मंगल पर दंगल
कहने को तो हम à¤à¤• मà¥à¤•à¥à¤¤ समाज हैं, जहाठहमें बोलने की मà¥à¤•मà¥à¤®à¤² आज़ादी है पर यही आज़ादी बहस के नाम पर रोक टोक लगाने के à¤à¥€ काम आ जाती है। फिलà¥à¤®à¥‡à¤‚ तो à¤à¤¸à¥‡ मामलों में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤•ाश में आती हैं। कà¤à¥€ आपतà¥à¤¤à¤¿ फिलà¥à¤® के टाईटल पर तो कà¤à¥€ à¤à¤¤à¤°à¤¾à¤œà¤¼ कथानक या किरदार पर। आमिर खान की मंगल पांडे को पहले तो खराब पà¥à¤°à¥‡à¤¸ ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मिली फिर फिलà¥à¤® पिट à¤à¥€ गई। अवà¥à¤µà¤² तो à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• और पौराणिक पटकथाओं के कदà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ ही कम होते हैं, तिस पर आज के ज़माने में चीज़ रीमिकà¥à¤¸ न की हो तो जंचती नहीं। बहरहाल, आमिर मेहनती अà¤à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¤¾ हैं, फिलà¥à¤® के लिये सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को “à¤à¥‹à¤‚क” देते हैं (वैसे जिस तरह से वह सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को थोपते हैं, उस लिहाज़ से इस वाकà¥à¤¯ में निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤• “जोंक देते हैं” जà¥à¤®à¤²à¥‡ का à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— सही मानते), अपने होमवरà¥à¤• और रीसरà¥à¤š का गà¥à¤£à¤—ान करते वे थकते नहीं थे। इस बीच बी.बी.सी के à¤à¤• करà¥à¤®à¥€ मधà¥à¤•र उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ ने १८६० में बà¥à¤°à¤¿à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ सेना के à¤à¤• सूबेदार सीता राम पाणà¥à¤¡à¥‡à¤¯ की आतà¥à¤®à¤•था का अवधी रूपांतर जारी किया है। कहना न होगा कि मौका à¤à¥€ था और दसà¥à¤¤à¥‚र à¤à¥€à¥¤ अब उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ का कहना है कि केतन मेहता और आमिर का फिलà¥à¤® के कथानक की à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• सचाई का दावा बकवास है। कहा कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कोई शोध नहीठकिया, यहाठतक कि दिलà¥à¤²à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤²à¥‡à¤–ागार में तक नहीं गये जहाठमंगल पांडे के कोरà¥à¤Ÿ मारà¥à¤¶à¤² आरà¥à¤¡à¤° की मूल पà¥à¤°à¤¤à¤¿ संचित है। यानी कà¥à¤² जमा यह लांकà¥à¤·à¤¨ लगा दिया कि फिलà¥à¤® à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• रूप से सटीक नहीं हैं।
किसी à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• या पौराणिक घटनाकà¥à¤°à¤® के नाटà¥à¤¯ रूपांतरण में वाकई यह बड़ी दिकà¥à¤•त है। निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ पर वाहवाही व ईनामात बटोरने और बॉकà¥à¤¸ आफिस, सब का दबाव रहता है। ओथेंटिसिटी व à¤à¤•à¥à¤¯à¥‚रेसी का दावा करना पड़ता है और आलोचक तà¥à¤°à¤‚त जà¥à¤Ÿ जाते हैं दावों में दोष निकालने पर। वैसे न मैंने यह फिलà¥à¤® देखी है और न ही १८५ॠके संगà¥à¤°à¤¾à¤® की मेरी जानकारी सà¥à¤•ूली जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ है, पर मेरा विचार है कि निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾à¤“ं को अब परिपकà¥à¤µ हो कर à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• और पौराणिक घटनाओं में “फिकà¥à¤¶à¤¨” या कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• घटानकà¥à¤°à¤® का समावेश करने पर उसे सà¥à¤µà¥€à¤•ारने का साहस करना होगा। कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‡à¤Ÿà¤¿à¤µ फà¥à¤°à¥€à¤¡à¤® के आधार पर मà¥à¤à¥‡ यह सà¥à¤µà¥€à¤•ारà¥à¤¯ होगा की à¤à¤¸à¥€ फिलà¥à¤® बनें जिस में पटकथाकार यह कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करे कि महातà¥à¤®à¤¾ गांधी आज जीवित होते तो कà¥à¤¯à¤¾ होता, या फिर कि महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ में अरà¥à¤œà¥à¤¨ किसी हालत में à¤à¥€ शसà¥à¤¤à¥à¤° नहीठउठाते तो कथानक की दिशा कà¥à¤¯à¤¾ होती। दिकà¥à¤•त यही है कि निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¥€ परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ नहीं करना चाहते असलियत और कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ के दायरे को। जहाठपौराणिक घटनाओं से अकà¥à¤¸à¤° धारà¥à¤®à¤¿à¤• संवेदनाà¤à¤ जà¥à¥œà¥€ रहती हैं, तो à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• किरदारों के साथ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा और विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ का सवाल पैदा हो जाता है। हाà¤, à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• घटनाओं के फिलà¥à¤®à¥€à¤•रण में रिसà¥à¤• अपेकà¥à¤·à¤¾à¤•ृत कम होता है।
मेरे पसंदीदा निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤•ों में से à¤à¤• शà¥à¤¯à¤¾à¤® बेनेगल की à¤à¤• फिलà¥à¤® “कलयà¥à¤—” में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ को समकालीन सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤ में बयां किया था, à¤à¤• फिकà¥à¤¶à¤¨à¤² कथा का जामा पहनाकर। पूरी फिलà¥à¤® में कहीं à¤à¥€ महाकावà¥à¤¯ का हवाला नहीठदिया, निरà¥à¤£à¤¯ दरà¥à¤¶à¤•ों पर छोड़ दिया; पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ का पौराणिक टेमà¥à¤ªà¤²à¥‡à¤Ÿ पर चितà¥à¤°à¤£ किया पर हूबहू फॉलो नहीं किया। यह दीगर बात है कि फिलà¥à¤® उतनी चली नहीं, शायद सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤ दरà¥à¤¶à¤•ों के पलà¥à¤²à¥‡ नहीं पड़ा। और शायद इसी बात से फिलà¥à¤® निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ डरते à¤à¥€ हैं। संदेश अगर परोकà¥à¤· रूप से, पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•ातà¥à¤®à¤• रूप से दिये जाय, कथानक अगर कà¥à¤²à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हो तो, फिलà¥à¤® कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥‡à¤¸ की बजाय पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾à¤µà¤¾à¤¨ मॉसेस तक सिमट कर रह जाती है। मंगल पांडे फिलà¥à¤® की कहानी १८५ॠके सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤°à¥à¤¯ संगà¥à¤°à¤¾à¤® की पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि में पांडे जैसे सैनिकों के कà¥à¤°à¥‹à¤§ से समाज के à¤à¥€à¤¤à¤° बरà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ हà¥à¤•à¥à¤®à¤¤ और नीतियों के खिलाफ बà¥à¤¤à¥‡ रोष का चितà¥à¤°à¤£ संà¤à¤µ था, पर शायद यह फिर मॉसेस कि फिलà¥à¤® न रहती, यह किसी कला फिलà¥à¤® या à¤à¤¬à¥à¤¸à¤Ÿà¥à¤°à¥ˆà¤•à¥à¤Ÿ चितà¥à¤° जैसा हो जाता, जो चाहे सो मतलब निकाल ले। दूजा सच यह कि आज के ज़माने में हमें हर कथा में सà¥à¤ªà¤°à¤®à¥ˆà¤¨ नà¥à¤®à¤¾ किरदार चाहिये ही, यह सà¥à¤ªà¤°à¤®à¥ˆà¤¨ “डी” के पà¥à¥‡ लिखे अंडरवरà¥à¤²à¥à¤¡ सरगना या “बंटी और बबली” के बंटी हो सकते हैं जो थà¥à¤°à¤¿à¤² के लिये जà¥à¤°à¥à¤® करते है या फिर “सेहेर” का आदरà¥à¤¶à¤µà¤¾à¤¦à¥€ à¤à¤¸à¥€à¤ªà¥€ जो करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ के लिये जान दे देता है, या फिर डबलà¥à¤¯à¥‚.डबलà¥à¤¯à¥‚.à¤à¤« हूंकार à¤à¤°à¤¤à¤¾ बलवाकारी मंगल। तीजा ये कि, à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ टाईमिंग तो सही रखो, जब “à¤à¤—त सिंह” टाईप फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ का बाजार गरम था तब आपने ये बनानी शà¥à¤°à¥ की और फिर तीन चार साल तक बनाते ही रहे और यहाठज़माना वाया शाहिद†करीना à¤à¤®.à¤à¤®.à¤à¤¸ “नो à¤à¤‚टà¥à¤°à¥€” तक आ पहà¥à¤‚चा, अब आप परोस रहे हो। हैं à¤à¤ˆ!
वैसे निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾à¤“ं से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दरà¥à¤¶à¤•ों पर निरà¥à¤à¤° होता है कि दिशा कà¥à¤¯à¤¾ होगी। यहाठ“इकबाल” à¤à¥€ बनती है और “कà¥à¤¯à¤¾ कूल है हम” à¤à¥€à¥¤ तो उमà¥à¤®à¥€à¤¦ यही की जाय कि पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—धरà¥à¤®à¥€ फिलà¥à¤®à¤•ार à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• और पौराणिक विषयों को तौल कर लें, पर लें ज़रूर। सचà¥à¤šà¥€ बनाओ या कोरी कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤•, पर बनाओ दिल से। फिर नतीज़ा à¤à¤²à¥‡ ही डेविड सेलà¥à¤Ÿà¤œà¤¼à¤° लिखित “ओमेन” जैसा बाईबल का सरलीकृत बयान हो या फिर अशोक बैंकर के “रामायण” की तरह यपà¥à¤ªà¥€ और टेकà¥à¤¨à¥‹, पसंद ज़रूर की जायेगी। आखिरकार बाज़ार में पिज़à¥à¤œà¤¼à¤¾ और नान दोनों की खपत होती है।
बात तो à¤à¤•दम सोलह आने सही कह रहे हो à¤à¤‡à¤¯à¥‡.
पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ बात को आज के संदरà¥à¤à¥‹à¤‚ में ले के काम करना
चाहिये .हरिशंकर परसाई जी के बहà¥à¤¤ सारा लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ लेखन पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ घटनाओं को फंतासी में लिखने का था.पर अब कोई तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¨à¥‡ तब न!