अमेरिका में चलेगी गाँधीगिरी?

इराक से हिसाब बराबर करने के बुश के तरीकों, जिसमें अमेरीकी पैसा और खून दोनों ही बहाये गये, को भले लोग कोसें, अमेरीकी सिनेटर और अमेरीकी राष्ट्रपति पद के संभावित रिपब्लिकन प्रत्याशी और अभिनेता फ्रेड थॉम्पसन मानते हैं कि गाँधीवाद अमेरिका के लिये कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने हाल ही में वक्तव्य दियाः “द्वितीय विश्वयुद्ध […]

युवा नेताओं की वाकई ज़रूरत है

विगत पोस्ट में राजनीति में युवा नेताओं के आगे बढ़ने की बात की तो कुछ युवा तुर्क याद आ गये। भारतीय राजनीति कि विडंबना है कि उच्च पदों की चढ़ाई एवरेस्ट की चढ़ाई करने जैसा है। जब तक चोटी के नज़दीक पहूँचते हैं शरीर जर्जर हो जाता हैं। न जिगर में महत्वाकांक्षा रहती है, न […]

सत्ता का भोग

हालिया असेंबली चुनावों के बाद काँग्रेस के हौसले बुलंद हैं। महिनों से जारी प्रक्रिया अंततः रंग ला रही है और राजकुमार के ताजपोशी के संकेत प्रबल होते जा रहे हैं। सरकारी प्रसार माध्यमों की टेरेस्ट्रीयल पहुँच बेजोड़ है, ये फ्री टू एयर हैं और यही कारण है कि कोई भी सत्तारूढ़ दल प्रसार भारती को […]

अब तो छोड़ो मोह!

हाल ही में हास्य कवि प्रदीप चौबे के दो‍ लाईना पर पुनः नज़र पड़ीः काहे के बड़े हैं, अगर दही में पड़े हैं। सत्ता को लालायित भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बारे में यह काफी सटीक वचन हैं। सत्ता से विछोह के बाद से उपरी तौर पर सुगठित दिखने वाले संगठन की अंदरूनी दरारें तो […]

कोई कहे कहता रहे

नेता बनने के लिये जिस्मानी और रूहानी खाल दोनों का मोटी होना ज़रूरी है। जीवन का आदर्श वाक्य होना चाहिये “कोई कहे कहता रहे कितना भी हम को…”। बेटे के साथ अन्याय के नाम पर कब्र मे पैर लटकाये करूणानिधि ने नई पार्टी तैरा दी, राज्यपाल बूटा सिंह के राज्य की नौका के पाल खुलम्म […]

सप्ताह का किस्सा

चापलूसी की हद