पहले पà¥à¤¯à¤¾à¤° की बात चल पड़ी तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ पहला पà¥à¤¯à¤¾à¤° याद आ गया। परिणती तक à¤à¤²à¥‡ न पहà¥à¤à¤šà¤¾ हो पर मन में किसी कोने में यादों की महक तो बाक़ी है। किसà¥à¤¸à¤¾ चà¥à¤‚कि नितांत निजी है इसलिठसà¥à¤¨à¤¾ कर बोर नहीं करूà¤à¤—ा। पर यहाठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहा हूठउन दिनों लिखा à¤à¤• गीत। कॉलेज […]
कॉलेज के दिनों में हर कोई कवि बन जाता है, कम से कम कवि जैसा महसूस तो करने लगता है। जगजीत के गज़लों के बोलों के मायने समठआने लगते हैं और कà¥à¤› मेरे जैसे लोग अपनी डायरी में मनपसंद वाकये और पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ नोट करने लगते हैं। कल अपने उसी खजाने पर नज़र गयी तो […]