एएक्सएन पर एक कार्यक्रम आता है, जिसमें दुनिया भर से नामचीन उत्पादों के टी.वी कमर्शियल दिखाये जाते हैं। कहना न होगा कि इनमें से बहुत सारे विज्ञापन उत्तेजक होते हैं। भारतीय विज्ञापन जगत को देश में भाषा, जाति, राज्य की सेंसिबिलिटी आदि का काफी ध्यान रखना होता है। हमारे यहाँ देर रात केबल पर चाहे जो कुछ होता हो, बिलबोर्ड समाज के आंगन में रखे तुलसी के मंच जैसा है। फिर भी देर सवेर विज्ञापन जगत के समुराई कभी कभार पंगा ले ही लेते हैं, कभी नग्न मॉडलों को अजगर लपेटे दिखा देते हैं तो कभी कॉन्डोम के उत्तेजक विज्ञापन बना देते हैं। यह सब होते हुये भी ग्राहक से कमोबेश सम्मानजनक भाषा में बात करना हमेशा ज़ेहन में रखा जाता रहा। पर हालिया विज्ञापनों में अब यह अदब भी दरकिनार किया जाता दिख रहा है। एक ब्रॉ के विज्ञापन में अर्धनग्न कन्या के टीशर्ट पर लिखा है, “ज़रा गौर से देखो…और तुम्हें दिखेंगे…महज़ शब्द!”। एक कार का टैगलाईन है, “यह कार न खरीदी, तो निश्चित ही मूर्ख होगे”।

शराब से जुड़े उत्पादों को हमेशा से ही सरोगेट विज्ञापनो से दिखाने का रिवाज़ रहा है हमारे यहाँ, कभी क्रिकेट किट, कभी बहादुरी के ईनाम, कभी सोडा तो कभी मिनरल वॉटर से। हालिया एक विज्ञापन में मंगल पर पहुंचे दल से वैज्ञानिक पूछता है, बताओ वहाँ लाईफ है कि नहीं, तर्जनी उठा कर जवाब दिया जाता है। पूरा कथानक तो खैर अनर्गल प्रलाप है, असल वाक्य है विज्ञापन की कैचलाईन जो बैखौफ कहता है कि “अक्लमंद को इशारा काफी होता है”। बच्चों का एक पेय बच्चों को बाल‍गोपाल की तर्ज पर दूध चुराने का हौसला दे रहा है। पहले उम्र का तकाज़ा सिर्फ हेयर डाई के इश्तहारों तक सीमित थे पर यह अब दूसरे उत्पादों में भी पैठ बना रहा है। कपड़ों के निर्माता एक कंपनी ने तरुणों से अपनापन बढ़ाने के लिये अधेड़ों से नॉटएनअंकल नामक साईट बनाकर बाकायदा पंगा लिये ले रखा है।

ये बिंदास बेबाकपना और बेअदबी कहाँ तक जाती है, यह जानने के लिये मुझे नहीं लगता कि ज्यादा इंतज़ार करना पड़ेगा।