लताजी को नहीं पता जी?
व्यक्तिपूजन हमारे यहाँ की खासियत है। मकबूलियत मिल जाने भर की देर है चमचों की कतार लग जाती है। मैंने एक दफा लिखा था राजनीति में अंगद के पाँव की तरह जमें डाईनॉसारी नेताओं की, दीगर बात है कि आडवानी ने बाद में दिसंबर तक तख्त खाली करने की “घोषणा” की। पर समाज के अन्य जगहों पर यह व्यक्तिपूजन चलता रहता है। हाल ही में प्रख्यात पार्श्व गायिका लता मंगेशकर का ७६वां जन्मदिवस था। टी.वी. पर अनिवार्यतः संदेसे दे रहे थे दिग्गज लोग। लता ग्रेट हैं। बिल्कुल सहमत हूँ। एक नये संगीत निर्देशक, जिनका संगीत आजकल हर चार्ट पर “रॉक” कर रहा है और जिन्हें अचानक पार्श्वगायन का भी शौक लगा है, ने कहा वे आज भी इंतज़ार कर रहे हैं कि कब लता दीदी उनकी किसी फिल्म में गा कर उन पर एहसां करेंगी। माना कि भैये वक्त रहते तुम गवा नहीं पाये उनसे, जब वे गाती थीं तब तुम नैप्पी में होते थे, पर कम से कम उनके गाने के नाम पर श्रोताओं को गिनी पिग मान कर प्रयोग तो ना करो यार! जिनकी आवाज़ अब जोहरा सहगल पर भी फिट न बैठे उसे तुम जबरन षोडशी नायिकाओं पर फिल्माओगे? हद है!
जावेद अख़्तर ने सही कहा, लता जैसी न हुई न होगी। बिल्कुल सहमत हूँ। मुझे बुरा न लगेगा अगर आप उन्हें नोबल सम्मान दे दो, उनकी मूर्ति बना दो, मंदिर बना दो, १५१ एपिसोड का सीरियल बना दो चलो, पर सच तो स्वीकारो। मानव शरीर तो एक बायोलॉजीकल मशीन ठहरी, जब हर चीज़ की एकसपाईरी होती है तो क्या वोकल कॉर्ड्स की न होगी? मुझे लता जी के पुराने गीत बेहद पसंद है, उनके गाये बंगला गीत भी अद्वितीय है, पर “वीर ज़ारा” में उन को सुन कर लगा कि मदन मोहन भी अपनी कब्र में कराहते होंगे। बहुत राज किया है इन्होंने, लता आशा के साम्राज्य में सर उठाने को आमादा अनुराधा पौडवाल को गुलशन कुमार जैसे लोगों का दामन थामना पड़ा, और जब तक आवाज़ का लोहा माना तब तक बेटी गाने लायक उम्र में पहुँच गई। आज भी टेलेंट शो न जाने कितने ही माहिर लोगों को सामने लाते हैं पर सब “वन नंबर वंडर” बन कर गायब हो जाते हैं। श्रेया घोषाल जैसे इक्का दुक्का ही नाम पा सके।
मेरे विचार से यह ज़रूरी है कि निर्माता और संगीत निर्देशक इस बात को समझे और लता स्तुति छोड़ें, हर चीज़ का वक्त होता है, लता आशा अपने अच्छे वक्त को बहुत अच्छे से बिता चुकी हैं, वानप्रस्थ का समय है, उन्हें इस का ज्ञान नहीं हुआ पर आप तो होशमंद रहें।
लताजी के गायन के बारे में ठीक ऐसे ही विचार मेरे भी रहे हैं और लिखे भी हैं!
कहने वाले कहते हैं की हेमलता, कमल बरोठ, वाणी जयराम, शारदा, सुमन कल्याणपुर, चन्द्रिका मुखर्जी जैसी आवाजों को इसी व्यक्तिपूजन के चलते (या लताजी के रूठने के डर से) संगीत निर्देशक मौका नही देते थे – सच क्या है कौन जाने. हां लता सबसे बेहतर रही होंगी पर अब सचमुच वानप्रस्थ का समय है.
bhaiye vanprasth to 50-75 main padta hai, 76 main to sidhe sanyaas ka samaya aa jata hai.
bilkul sahi hai sanyas ka vaqt hai…..eswami ke bataye hu gaayika waqai me telented thi lekin….kyon ki? aur unki lag gayi….
चलो सन्यास ही सही! मुझे तो लग रहा था कि लता की बुराई सुन कर लोग बखिया उधेड़ देंगे।
मैंने भी ऐसा काफ़ी कुछ सुन रक्खा है। कुछ ही सालों पहले तक मैं सोचता था कि गाना ‘न तुम हमें जानो, न हम तुम्हे जानें’ लता जी का गाया हुआ है। जब पता चला कि ये सुमन कल्याणपुर ने गाया है तो मैं उनकी कैसेट्स का पूरा संग्रह उठा लाया। फिर पता चला कि कितनी बड़ी कलाकार थीं वे।
हेमलता के सुरेश वाडेकर के साथ गाए हुए गाने मेरे बचपन की यादें हैं। जयदेव, कल्याण जी आनन्द जी, ओ पी नय्यर जैसे कुछ ही संगीत निर्देशक थे जो लता जी के साम्राज्य को टक्कर देते थे। वैसे मैं मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर का एक दोगाना बहुत देर से ढूंढ रहा हूं ‘तुम जो आओ तो प्यार आ जाए, ज़िन्दगी में बहार आ जाए’। किसी के पास हो तो क्रुपया मुझे भेज दें।
aap log lata jee ka barea mani aisa kah rahai hai yah to bilkul hi achchi bat nahi hai kyki wo ek sursamragyi hai aur kisi vi idole ka baren main aisa kahana sova nahi data hai.
lata jee ek sarswati ka avatar hai. aap logo ko aisa nahi kahan chahia…