दौड़ बदलाव की
यदि मेरे यूँ नाक भौं सिकोड़ने से आप मुझे सहिष्णुता जैसा प्राचीन (और जिसे विलुप्त भी माना जा सकता है) न मान लें तो आज के युवा वर्ग पर मुझे कई मामलों में विस्मय और नाराज़गी की मिश्रित अनुभूति होती है। लड़के स्त्रियों की भांति मशरूम केश सज्जा के कामिल हैं, कानों में “बिंदास” बालियां पहनते हैं, तो कन्याएँ मय टीशर्टॆ व पतलून अपना पुरुषत्व दिखाने की होड़ में हैं। बिंदी हिन्दी की ही तरह पिछड़े लोगों की पहचान मानी जाने लगी है, साड़ी तो दूर की बात है सलवार कमीज़ से भी “बहनजी” कहलाए जाने का खतरा रहता है। अपने ब्वॉय फ्रेंड के साथ मोटरसाईकल पर चिपककर बैठकर, पीछे से उठी टीशर्टॆ बार बार नीचे खिंचते हुए ये कन्याएं शो-बिज़नेस से प्रभावित हैं। चमड़ी की व्यापारी मल्लिका शेरावत इनकी पथ प्रर्दशक हैं। पैसे और शोहरत की रेस लगी है, हर कोई किसी “टेलेन्ट हंट” में जीतकर रातोंरात बुलन्दियों को छूना चाहता है। इसके लिए “कुछ भी” करने को तैयार हैं, शादीशुदा अपनी पहचान छुपाकर, घर से भागकर सफलता की गाड़ी में सवार होना चाहते हैं।
समाचार पत्रो पर नज़र डालें, कुछ साल पहले तक परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं के जांचते समय परीक्षक को चिरौरी भरे कुछ ऐसे नौट मिलते थे,”सर, दिन भर घर के काम में जुटे रहना पड़ता है, तीन महीने बाद मेरी शादी है, मुझे प्लीज पास कर देवें”, आजकल की भाषा काफी बदल गयी है, अब पास होने के एवज़ में ये बालाएँ “कुछ भी” करने को तैयार हैं। ये “ब्यूटिफुल” समाज वैसे केबल टीवी के आने से “बोल्ड” हो ही गया था, रही सही कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी है। यहां तो सेंसर का भी जोर नहीं चलता। आकर्षण तो पहले भी होता था अब इज़हार के तरीके बदल गए हैं, युगल एक साथ बंद केबिन में सूचना हाईवे पर प्रेम के मायने तलाशते हैं, एक माह पहले और प्रशासन की मार पड़ने तक मेरे शहर के इंटरनेट कैफे उनकी हर ख्वाहिश पूरी कर देते थे, पुलिसिया खोज ने कई स्थानों पर एटैच्ड शयनकक्ष भी खोज निकाले। सरकार करोड़ों खर्च कर जिन संचार माध्यमों पर “संयम से सुरक्षा” की मुनादी कर रही है, उन्हें तो केबल वाले डंडे के जोर से भी दिखाने को राजी नहीं, तो यह पीढ़ी संयम सीखे कैसे? भारत में सर्वाधिक संख्या युवाओं की है और एड्स के रोगियों की सबसे ज्यादा तादात भी यहीं है।
नवीन और पुरातन की हाथापाई तो हर युग में जारी रहती है, पर बदलाव के इस दौर का मुख्य जरिया शरीर बन गया है। ये प्रक्रिया क्या गुल खिलाएगी, क्या जाने?