बस आगे बढ़तें रहें
पंकज के मुवेबल टाइप के अनुवाद के दौरान हुई चर्चा में मैंने या विचार रखे थे कि log, trackback, preview, template, password, username, archives, flag, bookmarklet जैसे पारिभाषिक शब्दों को जस का तस लिखना चाहिए, हर शब्द का हिन्दीकरण उचित नहीं।
पंकज का मानना है:
मैं सोचता हूँ कि अनुवाद ऐसा होना चाहिए जो कि एक हिन्दी माध्यम से दसवी पास व्यक्ति भी समझ सक । यानि की अंग्रेजी उसने केवल छठी से दसवी तक पढ़ी हो। या फिर कोई सरकारी कार्यलय का बाबू भी समझ सके।
विनय ने कहा:
जैसे-जैसे नए लोग आएँगे और लिखेंगे, अपने आप एक सर्वमान्य और विस्तृत शब्दकोश बनता जाएगा। शुरुआती समस्याएँ तो जायज़ हैं।
पंकज और विनय, आप दोनों की बात में दम है कि तकनीकी शब्दावली सामान्य व्यक्ति कि समझ में बसने लायक होना चाहिए। जो दिक्कत मैं देख पाया वह यह है कि यदि हम बोलचाल की भाषा के प्रयोग की अघिक चेष्टा करें तो भाषा अशुद्घ होने का डर रहता है, क्योंकि बोलचाल में तो हम हिन्दी, खड़ी बोली, अंग्रेज़ी, उर्दु और स्थानीय बोली का सम्मिश्रण बोलते हैं। दूसरी ओर यदि भाषा की शुद्घता पर ष्यान केंद्रित करें तो शब्दावली अति क्लिष्ट हो कर जनसामान्य के पहुँच से दूर हो जाती है। शायद यही कारण है कि जहाँ Trackback के लिए “विपरीतपथ” जैसे शब्द मुझे अटपटे लगते हैं वही ऐसे शब्दों का तुरन्त कोई हिन्दी समानार्थी भी नहीं सूझ पड़ता। वहीं Blog के लिए “चिट्ठा” काफी जँचता है।
तो जैसा विनय ने कहा, समय लगेगा, विभिन्न लोग अलग-अलग शब्दावली रचेंगे और अंततः कोई सर्वमान्य शब्द ज़बान पर चढ़ जाएगा। आगे बढ़ते रहना जरूरी है और पंकज आपका ये कदम हिन्दी को आगे लाने में अवश्य ही मददगार साबित होगा और हम जैसो के लिए प्रेरणास्त्रोत भी।