डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर को एक व्यक्तिगत श्रद्धांजलि
20 मई 2025 को पुणे में डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भारत ने केवल एक महान खगोल भौतिकशास्त्री ही नहीं, बल्कि विज्ञान को आमजन से जोड़ने वाला एक अद्वितीय व्यक्तित्व खो दिया है।
मेरी उनकी सबसे पहली स्मृति 1980 के दशक के अंत की है, जब दूरदर्शन पर कार्ल सेगन की प्रसिद्ध शृंखला Cosmos का प्रसारण हुआ करता था। उस श्रृंखला की शुरुआत में डॉ. नार्लीकर का परिचय देना, उनका शांत, गम्भीर और स्पष्ट स्वर, आज भी मेरे कानों में गूंजता है। एक किशोर के लिए जो ब्रह्मांड को समझने की शुरुआत कर रहा था, वे कोई खड़ूस वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक आत्मीय मार्गदर्शक लगते थे।
बाद में अपने स्नातक कोर्स के दूसरे वर्ष में मुझे उन्हें प्रत्यक्ष देखने और सुनने का सौभाग्य मिला। वे हमारे रीवा स्थित विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान देने आए थे। उस समय मैं अपने एक मित्र श्री के साथ कॉलेज की भित्ती पत्रिका The Pioneer का सम्पादन करता था और मैंने उनके व्याख्यान पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट भी लिखी (चित्र देखें)।
व्याख्यान के बाद जब वे सभागार से निकल रहे थे, तो मैंने हिम्मत कर उनसे आटोग्राफ माँगा। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि वे ऑटोग्राफ देने के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन यदि मैं उन्हें एक पोस्टकार्ड भेजूं तो वे उत्तर अवश्य देंगे। जब मैंने उनका पता पूछा तो उनका उत्तर थ, बस “IUCAA, पुणे” पर भेज दो। (IUCAA यानी इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, जिसे उन्होंने ही स्थापित किया था।)
मैंने वह पोस्टकार्ड भेजा और हैरान करने वाली बात यह कि उनका उत्तर भी आया। उन्होंने मेरे कुछ मासूम सवालों के उत्तर दिए थे और अपने कुछ पुस्तकों का सुझाव भी दिया। वह पोस्टकार्ड तो मुझसे खो गया पर उस पत्र का मानवीय स्पर्श, आज भी मेरी स्मृति में जीवित है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि डॉ. नार्लीकर ने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई हिंदी माध्यम से की थी। उन्होंने न केवल अंग्रेज़ी, बल्कि हिंदी और मराठी में भी विज्ञान को सरल भाषा में लिखा और समझाया। उनके विज्ञान कथा उपन्यासों ने विज्ञान को कल्पनाओं के पंख दिए। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी वे सक्रिय रहे, महज एक साल पहले उन्होंने सबस्टैक पर ब्लॉग लिखना शुरू किया था।
डॉ. नार्लीकर केवल समीकरणों और ब्रह्मांडीय सिद्धांतों के वैज्ञानिक नहीं थे। वे उस पीढ़ी के प्रतीक थे, जिन्होंने विज्ञान को सामान्य जनमानस से जोड़ा। उन्होंने हम जैसे छात्रों को यह विश्वास दिया कि वैज्ञानिक न केवल पढ़े जा सकते हैं, बल्कि उनसे संवाद भी संभव है।
आपको नमन, सर। आपकी मुस्कान, आपके शब्द, और आपके विचार सदा हमारे साथ रहेंगे।