दौड़ बदलाव की

यदि मेरे यूँ नाक भौं सिकोड़ने से आप मुझे सहिष्णुता जैसा प्राचीन (और जिसे विलुप्त भी माना जा सकता है) न मान लें तो आज के युवा वर्ग पर मुझे कई मामलों में विस्मय और नाराज़गी की मिश्रित अनुभूति होती है। लड़के स्त्रियों की भांति मशरूम केश सज्जा के कामिल हैं, कानों में “बिंदास” बालियां […]