एक साँड से मुलाकात
रोज़ आफिस जाते समय एक नथूने फुलाये सींगधारी से मुलाकात होती है। इसके आसपास पर्यटकों का ताँता लगा रहता है, लोग इसके पीठ पर बैठ, सींगों पर झूल या पूँछ के पास खड़े होकर चित्र खिंचवाते हैं। ये काँसे की बनी साढ़े तीन टन की एक प्रतिमा है जो लोअर मैनहटन में बोलिंग ग्रीन पार्क के नज़दीक स्थापित है। ये है “चार्जिंग बुल”।
इस भारी भरकम साँड की प्रतिमा की बड़ी रोचक दास्तां भी है। इसके शिल्पकार आर्टुरो मोडिका ने ये अपने खर्चे पर बगैर किसी के कहे बनाई। इस विशाल प्रतिमा की ढलाई कर अलग अलग हिस्सों को वेल्ड किया गया और 15 दिसंबर 1989 में जब इसे स्थापित करने का समय आया तो वे आधी रात अपने दोस्तों के साथ चुपके से ये अनाम प्रतिमा ब्रॉडस्ट्रटीट पर न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज के सामने रख आये। एक्सचेंज के सामने उस समय उनकी सालाना परंपरा के मुताबिक एक क्रिसमस ट्री भी लगा था और आर्टुरो ने प्रतिमा उसके नीचे ही लगवा दी। अगली सुबह इस प्रतिमा पर लोगों और मीडिया में चर्चे ही चर्चे थे। खैर इस बात से एक्सचेंज वाले नाखुश थे अतः अगले ही दिन उसे वहाँ से हटा लिया गया। परंतु जनता की गुहार और मीडीया के दबाव से दिसंबर 20 को चार्जिंग बुल को न्यूयॉर्क के पार्कों की देखरेख करने वाली सेवा ने अपने वर्तमान स्थान पर पुनः स्थापित किया और तबसे ये एक जाना माना शिल्प है।
आर्टुरो ने ये बनाने के लिये अपनी जेब से तो तकरीबन साढ़े तीन लाख डॉलर खर्चे ही थे, जब्त प्रतिमा को छुड़ाने के लिये उन्हें 5000 डॉलर और भी देने पड़े। 2004 में आर्टुरो ने प्रतिमा की नीलामी की भी घोषणा की थी, इस शर्त के साथ को प्रतिमा को अपने स्थान से हटाया नहीं जायेगा, वे नये मालिक का नाम प्रतिमा के साथ लगाने को तैयार थे। मुझे जाल पर खोजने से ये पता न चल सका कि ये नीलामी हुई कि नहीं, पर संभवतः यह नहीं हो पाई, वैसे भी न्यूनतम बोली 50 लाख डॉलर की रखी गई थी।
और अंत में अंदाज़ा लगाईये कि स्टॉक बाज़ार के उन्मादी टेस्टोस्टेरेन स्तर का प्रतिनिधित्व करने वाली इस प्रतिमा का कौन सा हिस्सा सबसे ज्यादा चमकता है। काँस्य प्रतिमाओं में साधारणतः जिस हिस्से को ज्यादा स्पर्श किया जाता वो अधिक पॉलिश्ड दिखता है और हमारे चार्जिंग बुल के वो हिस्से हैं उसकी नाक और…अंडकोष।
ये पोस्ट ईस्वामी को समर्पित 🙂
और आप साँड की आँखे चमकाने पर उतारू हो. ठीक है पटखनी दो साँड को हम भी देखने को रूके हुए है 🙂
अरे, लो कल्लो बात। मैं समझा कि कहीं स्वामी जी से ही तो न मिल आए!! 😉
दिलचस्प जानकारी एवं दिलचस्प खबर. शुक्रिया
गले मत मिल लेना. :०
तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.
समीर जी आपको शादी की सालगिरह मुबारक हो। बकिया इन को गले लगाकर कौन आफत मोल लेगा, एक बार पहले भी सिर्फ फोटो खींची थी 😉
हम भी यही समझे थे कि स्वामीजी के दर्शन हुये। लेकिन लगता है अभी साधना में कमी है।
धन्यवाद देबू दा!
जोखिमभरे निवेश और चढते बाज़ार की बात हो और टीवी पर ये प्रतिमा ना दिखाई जाए ऐसा हो ही नही सकता! 🙂
ये तो ईस्वामी का कोई मेले में खोया भाई लगता है। काश आज मनमोहन देसाई जिंदा होते तो इस पर एक फिल्म बना डालते। 🙂