कुछ दिन पहले अनूप का ईमेल आया, बोले जिन किताबों को भेंट करने का वायदा किया था वो देने स्वयं आ रहा हूँ। ज़ाहिर है जिन चिट्ठा मित्र से अब तक केवल फोन पर बातचीत हुई या फिर चित्रों में ही जिन्हें देखा हो उनसे मिलने की बात पर मन उत्साहित तो था ही, पर बड़भैया से मुलाकात के पहले थोड़ा सहमा भी था। जीवन और साहित्य के निचोड़ से ओतप्रोत उनके लेख तो कई मर्तबा इस तुच्छ बुद्धि के सर से चार इंच उपर ही तिरते रह जाते हैं, उन पर टिप्पणी करने का माद्दा हमेशा नहीं जुट पाता, अब भई जिनके ब्लॉग पर टिप्पणी करने पर भी डर लगता हो और जिनकी हल्की डपट से अतुल अपनी पोस्ट हटा देते हों, ऐसे महाब्लॉगर से मिलने के लिये थोड़ा साहस तो जुटाना ही पड़ता है। पर जब मुलाकात हुई तो अपेक्षा से भी अधिक मन को भा गये अनूप। दो दिनों में कई बार भेंट हुई और वस्तुतः अनूप ने मेजबान की ही जम कर मेहमान नवाज़ी कर डाली।

Anup and Debu at the AFK Guesthouse, Puneअनूप कल अलसुबह पुणे पहूँचे थे पर तरोताज़ा होते ही फुनिया कर गेस्टहाउस बुलवा लिया। पहली मुलाकात में छूटते ही थमा दी आधा गाँव और राग दरबारी, फिर चल पड़ी चर्चा। जिस होटल में प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा था मेरे आफिस के पास ही था सो गये भी साथ। शाम को अनूप से फिर वहीं मुलाकात हुई। बैठने की जगह की दरकार थी तो सोहराब हॉल में एक महंगी से जगह पहुँच गये। अनूप को बतियाना और चाय दोनों पसंद है, लिहाजा वही चाय ही मंगाई गई। मेनु में चाय की कीमत देख अनूप और मैं दोनों मुस्करा दिये। ऐसे ही सरल और सीधे हैं अनूप। स्पष्टवक्ता, समझदार और निष्कपट। अपने पसंदीदा लेखकों के लेखन के परागकण अनूप के मानस पर प्रचुरता से समा गये हैं। जीवन को भी नये नज़रिये से देखते हैं अब। “पहले नहीं, पर अब इनके लेखन का सत्व समझ पाता हूँ”, अनूप कहते हैं। जब वे हरिशंकर परसाई या मनोहर श्याम जोशी के शिल्प की बात करते हैं तो टकटकी बाँधे सुनते रहने के सिवा मन कुछ और नहीं कर पाता। जब वे राग दरबारी के स्मरित अंश धाराप्रवाह सुनाते हैं तो हंसी पर ब्रेक नहीं लगता।

पढ़ने के शौकीन अनूप सफर का आन्नद भी इसी को मानते हैं, इसलिये वायुयान से आना अखर रहा था। फिर भी हवाईअड्डे पर जो समय चुरा पाये तो विजय तिवारी की हरसूद पर लिखी पुस्तक तकरीबन ख़त्म कर डाली। और साथ ही अपना दूसरा चस्का भी पूरा कर लिया, ब्लॉगिंग का। अनूप न केवल लिखते हैं वरन पढ़ते भी बहुत है। मेरे यह बताने से कई पाठक जो चिट्ठाकारी भी करते हैं निश्चित ही खुश होंगे कि अनूप लगभग दिन की सभी पोस्ट पढ़ते हैं, उनके हर पोस्ट पर मौके दर मौके आप जो कड़ियाँ विभिन्न ब्लॉग पोस्टों की देखते हैं वे सबूत हैं कि वे सरसरी तौर पर नहीं, ध्यान से पढ़ते हैं। और पढ़ा याद भी रखते हैं। यही स्मृति उनको बरसों पुरानी घटनाओं के संस्मरण लिखने में सहायता भी करती है। और लगगभ इतना ही चमत्कारी है उनका ब्लॉग मित्रमंडल। वे संबंध केवल कमेंटियाने या पढ़ने तक सीमित नहीं रखते और मेरे ख्याल से यह जानने के लिये फुरसतिया की किसी भी पोस्ट पर आई टिप्पणियों का विस्तार देख लेना ही काफी है। मित्रता करना और किताबों में गुलाब की पंखुड़ी की तरह उसे संजोये रखने में माहिर है अनूप।

अनूप ने भेंट की गई पुस्तक पर लिखा है, “प्रिय देबाशीष को लिखाई पढ़ाई जारी रखने और जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर प्रगति की मगलाकामनाओं के साथ”। मौका अच्छा था तो मैंने किसी सधे प्रकाशक की तरह अनूप से निरंतर की वापसी का वायदा भी ले लिया। ये पुस्तकें मेरे लिये खास मायने रखती हैं। बरसों बाद मुझे फिर किसी ने पुस्तक भेंट में दी हैं, मन गदगद है।

आज शाम को मुलाकात के बाद जब अनूप की पुणे से रवानगी का वक्त आया तो शहर के आसमान पर बदली घिर आई थी। रात नौ बजे जब अनूप दिल्ली की फ्लाईट पकड़ रहे थे तब शायद मेरे मन की तरह ये बादल भी मायूस थे। और थोड़ी देर में वे सुबक भी पड़े। मौसम में थोड़ी ठंडक आ गई पर अनूप के साथ इस सार्थक भेंट की उष्मा मन में सदा बनी रहेगी।

[इस ब्लॉगर मीट के अन्य चित्र अनूप ने यहाँ पोस्ट किये हैं।]