने के मारà¥à¤— à¤à¥€ बताये हैं। खैर, हर कोई बिज़ या सेठगोडिन नहीं होता। तो जहाठजाल पर आप को 6 फिगर चिटà¥à¤ ाकारी के सबक मिलेंगे वहीं à¤à¤¸à¥‡ किसà¥à¤¸à¥‡ à¤à¥€ जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पॠकर लगे कि माफ करें, चिटà¥à¤ ाकारी से ही संतोष कर लेंगे।
सच तो यही है कि पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट माधà¥à¤¯à¤® में जाने का à¤à¤• ही पैमाना है और वो ये कि आप का लेखन औपचारिक लेखन (formal writing) के कितना करीब है। उपरोकà¥à¤¤ सà¤à¥€ चिटà¥à¤ ाकार फिकà¥à¤¶à¤¨ व संसà¥à¤®à¤°à¤£à¥‹à¤‚ के मंà¤à¥‡ लेखक हैं और इनके लेख परिपकà¥à¤µ होते हैं। मैं अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ à¤à¤° ही लगा सकता हूं ये ये चिटà¥à¤ ा पà¥à¤°à¤•ाशित करने से पहले उसको कई बार पà¥, परिमारà¥à¤œà¤¿à¤¤ करते होंगे, हिजà¥à¤œà¥‹à¤‚ और वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण की गलतियाठसà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¤à¥‡ होंगे और संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ, पेशेवर लेखकों की नाई अपना डà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿ कई बार तैयार करते होंगे। मà¥à¤à¥‡ लगता है कि इनकी उमà¥à¤¦à¤¾ बà¥à¤²à¥‰à¤— पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के नैपथà¥à¤¯ में अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ लेखन है। और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दें तो इसमें बड़ा विरोधाà¤à¤¾à¤¸ à¤à¥€ है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि चिटà¥à¤ ाकारी मूलतः बेफà¥à¤°à¤¿à¤•à¥à¤°, बिंदास लेखन के लिये ही जाना जाता है पर जो लेखन के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ संजीदा हों वे अपनी सामानà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ कà¥à¤› इस तरह लिखते हैं जà¥à¤¯à¥‹à¤‚ वो हंस के लिये लिख रहे हों।
पर अधिकांशतः यह सच नहीं होता, बà¥à¤²à¥‰à¤— पà¥à¤°à¤•ाशक जलà¥à¤¦à¥€à¤¬à¤¾à¤œ होता है, विचारों को तà¥à¤°à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करने की तीवà¥à¤° इचà¥à¤›à¤¾ उस पर हावी होती है और यही कारण है कि निरंतर में, जहाठहम चिटà¥à¤ ाकार मिल कर पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा के सà¥à¤¤à¤° की à¤à¤• औपचारिक पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा निकालना चाहते थे, लेखों का टोटा पड़ा रहता है। पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा को हर रोज तो नहीं निकाला जा सकता और लेखक चाहता है कि अंक जाये तेल लेने आप तो मेरा लेख पहले छाप दो। आप कहते हैं रà¥à¤• जाईये दो हफà¥à¤¤à¥‡, हामी आती है पर तीसरे दिन लेख उनके बà¥à¤²à¥‰à¤— पर टहलता मिल जाता है।
बà¥à¤²à¥‰à¤— से बà¥à¤• की बात निकली तो à¤à¤• बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ मंच सà¥à¤²à¥‡à¤–ा और पेंगà¥à¤µà¤¿à¤¨ के पà¥à¤°à¤•ाशक तैयार कर चà¥à¤•े हैं, आपने शायद पà¥à¤¾ हो। सà¥à¤²à¥‡à¤–ा लेखकों के लिये इंडिया सà¥à¤®à¤¾à¤ˆà¤²à¥à¤¸ जैसी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—ितायें कराता रहा है। जो लोग किसà¥à¤¸à¥‡ कहानियाà¤, यातà¥à¤°à¤¾ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त लिखने में माहिर है उनके लिये à¤à¤• नई पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता बà¥à¤²à¥‰à¤— पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट शà¥à¤°à¥ की गई है जो जनवरी 2008 तक चलेगी। उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ तो खैर सà¥à¤²à¥‡à¤–ा के चिà¥à¤Ÿà¤ ों की संखà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤¾à¤¨à¤¾ ही है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सà¥à¤²à¥‡à¤–ा पर लिखे à¤à¤•à¥à¤¸à¥à¤²à¥à¤œà¤¿à¤µ चिटà¥à¤ े ही इसमें à¤à¤¾à¤— ले सकते हैं, पर मेरे खà¥à¤¯à¤¾à¤² से IBIBO जैसे à¤à¤¸à¤¾-वैसा-कैसा à¤à¥€ लिखने के लिये रोकड़ (इसे “करोड़” पà¥à¥‡à¤‚) बाà¤à¤Ÿà¤¨à¥‡ के घटिया विचार से ये लाख गà¥à¤¨à¤¾ बेहतर है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अंततोगतà¥à¤µà¤¾ हर लेखक, चाहे वो बà¥à¤²à¥‰à¤—िया ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो, पà¥à¤°à¤•ाशित होना चाहता है। पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता में हर हफà¥à¤¤à¥‡ दो चिटà¥à¤ ों को चà¥à¤¨ दस हज़ार का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•ार दिया जायेगा और जनवरी में 52 चयनित चिटà¥à¤ ों को पैंगà¥à¤µà¤¿à¤¨ à¤à¤• पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की शकà¥à¤² में पà¥à¤°à¤•ाशित करेगा।
अगर आप अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ में à¤à¥€ लिखते हैं तो अपना à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ आज़मा सकते हैं। अगर आप हिनà¥à¤¦à¥€ में लिखते हैं, और मेरे जैसा लिखते हैं 😉 , तो फिर या तो इंतज़ार कर सकते हैं या बà¥à¤¨à¥‹ कहानी या निरंतर पर पà¥à¤°à¤•ाशन के संतोष से à¤à¥€ काम चला सकते हैं 🙂
बढ़िया है। हमें तो बस अपना काम करना है।
अचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤®à¤°, चाहे मà¥à¤•à¥à¤¤ सà¥à¤°à¥‹à¤¤ के लिठकाम कर रहा हो या अपनी नौकरी के लिठपà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® लिख रहा हो, पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® अचà¥à¤›à¤¾ और परिमारà¥à¤œà¤¿à¤¤ और परीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ ही लिखेगा। इससे कोई फ़रà¥à¤• नहीं पड़ता कि उसने शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ मà¥à¤•à¥à¤¤ सà¥à¤°à¥‹à¤¤ से की या नौकरी से। यह उसकी इज़à¥à¤œà¤¼à¤¤ का सवाल है, यही बात अचà¥à¤›à¥‡ लेखकों पर à¤à¥€ लागू होती है।
हम तो यही कहेंगे कि सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ बदलेगी। न वे दिन रहे न ये दिन रहेंगे।
‘मंà¤à¥‡’ कà¥à¤¯à¤¾ पतंग उड़ाने वाली डोर मंà¤à¤¾ से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† है?या इसका मूल मराठी का कोई लफ़à¥à¥› है?
‘बया’ में उदà¥à¤§à¥ƒà¤¤ तीनों लेखक ‘नारद’ -विवाद के दौरान à¤à¥€ à¤à¤• ही जगह थे।
à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› गजब नहीं हो गया है, देबू दा.. हिंदी की à¤à¤• छमाही पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा में ज़रा-सी जगह ही मिली है.. à¤à¤¸à¥€ लड़िâ€à¤¯à¤¾à¤¨à¥‡ की बात नहीं है.. अचà¥â€à¤›à¤¾ हो हम इसपर ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ चिंता करें कि बà¥â€à¤²à¥‰à¤—जगत में सागगà¥à¤°à¥€ की बेहतरी व विविधता कैसे आà¤!
शà¥à¤°à¥€à¤°à¤µà¤¿ रतलामी के निवास पर मैने परसों ही ‘बया’ का ताजा अंक देखा है जिसमें ये तीनों पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हैं । पà¥à¤°à¤¤à¥â€à¤¯à¥‡à¤• बडे काम की शà¥à¤°à¥‚आत छोटी ही होती है । बà¥â€à¤²à¤¾à¤— विधा को यह सà¥â€à¤µà¥€à¤•ार मिलना निशà¥â€à¤šà¤¯ ही शà¥à¤-शकà¥à¤¨ है । बà¥â€à¤²à¤¾à¤— यदि पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं में पà¥à¤°à¤•ाशन का सà¥à¤°à¥‹à¤¤ या माधà¥â€à¤¯à¤® बनता है तो इससे इसके लेखन में जिमà¥â€à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ का à¤à¤¾à¤µ पैदा होगा – निशà¥â€à¤šà¤¯ ही ।
इस शà¥à¤°à¥‚आत का सà¥â€à¤µà¤¾à¤—त किया ही जाना चाहिठ।
छोटी सी शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤ है,
फिकर की कोई बात नहीं है,
शà¥à¤°à¥‚ à¤à¤¸à¥‡ ही होती है हर बडी चीज.
रोम न बना था इक दिन में,
छापा माधà¥à¤¯à¤® में à¤à¥€
चालू होकर छोटे से कदमों से,
ये चिटà¥à¤ ाकार दौडेंगे
छापे का मेराथन à¤à¤• दिन.
ईशà¥à¤µà¤° से मेरी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ है कि ये चिटà¥à¤ ाकार छापाजगत में à¤à¤• बहà¥à¤¤ बडी छाप छोड सकें — शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ जे सी फिलिप
हिनà¥à¤¦à¥€ ही हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ को à¤à¤• सूतà¥à¤° में पिरो सकती है
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