कवि या फेफड़ों के डाकà¥à¤Ÿà¤°?
थोड़ी सी धूल मेरी धरती की मेरे वतन की,
थोड़ी सी खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ बौराई सी मसà¥à¤¤ पवन की,
थोड़ी सी धौंकनी वाली धकâ€à¤§à¤•†धकâ€à¤§à¤•†धकâ€à¤§à¤•†सांसें,
जिनमें हो जà¥à¤¨à¥‚ं जà¥à¤¨à¥‚ं, हो बूà¤à¤¦à¥‡ लाल लहू की।
अरे à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¥‚न हम तो आपको à¤à¤¡à¤®à¥ˆà¤¨ टरà¥à¤¨à¥à¤¡ लिरिसिसà¥à¤Ÿ समठबैठे पर आप तो कà¥à¤› और ही निकले। धूल से धौंकनी बनी सांसे? जिनमें बूà¤à¤¦à¥‡ लाल लहू की? à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ ये तो शहर में परदूशन के मारे फेंफड़ें की बीमारी से तिल तिल मरते किसी शहरी की कहनी लगती है। देसपà¥à¤°à¥‡à¤® का जजà¥à¤¬à¤¾ किधर है à¤à¥ˆà¤¯à¥‡? आप कवि हो की फेफड़ों के डाकà¥à¤Ÿà¤°?
देशपà¥à¤°à¥‡à¤® का जजà¥à¤¬à¤¾ उड़ न रहा है हवा में धà¥à¤•-धà¥à¤•-धà¥à¤•!
फ़ूल जो बाग की ज़ीनत ठहरा
मेरी आंखों मे खिला था पहले! 🙂
पà¥à¤°à¤¸à¥‚न जोशी ने निराश मà¥à¤à¥‡ कतई निराश नही किया और मेरी फ़िकà¥à¤° को बेबà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦ साबित कर दिया .. à¤à¤• साल पहले ही फ़िर मिलेंगे के समय ही लग गया था की समीर जैसों का à¤à¤¨à¥à¤Ÿà¥€-डॉट मिल गया है! और अब तो मेरे नठफ़ेवरिट लिरिसिसà¥à¤Ÿ बन गठहैं.
बेशक यह वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त पसंद की बात है पर पà¥à¤°à¤¸à¥‚न के गीत धà¥à¤¨ पर बिठाये गये हैं यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ दिखता है। फिलà¥à¤® का शीरà¥à¤·à¤• गीत, जिसका मैंने ज़िकà¥à¤° किया, की पहली पंकà¥à¤¤à¤¿ में “मेरी, मेरे, की, की ” की बेवजह उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पर गौर कीजिये, मीटर जमाने के लिये बेवजह ठूंसे शबà¥à¤¦ नहीं तो कà¥à¤¯à¤¾ है? “सांसो में लहू”, यह कैसा विनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ है? “धौंकनी वाली” या “धौंकनी जैसी”? ठीक उलट अख़à¥à¤¤à¤° साहब के लिखे “à¤à¤• दो तीन” गीत से तौलें, टोटल टपोरी गीत, पर à¤à¤• à¤à¥€ शबà¥à¤¦ गीत से अलग नहीं मालूम पड़ता।
समीर को आप गीतकार मानते हैं यह उनको पता चल जाय तो वे बलà¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ उछल पड़ें, उनके हर गीत में पातà¥à¤° महज़ “पà¥à¤¯à¤¾à¤° में हद से गà¥à¤œà¤¼à¤° जाने” के अलावा कà¥à¤› और कह पाते हैं à¤à¤²à¤¾? गà¥à¤²à¤œà¤¼à¤¾à¤° और जावेद जैसे गीतकार और शायर से इनकी तà¥à¤²à¤¨à¤¾ करना ही वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ है।