डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर को एक व्यक्तिगत श्रद्धांजलि

डॉ. नार्लीकर केवल समीकरणों और ब्रह्मांडीय सिद्धांतों के वैज्ञानिक नहीं थे। वे उस पीढ़ी के प्रतीक थे, जिन्होंने विज्ञान को सामान्य जनमानस से जोड़ा।

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बढ़ती आर्थिक असमानता: भारत के विकास मॉडल पर सवालिया निशान

बी बीसी की इस हालिया रपट को पढ़ कर काफी चिंता हुई। इसके मुताबिक संरचनात्मक असमानता और तकनीकी बदलाव भारत के उपभोक्ता बाजार और आर्थिक प्रक्षेपवक्र को नया आकार दे रहे हैं। भारत की...

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कृत्रिम मेधा (AI): विरोध से परिवर्तन की ओर

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रति लोगों का विरोध दरअसल एक नई क्रांति की दस्तक है, जहाँ चुनौतियों को अवसरों में बदलने की कला सीखनी होगी।

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देखिये कौन कर रहा है गूगल अनुवादक का प्रयोग

भले मैं और आप और खास तौर पर भाषा शुद्धतावादी फिलहाल गूगल अनुवादक में नई जोड़ी गई हिन्दी अनुवाद की सेवा का फिलहाल प्रयोग न कर रहे हों पर लगता है स्पैमरों ने ज़रूर इसका इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है।

फ़ेसबुक, बाबा और क्रिसमस भंडारा

फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग हाल ही में भारत आये थे। कयास लगे भारतियों में बेतहाशा लोकप्रिय आर्कुट से इसी धरती पर दो दो हाथ करने का इरादा बना है। पर सारे कयासों के बीच असलियत कुछ और ही निकली। जानने के लिये पढ़िये पूरी पोस्ट।

ज़ेमांटा द्वारा अपनी ब्लॉगिंग में चार चाँद लगायें

ज़ेमांटा द्वारा अपनी ब्लॉगिंग में चार चाँद लगायें

ज़ेमांटा एक ब्राउज़र आधारित सिमेंटिक अनेलिससि इंजन है जो ब्लॉग पोस्ट लिखते समय लेखक को प्रासंगिक कड़ियाँ, चित्र, सामग्री और टैग सुझाता है जिससे पोस्ट लिखना बच्चों के खेल बन जाता है। फिलहाल यह केवल अंग्रेज़ी चिट्ठों के ही काम का है और केवल फायरफाक्स पर ही चलता है, पर यह लगभग सभी लोकप्रिय ब्लॉगिंग प्लैटफॉर्म जैसे ब्लॉगर, वर्डप्रेस, आदि के लिये उपलब्ध है। पढ़िये ज़ेमांटा के बारे में रोचक जानकारी। आप यह प्रविष्टि पॉडभारती पर सुन भी सकते हैं।

आग पर बैठे शहर

तहलका हिन्दी पत्रिका में झरिया की कोयला खदानों के गिर्द भूमिगत आग के बारे में रोचक खोजपरक लेख छपा है। निरंतर पत्रिका में अतुल अरोरा और मैंने आज से दो साल पहले इसी विषय पर एक और खोजपरक लेख लिखा था, एक दहकते शहर की दास्तान।

अंतर्जाल पर मानसिक विकृति की कमी नहीं

कुछ दिनों पहले ग्लोबल वॉयसेज़ हिन्दी के लिये मैंने एक पोस्ट का अनुवाद किया था। यह पोस्ट मालदीव में paedophiles यानि बाल यौन शोषकों के बढ़ते क्रिया कलाप पर केंद्रित थी। पर इस पोस्ट से किसी मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति की काम विकृति पूरी हो रही होगी इसका अंदाज़ा तो शायद कोई भी नहीं लगा सकता।

बड़े भोले हैं जी हम!

लोगबाग या तो वाकई भोले हैं या सिर्फ मज़े लेने के लिये पूरी मासूमियत के साथ खबरों पर यकीन कर उसका वाईरल प्रसार किये जाते हैं? क्या उन्हें पता नहीं कि अमिताभ शत्रुध्न विवाद फिलहाल प्रेस में क्यों बोया जा गया या फिर कि अमिताभ अचानक ब्लॉगिंग के मैदान में क्यों उतर पड़े?