कौड़ियों से करोड़ों?
जो यह हजरत कह रहे है कà¥à¤› कà¥à¤› वैसा ही खà¥à¤¯à¤¾à¤² मेरा à¤à¥€ है। पर पहले बात इस पेंटिंग, जिसका नाम यकीनन कà¥à¤› à¤à¥€ हो सकता था, “महिशासà¥à¤°” की, यह तैयब मेहता साहब की पेंटिंग है। आपने सà¥à¤¨à¤¾ ही होगा कि यह तिकड़म १ नहीं २ नहीं ३ नहीं पूरे ॠकरोड़ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में किसी हज़रत ने खरीदी है। हम यह बहस नहीं करे तो अचà¥à¤›à¤¾ कि यह पैसा पसीने की कमाई है या नहीं या फिर खरीददार की मानसिक हालत कैसी है। अब सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‡ कथित जानकार लोग कà¥à¤¯à¤¾ कहते हैं इसके बारे में:
- तैयब ने मॉडरà¥à¤¨ आरà¥à¤Ÿ की नई à¤à¤¾à¤·à¤¾ रची है। उनका रंगों का “सीधा और तीकà¥à¤·à¥à¤£” पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— उनके यà¥à¤— के चितà¥à¤°à¤•ारों के हिसाब से अनूठा है।
- तैयब का तरीका नायाब है, तिस पर महिशासà¥à¤° का विषय जीवन और आशा की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ जगाता है।
मà¥à¤à¥‡ आरà¥à¤Ÿ वारà¥à¤Ÿ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं पर माठकसम थोड़ी बहà¥à¤¤ चितà¥à¤°à¤•ारी तो हमने à¤à¥€ की है। ये कà¥à¤¯à¤¾ बकवास कर रहे हैं यह लोग? बड़बोली के लिये माफ कीजीयेगा पर इससे बेहतर चितà¥à¤°à¤•ारी तो शायद मेरा तीन साल का बेटा कर ले, पर मà¥à¤à¥‡ खà¥à¤¶à¥€ है कि वह अà¤à¥€ तैयब के “सà¥à¤¤à¤°” तक नहीं पहूà¤à¤šà¤¾à¥¤ हम अपने बेटे जो “जूजू बूड़ी” यानि जादà¥à¤—रनी बà¥à¥à¤¿à¤¯à¤¾ के नाम से अकà¥à¤¸à¤° डराते हैं, खासतौर पर जब अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ से काम कराना हो, मà¥à¤à¥‡ यह चितà¥à¤° अगर दस बीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में मिल जाती तो शायद हम इस पेंटिंग का ही नाम ही “जूजू बूड़ी” रख देते।
गौरतलब है कि तैयब कि पिछली à¤à¤• पेंटिंग जो “काली” देवी पर बनी थी १ करोड़ में बिकी थी। मà¥à¤à¥‡ नहीं मालूम कि ये बनाने और खरीदने वाले पागल है या नहीं पर जो बात साफ साफ समठआती है वह यह कि पैसे का यह लेनदेन कोई सीधी सचà¥à¤šà¥€ कहानी तो नहीं है। खरीदने की “à¤à¤¨.आर.आई शकà¥à¤¤à¤¿” सारे रिकारà¥à¤¡ तोड़ रही है, लोग अपना कलेकà¥à¤¶à¤¨ बना कर शेखी बघारने के लिये कूछ à¤à¥€ कीमत दे रहे हैं कचरा कला के लिये। बिलाशक कंटेमà¥à¤ªà¤°à¤°à¥€ आरà¥à¤Ÿ पर खामखां का हाईप बना रखा है मीडिया ने। गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ हसà¥à¤¤à¤•ला कलाकारों की कला की नकल करने वाले लोगों के वारे नà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ हैं और असली कलाकार दो जून की रोटी के लिये तरस रहे हैं।
खैर, जब तक अंधेरा कायम है रोटी सेंकतें रहेंगे तैयब और उनकी बेशरà¥à¤® जमात।
[उतà¥à¤¤à¤°à¤•थाः बड़ा अजब संयोग है, मैंने यह चिटà¥à¤ ा १ अकà¥à¤Ÿà¥‚बर को लिखा पर पà¥à¤°à¥‡à¤·à¤¿à¤¤ नहीं कर पाया, आज देखता हूठकि तैयब की यह कृति टाईमà¥à¤¸ और à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ में à¤à¥€ चरà¥à¤šà¤¾ का सबब बनी है। लगता है मेरे विचार संपà¥à¤°à¥‡à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¥€ हो रहे हैं 😉 बहरहाल इससे मà¥à¤à¥‡ जो बात पता चली वह यह है कि इन चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के इतने हाईपà¥à¤¡ कीमत पर बिकने पर à¤à¥€ इनके बनाने वालों को कोई रॉयलà¥à¤Ÿà¥€ नहीं मिलती। अब शायद इस लेख का आखिरी वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ मà¥à¤à¥‡ वापस ले लेना चाहिये!]
आरà¥à¤Ÿ की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से रेखा (पतà¥à¤¨à¥€) का à¤à¥€ नाता रहा है.(वह आरà¥à¤Ÿ ही पढ़ाती हैं)
दरअसल, ये मारà¥à¤•ेट है. अगर आपमें संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤à¤‚ देखते हैं, तो बाजार वाले आपके नाम का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² कर कचरा à¤à¥€ बेच देते हैं.
आपने सही कहा- à¤à¤• बड़ा कलाकार मितà¥à¤° अपनी कलाकारी के लिठअपने पांच साल के पà¥à¤¤à¥à¤° को रंग की बालà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤ पकड़ा देता है. वह कैनवस पर फेंकता है- उलà¥à¤Ÿà¥‡ सीधे.
उसकी ये कृतियाठहजारों लाखों रà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤‚ में बिकती हैं.
वह फà¥à¤°à¤¾à¤‚स में पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨à¥€ करने वाला है इस साल!