साइबर मुहल्ला से जाहिर एनडीटीवी का छुपा अजेंडा
स्पष्टिकरणः यह समूची पोस्ट अप्रेल फूल बनाने के लिये लिखी मजाकिया पोस्ट है, इसमें कही बातें सरासर गप्प हैं और केवल मजे लेने के लिये ही लिखी गई हैं।
पाठकों को याद होगा कि चिट्ठा चर्चा में मेरे लगाये कयास पर एनडीटीवी के अविनाश ने टिप्पणी की थी के ये केवल उनका व उनके सहयोगियों की निजी रुचि का मामला है। हमने यकीन भी कर लिया। फिर पत्रकारों की चिट्ठाकारी और व्यावसायिक चिट्ठाकारी जैसे सारे विषय भी सामने आ गये। पर आज अंतर्जाल पर चहलकदमी के दौरान अपने रेफरर लॉग से मुझे सहसा ही एक नया पता दिखा और कौतुहलवश देखने पर सारा माजरा साफ हो गया। अपनी बात साबित करने के लिये मैंने इस साईट का स्क्रीन ग्रैब भी संजो कर रखा है। यदि आप http://www.mohalla.ndtv.com पर जायें तो आपको पता चल जायेगा कि एनडीटीवी समूह की हिन्दी ब्लॉगिंग से नोट छापने के इरादों पर लगाये अंदाज़े कपोल क्लपना से सचाई में बदल चुके हैं। एनडीटीवी साइबर मोहल्ला नाम से यह जालस्थल एक हिन्दी ब्लॉग पोर्टल की शक्ल में बनाया जा रहा है, साईट अभी बीटा में ही है, शायद काम अब भी चल ही रहा है क्योंकि कुछ हिस्से अंग्रेज़ी में दिखते हैं। साथ ही हिन्दी हिज्जों की गलतियाँ भी आश्चर्यजनक है मसलन “आज के ताज़ा पोस्ट” ग्राफिक में, चिट्ठों को भी “चिट्टे” लिखा गया है। टॉप चिट्ठाकारों की सूची से भी दिखता है कि “नारद” की बजाय मुहल्ला का लाड़ला “हिन्दी ब्लॉग्स” ही होने वाला है और साथ ही ये भी कि अविनाश के मुहल्ले पर पचौरी और रवीश का पदार्पण मात्र संयोग नहीं था। साइट से उड़न तश्तरी जैसे वजनदार और रवि जैसे कामयाब चिट्ठाकारों के भी जुड़े होने का पता लगता है हैरत की बात ये है कि सबने ये बात छुपा कर रखी यहाँ तक कि आज सवेरे भी रवि भैया से फोन पर बात हुई पर उन्होंने परियोजना की भनक तक नहीं लगने दी। हॉलिवुड सेक्सी स्टार जैसे चिट्ठों को दी जा रही प्रमुखता से पता चलता है कि मुहल्ले पर ओढ़ा गंभीर चोला जल्द ही त्यजने जा रहे हैं। कमाल की बात ये है कि बड़ी कंपनियों के अंदर की खबर रखने वाले जीतू को भी इस बात की हवा नहीं लगी।
पुनश्चः लगता है ये साईट गलती से आनलाईन थी क्योंकि मेरे पोस्ट लिख कर प्रेषित करने तक ही यह साईट डाउन है। भला हो कि मैंने चित्र संभाल कर रखा था जो अब पोस्ट कर रहा हूँ। एक और हैरत की बात ये कि इन्होंने मुझसे बिना पूछे मेरे स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह वाले चिट्ठे भी दिखाये है जिसका मैं समय आने पर पूरा प्रतिवाद करुंगा।
अचानक पत्रकारों और रिपोर्टरों की बाढ हिंदी ब्लोगिंग में आने में कुछ राज तो जरूर था आज आपने बता भी दिया। शक मजबूत हुआ मोहल्ले के कंट्रोवर्सियल लेखों से, अब बताये कोई इन पत्रकारों और रिपोर्टरों का कोई कैसे यकीन करे।
अगर आज की तारीख न देखता तो या तो आपके दिमाग पर तरस खाता, या रोता या प्रतिकार करता. मैं जानता हूँ आपने मजाक किया है…सो जाने देता हूँ. वरना आपकी कनाडा यात्रा का निमंत्रण तो तय था मान हानि और चरित्र हनन के मुकदमें मे अपने बचाव के लिये. कम से कम घूम जाते और मुलाकात तो हो ही जाती. 🙂 किसी और तारिख को लिखना तब आपका मष्तकाभिषेक किया जायेगा. 🙂
आज ही हमारा इंटरव्यू छपा है मोहल्ले पर जिसका शीर्षक है-“भाईचारे की भावना के साथ चल रही है हिंदी ब्लॉगिंग” और अब यहां यह भंडाफोड़ टाइप सूचना भी मोहल्ले वालों के भाईचारे का ही विकास है। हमारे ही भाई लोग जुड़ रहे हैं आखिर वहां भी! 🙂
जिसकी जो फितरत होती है वह करता ही है, उसे कोई रोक नहीं सकता! बनाने दो साइट, पोर्टल जो बनायें। जो करेंगे हिंदी में ही करेंगे। आगे आने वाले समय में इस तरह की घटनायें बढ़ेंगी हीं। जिन लोगों के वहां फोटो लगे हैं वे इससे जुड़े ही हैं यह कैसे पता चलेगा? जब तक ये लोग सत्यापित न कर दें! जब तुम्हारी साइट तुम्हारी अनुमति के बिना वहां लगी है तो रवि रतलामी, प्रतीक, समीर लाल के भी चित्र ऐसे ही लगे हो सकते हैं।
वैसे आज बेवकूफ बनाने का इंतजाम तो नहीं किये हो तुम या मोहल्ले वाले!
मैं यह टिप्पणी ३१ तारीख को ही लिख रहा हूँ, कम से कम लिखना शुरू कर रहा हूँ। हो सकता है कि जैसा समीर जी ने कहा है, यह सब तारीख से जुड़ा एक मज़ाक हो। नहीं भी हो तो कोई किसी का क्या बिगाड़ लेगा। भई, एनडीटीवी वालों को जितना हक ब्लॉग शुरू करने का है, उतना ही उसे गुप्त रखने का है। उतना ही हक उस से जुड़े लोगों को है, अपने इरादों को गुप्त रखने का। हाँ दोस्तों से उम्मीदें होतीं हैं – वह बात अलग है। आप का इन्वेस्टिगेटिव ब्लॉगिंग धमाकेदार है, यह बात अलग है। हाँ, यह तो लगता है कि गुड ओल्ड सीधे सादे ब्लॉगरों के दिन लद गए। यदि यह खबर सही हुई तो मैं ने जो तिर्यकविचारक के रवि भाई को अविनाश से जोड़ने के विरोध में जो टिप्पणी की थी, वह वापस लेनी पड़ेगी।
आपने पहली तारिख को मजेदार बना दिया 🙂 काफी मेहनत की है. 🙂
सचमुच मज़ेदार रिपोर्ट है। मज़ा आ गया। लेकिन दफ्तर के लोगों ने मुझसे भी ये योजना छुपायी। अब मैं जाकर सबकी ख़बर लेता हूं… कि मेरी दुकानदारी बंद कराने के लिए यह नयी दुकान क्यों खोली? जल्दी बंद करो, नहीं तो एक-एक को देख लूंगा।
यह भी खूब रही। जोक है तो भी सच है तो भी। 🙂
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा……(गलिगलगूब)
अप्रैल फूल!!!
१८ मार्च को जब मैं सृजन-शिल्पी जी से मिलने उनके आवास गया था तो पता चला कि गली, मुहल्ले और कस्बे वाले सब उनका आशीष लेते रहते हैं। क्या लिखना है, कैसे अपने हिट्स बढ़ाना है इसकी भी चर्चा पहले कर लेते हैं। यह तय करते लेते हैं कि शीर्षक को कैसे लिखा जाये ताकि ये भोले ब्लॉगर बेवकूफ़ बन जायें? उनका उद्देश्य अंतरजाल पर हिन्दी का विकास में भागीदार कम है, अपितु उनकी सारी जुगत लोकप्रिय होने की है। मगर अफ़सोस की बात है कि हमारे सम्मानित चिट्ठाकार भी इसमें अपना योगदान दे रहे हैं। अगर अब भी नारद वाले अपना हिट्स काऊँटर नहीं हटाते तो यह हम सबका दुर्भाग्य होगा। हिन्दुस्तान टाईम्स और दैनिक हिन्दुस्तान में मोहल्ला वालों की जो ख़बर छपी थी उसके बारे में सीएमएस मीडिया लैब के मीडिया प्रबंधक श्री प्रभाकर सिंह जी ने मुझे बताया था कि यह रिपोर्ट प्रायोजित है। मगर यह बात मुझे साधारण लगी थी। मगर एक विशेष बात पर उन्होंने मेरा ध्यान आकृष्ट कराया था जिसपर मैं नहीं सोच सका, आज ,समझ में आ चुकी है। आपलोगों के समक्ष रख रहा हूँ।
रवीश या जो भी ईश, आश हैं मोहल्ला-कस्बा के, हिन्दी-ब्लॉगिंग (टाईपिंग, पोस्टिंग, कमेंट का प्रतिउत्तर) कब और कहाँ देते हैं? अपने ऑफ़िस टाईमिंग में, अपने ऑफ़िस के नेट का प्रयोग करके। यानी कि अभी तक उनकी नौकरी इस बेईमानी के लिए नहीं छीनी गई, इसका मतलब कि एनडीटीवी प्रबंधन को इसकी सूचना नहीं है या यह काम कहीं एनडीटीवी इंडिया द्वारा ही आयोजित तो नहीं हैं तो हम ब्लॉगरों की मेहनत से पकी मेहनत को उड़ा ले जाना चाहते हैं?
अब सब साफ़ हो चुका है कि यह सब एनडीटीवी वालों की चाल है।
देवाशीष भाई, क्या किया जा सकता है? आप बतायें।
मजा आ गया 🙂 बहुत खूब ।
ग्राफिक कमाल का है 😉
ओह!! मै तो सच मे डर ही गई थी कि अब और पता नही कौन सा घमासान होगा..जब मामले निपटाने वाले खुद ही उलझ जायेंगे तब्..
देबूदा, देरी से बताने के लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ। दरअसल मैं एनडीटीवी वाली इस परियोजना के बारे में बताने ही वाला था। सोचा था कि जब काम पूरा हो जाएगा तो आप लोगों को सूचित कर दूँगा। फ़िलहाल इसे लाँच होने में दो-तीन महीने और लगेंगे। हालाँकि इसमें षड्यंत्र जैसी कोई चीज़ नहीं है।
@ शैलेश भारतवासी जी,
आपने अपनी टिप्पणी में मेरे हवाले से जो कुछ कहा है वह निराधार है। मोहल्ले के शुरुआती दिनों में अविनाश हिन्दी ब्लॉग जगत के बारे में कुछ बुनियादी किस्म की बातें जरूर पूछते रहते थे, लेकिन मोहल्ले पर की जाने वाली हरकतों के पीछे ‘मेरा आशीष’ कभी नहीं रहा। वह हर किसी से सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ साधने की फिराक में रहे हैं। सचाई तो यह है कि मुझे उनके इरादों में वह मासूमियत कभी नजर नहीं आई जैसा कि वह जताने की कोशिश करते रहे हैं। एनडीटीवी में पक रही इस खिचड़ी के बारे में मुझे कोई भनक तो नहीं थी, लेकिन इस तरह का शक हमेशा से रहा है और इसे देबू दा भी जानते हैं।
सृजन शिल्पी से मैंने कभी उम्मीद नहीं की कि वो मुझे मासूम समझें। मोहल्ले के मुद्दों को हरकत की संज्ञा देने पर उनकी समझ ही ज़ाहिर होती है। वैसे भी आशीष देने गुरुओं से मैं हमेशा दूर रहा हूं। हम साथी परंपरा के लोग हैं, इसी परंपरा में रहना चाहते हैं।
मेरे झूठ से सृजनशिल्पी और अविनाश के बीच की जो तल्ख़ियों हुईं, उन्हें पढ़कर बहुत मज़ा आया। उधर देबाशीष ने लिखा है कि उन्हें मेरी बातें बहुत सीरियस लगीं यानी कि वे भी बेवकूफ़ बन गये। मगर एक जगह मैं भी बेवकूफ़ बना, मैंने सोचा कि सृजनशिल्पी पर जब कीचड़ उछालूँगा, तो ज़रूर वो आग-बबूला होकर मुझे गरियाने के लिए फ़ोन करेंगे, मगर बंदा बहुत चालाक निकला, रात तक फ़ोन का इंतज़ार कराते रहे मगर शायद १ अप्रैल की महानता उन्हें पता थी। मैं भी बेवकूफ़ बन गया। खैर जो भी हो, देबू दा धन्यवाद के काबिल हैं।
वाह! चिट्ठों पर 1 अप्रेल ऐसे मनता है।
देबु दा बधाई, यकीनन यह पोस्ट आज के फूल्स डे की सर्वश्रेष्ठ पोस्ट रही। थोड़ा तकनीकी फिशिंग की कोशिश मैंने भी की थी पर लगता है अभी बहुत कुछ सीखना होगा। 🙂
gat katipay dino se MOHALLA se gujarate huwe mujhe bhi pratit ho raha tha ki kahin koi khichari pak rahi par aapne bhandaphor kar bahut achcha karya kiya hai .
Sab Baazar Ki maya hai .. aap kya sochate hain.. issase ko achhuta rahega…
Bharhal shukriya aapka…
parde ke peeche ki dunia dikhane ke liye …