सृजनात्मकता और गुणता नियंत्रण

उत्पाद चाहे कैसा भी हो गुणता यानि क्वालिटी की अपेक्षा तो रहती ही है। भारतीय फिल्मों के बारे में कुछ ऐसा लगता नहीं है। शायद इसलिये कि सफलता के कोई तय फार्मुले नहीं हैं और गुणता नियंत्रण की संकल्पना किसी क्रियेटिव माध्यम में लाना भी दुष्कर है। यह बात भी है कि जब बड़े पैमाने […]

संदेशों में दकियानूसी

अपना मुल्क भी गजब है। सवा १०० करोड़ लोग उत्पन्न हो गये पर सेक्स पर खुली बात के नाम पर महेश भट्ट के मलिन मन की उपज के सिवा कुछ भी खुला नहीं। भारत किसी अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में कोई रिकार्ड भले न तोड़ पाया हो पर एड्स के क्षेत्र में सतत उन्नति की राह […]

मुगालते में ऐश है

हम भारतीय तो जन्मजात हिपोक्रिट हैं ही। कथनी और करनी का अंतर न हो तो हमारी पहचान ही विलीन हो जाये। कुछ दिनों पहले जब देह मल्लिका के कॉन्स के पहनावे की बात आयी जिसमें कपड़ा कम और जिस्म ज़्यादा था तो मुझे मल्लिका और ऐश्वर्या कि महत्वाकाक्षांओं में कुछ खास फर्क नहीं नज़र आया। […]

सप्ताह का किस्सा

चापलूसी की हद

जेनेरिक गोरखधंधा

पुणे में आईटी वालों की भरमार है। शहर भी ऐसा है कि लोग बस जाने की सोचते हैं। शहर भी आखिर कितना समोये, सो गुब्बारे की तरह फैल रहा है। वैसे यहाँ के औंध और बानेर जैसे इलाके लोगों की पहली पसंद हैं, सुविधाओं और कार्यस्थल से नज़दीक होने के कारण। चुंकि दावेदार ज्यादा हैं […]

नैन भये कसौटी

दूरदर्शन पर “गोदान” पर आधारित गुलज़ार की टेलिफिल्म आ रही है। पंकज कपूर के किरदार का मृत्यु द्श्य है। श्रीमतीजी, पुत्र और मैं सभी देख रहे हैं। पर अविरल अश्रु बह रहे हैं मेरी आँखों से। जी नहीं, बंद कमरे में भला आंखों में किरकिरी कैसी? यह कोई नयी बात नहीँ है। टी.वी. हो या […]

हाईकू हुए विचार -‍ १

दिन न दूरमेड इन चाइनाआलू भी बिकें।

अनुगूंज ६: चमत्कार या संयोग?

वैसे तो मैं सर्टिफाईड नास्तिक हूँ पर मेट्रिक्स देखने के बाद से मैं इसकी थ्योरी का कायल भी हो गया। कई दफा जीवन में ऐसा हो जाता है कि इस बात पर यकीन सा होने लगता है कि जीवन मानो कोई कंप्यूटर सिमुलेशन हो। एम.आई.बी के अंतिम हिस्से में मेरे इस विचार से मिलता जुलता […]