एक बात कहूं?

छायाः अक्षय महाजन एक बात कहूं?बचपन के दिन अच्छे थे।कान उमेठे जाने पर दर्द तो होता थापर वो शरारतों में नहीं उतरता था।कान तो अब भी उमेठे जाते हैंपर दर्द ज़रा नहीं होता।अब शरारत करने से जी घबराता है। एक बात कहूं?बचपन के दिन अच्छे थे।लड़ते थे, रोते थे, रुलाते भी थेऔर कुट्टी की उम्र […]

हाईकू हुए विचार -‍ १

दिन न दूरमेड इन चाइनाआलू भी बिकें।

पहला ख़ुमार

पहले प्यार की बात चल पड़ी तो मुझे भी पहला प्यार याद आ गया। परिणती तक भले न पहुँचा हो पर मन में किसी कोने में यादों की महक तो बाक़ी है। किस्सा चुंकि नितांत निजी है इसलिए सुना कर बोर नहीं करूँगा। पर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ उन दिनों लिखा एक गीत। कॉलेज […]

काव्यालय ~ इस सफ़र में

मैंने कवि बनने की अपनी नाकाम कोशिशों का ज़िक्र इस चिट्ठे पर कभी किया था। उन दिनों गज़ल लिखने पर भी अपने राम ने हाथ हाजमाया, बाकायदा तखल्लुस रखते थे साहब, बेबाक। तो उन्ही दिनों की एक गज़ल यहां पेश है। अगर उर्दु के प्रयोग में कोई ख़ता हुई हो तो मुआफी चाहुँगा। इस सफ़र […]

काव्यालयः बनकर याद मिलो

कॉलेज के दिनों में हर कोई कवि बन जाता है, कम से कम कवि जैसा महसूस तो करने लगता है। जगजीत के गज़लों के बोलों के मायने समझ आने लगते हैं और कुछ मेरे जैसे लोग अपनी डायरी में मनपसंद वाकये और पंक्तियाँ नोट करने लगते हैं। कल अपने उसी खजाने पर नज़र गयी तो […]