छायाः अकà¥à¤·à¤¯ महाजन à¤à¤• बात कहूं?बचपन के दिन अचà¥à¤›à¥‡ थे।कान उमेठे जाने पर दरà¥à¤¦ तो होता थापर वो शरारतों में नहीं उतरता था।कान तो अब à¤à¥€ उमेठे जाते हैंपर दरà¥à¤¦ ज़रा नहीं होता।अब शरारत करने से जी घबराता है। à¤à¤• बात कहूं?बचपन के दिन अचà¥à¤›à¥‡ थे।लड़ते थे, रोते थे, रà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ à¤à¥€ थेऔर कà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ की उमà¥à¤° […]
दिन न दूरमेड इन चाइनाआलू à¤à¥€ बिकें।
पहले पà¥à¤¯à¤¾à¤° की बात चल पड़ी तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ पहला पà¥à¤¯à¤¾à¤° याद आ गया। परिणती तक à¤à¤²à¥‡ न पहà¥à¤à¤šà¤¾ हो पर मन में किसी कोने में यादों की महक तो बाक़ी है। किसà¥à¤¸à¤¾ चà¥à¤‚कि नितांत निजी है इसलिठसà¥à¤¨à¤¾ कर बोर नहीं करूà¤à¤—ा। पर यहाठपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहा हूठउन दिनों लिखा à¤à¤• गीत। कॉलेज […]
मैंने कवि बनने की अपनी नाकाम कोशिशों का ज़िकà¥à¤° इस चिटà¥à¤ े पर कà¤à¥€ किया था। उन दिनों गज़ल लिखने पर à¤à¥€ अपने राम ने हाथ हाजमाया, बाकायदा तखलà¥à¤²à¥à¤¸ रखते थे साहब, बेबाक। तो उनà¥à¤¹à¥€ दिनों की à¤à¤• गज़ल यहां पेश है। अगर उरà¥à¤¦à¥ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में कोई ख़ता हà¥à¤ˆ हो तो मà¥à¤†à¤«à¥€ चाहà¥à¤à¤—ा। इस सफ़र […]
कॉलेज के दिनों में हर कोई कवि बन जाता है, कम से कम कवि जैसा महसूस तो करने लगता है। जगजीत के गज़लों के बोलों के मायने समठआने लगते हैं और कà¥à¤› मेरे जैसे लोग अपनी डायरी में मनपसंद वाकये और पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ नोट करने लगते हैं। कल अपने उसी खजाने पर नज़र गयी तो […]