ऐसा हीरो अपुन को भी मंगता है
निर्विकार भाव से समाचार पढ़ती सलमा सुल्तान याद है? मुझे हमेशा से ये लगता था कि समाचार वाचक भी अजीब हैं, जो भी लिख दे दिया है पढ़े जाते हैं।
दूरदर्शन के समय न्यूज़ बुलेटिन था, सैटेलाईट टीवी के ज़माने में टेलीप्रॉम्पटर है। इनेगिने ही हैं जो समाचार प्रस्तुतकर्ता की भी भूमिका अदा करते हैं। अमरीकी मीडिया में सोशियलाईट पेरिस हिल्टन की जेल से हालिया रिहाई की खबर कवर करने का उन्माद रहा। सीएनएन पर लैरी किंग लाईव तक में उसका साक्षात्कार प्रमुखता से प्रसारित हुआ। पर एमएसएनबीसी की समाचार प्रस्तुतकर्ता मीका ब्रेज़िंस्की ने अदम्य साहस का परिचय देकर इस खबर को मुख्य खबर के रूप में पढ़ने से न केवल इंकार कर दिया बल्कि इसे न पढ़ने के फैसले पर डटी रहीं।
यूट्यूब पर प्रस्तुत इस वीडियो में देखिये कि किस तरह साथी समाचार वाचकों के समझाने पर भी मिका समाचार बुलेटिन को श्रेडर में डाल देती हैं और हालांकि चैनल पेरिस की रिहाई का फुटेज दिखा ही देता है समाचार पढ़ा नहीं जाता।
गार्जीयन अखबार ने लिखा, “मुझे एक नया हीरो मिल गया है”। क्या आप ऐसा हीरो नहीं चाहेंगे जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रमुखता देने और आत्मा की आवाज़ को सुनने से हिचकता न हो, भले सवाल नौकरी और सम्मान का हो? (स्रोतः इंडीया अनकट)
भारत के सन्दर्भ में यह साहसिक कार्य और भी अनुकरणीय है। इसके अलावा भारत में टी.वी. चैनेलों के प्रस्तुतकर्ताओं की “ओवर-ऐक्टिंग” भी अब असहनीय हो गयी है।
काश भारत में भी ऐसा हो. पर यहाँ तो पत्रकार साँप, बिच्छु और बाबाओं से उपर ही नहीं आते. क्या किया जाए. 🙂
बहुत ही सही बात उठाई आपने।
मीडिया के नाम पर हमारे देश में लाला लोग धंधा कर रहे हैं और नौकरी की मजबूरी के नाम पर प्रबुद्ध लोग उनके इशारों पर नर्तन कर रहे हैं बिना यह सोचे कि हम वास्तव में कर क्या रहे हैं।
इस घटना को देख शायद किसी एक की आत्मा जागे।
वैसे मुझे याद है कि इंदिरा गांधी की मृत्यू की खबर जब दूरदर्शन पर ब्रेक हुई थी तो सलमा सुल्तान की आंखों में बड़े बड़े आंसू थे।
अमेरिकी नकल को आतुर भारतीय पत्रकार शायद ही इस बहादुरी की नकल कर पायें। खैर, आपने इसे सराहा… अच्छा लगा।
अच्छा मुद्दा उठाया-काश, इसी से कुछ सीख लेकर कभी कोई कुछ हिम्मत दिखा दे पर मुझे उम्मीद नहीं. 🙂
मीका ब्रेज़िंस्की के नैतिक साहस की जितनी तारीफ़ की जाए कम है . समाचारवाचक कोई नाली/पनारा नहीं है जिसमें चाहे जो गंदगी बहा दो . वह एक जीता-जागता इंसान है जिसके पास मानवीय मूल्यबोध है, नैतिक विवेक है .
70फ़ीसदी भारतीय इसे देखकर यही कहेंगे और मै भी कह रहा हूं
“काश………………………”
काश……………काश…………काश………
हमारे चैनल भी मनोहर कहानियां बनने से बच जाते
मानता हूँ यह एक साहस पूर्ण घटना है, नौकरी का खतरा उठा लेना कोई मामुली बात नहीं. बधाई की पात्र है.
अब दुसरा पहलू, जब कुछ गड़बड़ होती है तो टीवी प्रसारण रोक कर खेद है या ऐसा ही कुछ चलाने लगते है, जब ये मोहतरमा न्यूज फाड़ रही थी क्या एंगल मार कर दिखाया जा रहा था साथ ही हिल्टन की क्लीप भी चलाई गई. क्या यह समाचार को अलग अन्दाज में प्रसारीत करने का एक और तरीका तो नहीं?