नेता बनने के लिये जिस्मानी और रूहानी खाल दोनों का मोटी होना ज़रूरी है। जीवन का आदर्श वाक्य होना चाहिये “कोई कहे कहता रहे कितना भी हम को…”। बेटे के साथ अन्याय के नाम पर कब्र मे पैर लटकाये करूणानिधि ने नई पार्टी तैरा दी, राज्यपाल बूटा सिंह के राज्य की नौका के पाल खुलम्म खुल्ला उनके बेटे संभाल रहे हैं, काबिना मंत्री और मातृभक्त मणिशंकर अय्यर एक तेल कूँए का उद्घाटन करने पहुँचे तो उसका नामकरण अपनी अम्मा के नाम पर कर दिया, गोया यह देश की नहीं व्यक्तिगत संपत्ति हो। दागी मंत्रियों को निकालने के लिये संघटन और विपक्ष दोनों लामबंद हैं पर वे बेफिक्री से सत्तासुख भोगते हुए अपनी सात पुश्तों की पेंशन फंड तैयार कर रहे हैं। वर्तमान काँग्रेसी सरकार ने तो सरकारी तंत्र में एक और सतह का परोक्ष निर्माण कर दिया है। पहले राष्ट्रपति को लोग रबर स्टैम्प का पद कहते थे अब ऐसा पद प्रधानमंत्री के लिये भी बन गया। पराये खड़ाउं रख कर राज चला रहे हैं मनमोहन। लोग हाय तौबा करते रहें सत्ता के दो केद्रों पर, अपन तो कानों में रुई डाल कर रूस की राजकीय यात्रा करेंगे।

अब सामंती और जमींदारी राज के दिन तो कथित रूप से ख़त्म हो गये थे पर लोगों के तेवर कहाँ जाते हैं। वैसे मैं नवाब पटौदी की बात नहीं कर रहा। ये बात उसी परिवार की है जिस के नाम के बिना काँग्रेस की पहचान नहीं बन पाती। पता नहीं आप ने यह ध्यान दिया कि नहीं कि किस चतुराई से सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा कर कई निशानों पर तीर चलाये। राजनीतिक अनुभवहीनता से जो बट्टे उन पर लगते उन से से बचने का यह जोरदार तरीका था ही, राजीव के अनुभव से वह कम से कम यह तो सीख ही चुकी होंगी कि ऐसे में सरकार तो किचन कैबिनेटें ही चलातीं हैं और अनजाने ही बोफोर्स जैसी पाप की गठरिया कोई बगल में सरका दे तो इज्जत भी खराब होती है। परोक्ष रूप से सरकार चलाने से पब्लिक की नज़र से बचकर अपना उल्लू सीधा करना ज्यादा आसान है। एक और निशाना जो साधा गया वह है राहुल का औपचारिक रूप से राजकुमार के रूप में पदस्थापन। राजकुमार का राज्याभिषेक करने के पूर्व ईमेज बिल्डिंग करना तो ज़रूरी है ही सो सरकारी भोंपू काम में लाये जा रहे हैं। जनता पहचान ले अपने राजकंवर को, निहाल हो जाये, फिदा हो जाये, और जब ट्रकों से उतरें तो आँखें मूँद कर शहीद पिता और बलिदानी माता के सलोने पुत्र को बिना पाँच का नोट लिये वोट डालने को तैयार हो जाये।

rahul_gandhi.jpgएक दिन समाचार देख रहा था दूरदर्शन पर। समाचार वाचक ने अमेठी की खबर दी, राजकुमार ने सगरे गाँव बिजली देने का वादा पूरा किया था, गाँव वालों को याद भी न होगा कि ये वादे कितनी बार किये गये। सरकारी उद्यम भेल के लोग भी मंच पर थे। प्रसारण “सीधा” हो रहा था, मानो संयुक्त राष्ट्र में पी.एम भाषण दे रहे हों। कैमरे के दायरे में फंसे सज्जन पात्र परिचय के बाद राजकुमार के गुण गाने लगे। प्रसारण सीधा चलता रहा। काफी देर बाद शायद निर्माता की तंद्रा भंग हुई और वे वापस लौटे सामंती सम्मोहन से। हैरत तब हुई जब दूरदर्शन ने दूसरे दिन के समाचारों में पुनः इसी समारोह की टीवी रपट दिखलाई। पी.एम.ओ ने डपट लगाई होगी, “टाईम का हिसाब नहीं रखते, समाचार को दस मिनट डीले नहीं कर सकते थे। राजकुमार का क्लोज़अप तक नहीं। अगर मैडम ने देख लिया होता तो मैं जाता इम्फाल और तुम जाते श्रीनगर दूरदर्शन केंद्र!” वैसे राहुल मुँहफट हैं, राजनयिक बोली अभी सीखी नहीं हैं सो चचा संजय नुमा निपट सोचते बोलते हैं, जतला दिया कि बुलाया था सो आये बाकी कुछ खबर नहीं।

तो हम लोग ये देखते रहेंगे, सोचते रहेंगे, लिखते रहेंगे। इस बीच ईमेज बिल्डिंग की कवायद पूरी हो जायेगी, भाड़े की संस्थायें बाजार सर्वेक्षण कर हवा का रूख बतलायेंगी और उचित समय देखकर हो जायेगा राज्याभिषेक। मनमोहन जी खड़ाउं राज करने के लिये शुक्रिया! आप जायें। एकाध संस्मरण छपवा लें, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, फिर जो आप कहें, हैंहैंहैंहैंहैं। हमारे बच्चे स्कूली निबंध में लिखेंगे कि जमींदार होते थे कभी। पत्रकार भवें उमेठकर परिवारवाद की भर्त्सना करेंगे फिर सरकार की पहली वर्षगाँठ पर 6 चिकने पेज का परिशिष्ट छापेंगे। उधर इतालवी स्पा में बबल बाथ लेते राजकुमार की त्वचा भाप से कठोर होने के गुर लेती रहेगी। कोई कहे कहता रहे…