प्रिय श्रीमती जॉय डिश खुशाब आपा,

आपको याद होगा कि कुछ महीनों पहले आपने मुझे खत लिखा था। उम्मीद है आप सेहतमंद होंगी। आपका खत पढ़ने के बाद से रो रो कर मेरी आँखे बलूचिस्तान की डबलरोटी की मानिंद सूज गयी थीं। आपको बेवक्त हुये कैंसर का वाकया पढ़कर अल्लाह पर से तो मेरा यकीन ही उठ चला है। ये अहमक यह भी अब समझ सका की आपने ईसाईयत अपनानने का फैसला क्यों कर लिया होगा।

मैं यह खत आपको यह खास बात बतलाने के लिये लिख रहा हूं कि आपके साथ किस्मत ने और भी काफी बुरा खेल खेला है। आपके मियाँ जनाब डिश खुशाब जिन्हें आप मरहूम मानकर मुझे अपनी जायदाद सौंपने चलीं थीं तो आपसे भी एक कदम आगे निकले। आपके शौहर दरअसल एक नंबर के झूठे हैं, कल ही मुझे उनका खत मिला जिससे पता चलता है कि हजरत चीन में नहीं जाम्बिया में नोट छाप रहे थे। नौ साल आप अंधेरे में रहीं और इन जनाब ने आपको एक मोमबत्ती तक नहीं भेजी, पर अब ये मुझे अपने सारी जायदाद देने की सोच रहे हैं।

मुझे नहीं मालूम आप दोनो में से कौन ज़्यादा झूठा है। आप कहती हैं कि आपकी कोई औलाद नहीं और इन जनाब की बीवी और दो बच्चों का हाल ही में इंतकाल हुआ। खैर, अल्लाह आप दोनों को ऐसी हरकत करने पर भी बरकत दे, आपके पेपॉल और ईबे के खातों में दिन दूनी रात चौगुनी इज़ाफा हो और आप हर लॉटरी जीतें, यही इस नाचीज़ की दुआ है।

आपका अज्ञात शुभचिंतक