10 नवंबर 2009 को हिन्दी ब्लॉग जगत के सार्वजनिक उपक्रम चिट्ठा चर्चा ने अपनी एक हजारवीं पोस्ट छापी। सुगबुगाहट बनी हुई थी और इतने दिनों के सन्नाटे के बाद मैंने अनूप को वादा किया इस अवसर पर अपनी राय लिखने का पर जैसा की किसी procrastinator के साथ होता है यह पोस्ट अब आप तक पहुंच रही है। वैसे भी ट्विटर की आदत पड़ने के बाद बड़ी पोस्ट लिखना दुश्कर हो गया है।

चिट्ठा चर्चा शायद एकमात्र ब्लॉग है जिसकी हर पोस्ट मैंने हमेशा पढ़ी है। (इसका मुख्य कारण है कि इस ब्लॉग की हर पोस्ट प्रकाशित होने पर मुझे ईमेल द्वारा मिलती है पर मैंने इससे कभी अनसब्सक्राईब नहीं किया, हिन्दी चिट्ठे पढ़ना लगभग छोड़ने के बावजूद।) चिट्ठा चर्चा की शुरुवात के किस्से आप पढ़ चुके हैं पर इसे शुरु करने का कारण प्रतिशोध नहीं एक क्षोभ था, कि अंग्रेजी ब्लॉग वालों ने हमें बिरादरी बाहर कर दिया था। इस बात का प्रमाण यही है कि चिट्ठा चर्चा का प्रारूप ब्लॉग मेला से पूर्णतः अलग था।

Chittha Charchaअनूप और चिठेरों की शुरुवाती मंडली के साथ अनेकों पराक्रमों में शामिल होने के बाद चिट्ठा चर्चा की निरंतरता और सतत लोकप्रियता का एक कारण तो मुझे स्पष्ट दिखता है और वह है पूर्ण स्वतंत्रता। इंटरनेट पर और (शायद आम जीवन में भी) सामुदायिक कार्यों में भागीदारी बढ़ाने और बनाये रखने के तरीकों में एक महत्वपूर्ण अव्यय है कि सदस्यों को अपना काम करने की खुली छूट हो। निरंतर (अब सामयिकी) जैसे प्रयासों में स्पष्टतः यह कमी रही, चाहे मॉडल अलग होने की मजबूरी हो या परफेक्शनिज़्म का बहाना। अनेकों बार अनूप ने जब नये सदस्यों को शामिल किया तो मुझे उनके चुनाव पर हैरत हुई, कई बार चर्चा के स्तर पर कोफ्त हुआ, एक बार तो चर्चा की पोस्ट को विकीपीडिया शैली में संपादित करने के प्रयास पर बातें सुननी पड़ी और कदम वापस खींचने पढ़े। तब से मेरी चिट्ठा चर्चा में भागीदारी बतौर ब्लॉग के एडमिन के तौर पर बनी रही है। और जो संयम मैंने ट्रॉलिंग और विकीपीडिया पर कुछ लिख कर सीखा है उसी का प्रयोग कर अपने बनाये हैडर ईमेज की बारह बजते देखकर भी उसे पचाया है। अनूप ने कभी भी संपादकीय या प्रकाशन का नियंत्रण अपने कब्जे में रखने का प्रयास नहीं किया।

चिट्ठा चर्चा के अनवरत प्रकाशन और इसकी सफलता के पीछे मुझे जो अन्य कारण दिखते हैं वो हैं,

  • अनूप का समर्पण, इस हद तक की जब किसी नियत व्यक्ति ने चर्चा नहीं की तो उन्होंने कमान खुद संभाली। देर रात और अलसुबह उनके चर्चा प्रकाशित करते मैंने देखा है। इस आधारस्तंभ के बिना शायद चर्चा इतने दिनों नहीं चल पाती। आप मानेंगे कि चिट्ठा चर्चा की सक्रीय मंडली से ज्यादा वे बधाई के पात्र हैं। अनूप की एक खास बात यह है कि वे एक गजब के हाईपरलिंकर (यदि ऐसा कोई लफ्ज़ होता हो) हैं। अपने एक लेख के लिये वे सहस्त्रों कड़ियाँ खोजते हैं और लेख में शामिल करते हैं।
  • दल में सही लोगों का चयन
  • एक बड़ा दलः चर्चा का दल काफी बड़ा है, जिससे सक्रिय सदस्यों की अदला बदली द्वारा प्रकाशन की निरंतरता बनाई जा सकी। चर्चा मंडली के सदस्य अपनी पसंद के विषयों के लेखों का ज़िक्र करते हैं, सारे लेखों का जिक्र करना मानवीय रूप से असंभव भी है। व्यक्तिपरक लेखों से विषयों का कैनवस बढ़ता है और पाठकों को हर चर्चा का अलग स्वाद भी मिल पाता है।
क्या ऐसा हिन्दी मेमट्रैकर कभी बन पायेगा?
क्या ऐसा हिन्दी मेमट्रैकर कभी बन पायेगा?

एग्रीगेटरों पर चर्चा के समय मैंने यह कहा था कि हिन्दी ब्लॉगजगत में मेमट्रेकर्स और फिल्टर ब्लॉगों की जगह बढ़ेगी, बढ़नी चाहिये। ज्यों ज्यों हिन्दी चिठेरों की संख्या बढ़ेगी एग्रीगेटरों के माध्यम से सूचना के इस ओवरलोड को सभाल पाना मुश्किल होता जायेगा। इसका एक हल शायद यह हो कि चिट्ठा चर्चा जैसे मंच एक पोस्ट में सारी चर्चा का प्रारूप से दिन भर या हफ्ते में अलग अलग दिनों में विषयवार चर्चा शुरु करें।

ब्लॉगवाणी, चिट्ठाजगत को मैंने पहले भी सुझाव दिया था कि वे विषय या श्रेणीवार फीड व पृष्ठ बनायें, साथ ही डिगनुमा रूप छोड़कर शुद्धमेमट्रेकर जैसा स्वरूप अख्तयार करें जिससे राईसिंग टॉपिक्स यानि सुर्खियों का पता चल सकें, इसे अखबारी वेबसाईट्स नुमा शक्ल भी दिया का सकता है और सोने पर सुहागा हो अगर प्रयोक्तता को personalization यानि वैयक्तिकृत पृष्ठ बनाने की सुविधा भी हो। फिलहाल तो इन साईटों पर खोज की सामान्य सुविधा भी नहीं है। टेकमेम जैसी साईटें या गूगल का ब्लॉग सर्च का मुखपृष्ठ इसके उम्दा उदाहरण हैं। यह बात सोची जा सकती है कि इसमें खबरों की वेबसाईटों को शुमार किया जाय या केवल ब्लॉग जगत तक ही सीमित रहा जाय।

यह तो तय है कि लेखों के इस बाढ़ से अपनी रुचि या काम की जानकारी पाने के लिये चिट्ठा चर्चा जैसे मंचों की ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी। देखना यह है कि क्या समय के अनुरूप ये अपने को ढाल कर सफलता के नये परचम लहराते हैं या फिर यही कलेवर बनाये रख अपनी लोकप्रियता और उपयोगिता को बरकरार रख पाते हैं।