असली या नकली
अमर सिंह का कथित बà¥à¤²à¥‰à¤— पà¥à¤¾à¥¤ इतने दिनों से सबका लेखन पà¥à¤¤à¥‡ पà¥à¤¤à¥‡ पता चल जाता है कि कौन “में” को “मे” लिखता है, कौन पूरà¥à¤£à¤µà¤¿à¤°à¤¾à¤® की जगह बिंदॠलगाता है, कौन किताबें “पड़ता” है, कौन पà¥à¤¤à¤¾ नहीं, कौन लेखन की “ईचà¥à¤›à¤¾” रखता है और कौन कॉमा के पहले “सà¥à¤ªà¥‡à¤¸” छोड़ता है, कौन लेफà¥à¤Ÿà¥€ और कौन समाजवादी। यू.पी वाले सबूत बहà¥à¤¤ छोड़ जाते हैं, पर कनपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‡ ही बनाये और बन à¤à¥€ जायें, अटल जी कहते “ये अचà¥à¤›à¥€ बात नहीं है”! बहरहाल जब तक संदेह की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ न हो, संकेत बस इतने ही।


आपने गागर में हमारी गलतियों का सागर à¤à¤° कर हमारे सामने रख दिया है । मेरे विचार से इसमे से कà¥à¤› तो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त शैली और पसनà¥à¤¦ के à¤à¤¾à¤— हैं , कà¥à¤› “चलता है” वाली सोच और कà¥à¤› हिनà¥à¤¦à¥€ संपादकों की जटिलाता ( मैं चाहकर à¤à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ में हलनà¥à¤¤ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— नही कर पाता हूठ) ।
खैर, लिखित à¤à¤¾à¤·à¤¾ को पढकर “अमर सिंह” की वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• पहचान करना à¤à¤• बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ दिमागी कसरत है ।
अनà¥à¤¨à¤¾à¤¦
में का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— हिनà¥à¤¦à¥€ मे सही नही है यह हिनà¥à¤¦à¥€ मे उरà¥à¤¦à¥‚ उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— होता है. बाकि समसà¥à¤¯à¤¾à¤Ž टाइपिगं, साफ़à¥à¤Ÿà¥à¤µà¥‡à¤¯à¤° की जटिलाता कि वजह से हो सकती है. मेरे विचार से नेट पर ये गलतिया करने वाला à¤à¥€ हिनà¥à¤¦à¥€ का अचà¥à¤›à¤¾ जानकार हो सकता है. ये नà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¥€ गलत है.