शुरुआती ईवी के विपरीत, नए मॉडलों में अक्सर सीलबंद बैटरी पैक होते हैं, जो मरम्मत और रीसाइक्लिंग रोक कर पर्यावरणीय चुनौतियां पैदा करते हैं।
आगे पढ़ेंकश्मीर और पाकिस्तानी अंर्तविरोध
मेहमान का चिट्ठाः नितिन मेरा यह मानना है कि जब तक पाकिस्तान अपने भारत-विरोध को छोड़ खुद अपनी राह पर नहीं चलता तब तक उप-महाद्वीप में पूर्ण शांति की आशा नहीं की जा सकती। 1947 के बाद चाहे-अनचाहे पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्टृ बन गया है, यह एक सत्य है। लेकिन स्वतंत्र पाकिस्तान की अपनी स्वतंत्र […]
काव्यालयः बनकर याद मिलो
कॉलेज के दिनों में हर कोई कवि बन जाता है, कम से कम कवि जैसा महसूस तो करने लगता है। जगजीत के गज़लों के बोलों के मायने समझ आने लगते हैं और कुछ मेरे जैसे लोग अपनी डायरी में मनपसंद वाकये और पंक्तियाँ नोट करने लगते हैं। कल अपने उसी खजाने पर नज़र गयी तो […]
संचार माध्यम और सामाजिक दायित्व
भारतीय टेलिविज़न परिदृश्य के सन्दर्भ में बात करें तो आप को दो स्पष्ट समूह मिलेंगे। एक ओर तो सरकारी टेलिविज़न दूरदर्शन है और दूसरी तरफ उपग्रह चैनलों का झुण्ड। दोनों की कार्यप्रणालियों में खासा अंतर है। दूरदर्शन पारंपरिक तौर से सत्तारूढ़ दल का सरकारी भोंपू बना रहा है। अगर इस बात को नज़रअंदाज़ कर सकें […]
दोस्ती की रिश्वत
जिह्वा ने हसीब के एक हास्यास्पद लेख की चर्चा इस चिट्ठे में की है। हसीब का मानना है कि अगर कश्मीर जीतना है तो भारत को पाकिस्तान से आगामी क्रिकेट श्रृंखला हार जाना चाहिए। हैरत होती है कि कलमकार कागज पर कश्मीर जैसी समस्या का किस तेजी से हल निकाल लेते हैं। तरस भी आता […]
बाहुबली बनने चले बुद्धिजीवी
सागरिका घोष मानती हैं कि भाजपा के मन में यह पेच रहा है कि वह बुद्धिजीवियों, कलाकारों और इतिहासकारों का दिल नहीं जीत पाई। सर विदिया को मंच पर ला कर वे इस बात को झुटलाना चाहते हैं। कैसी विडंबना है कि जिस जमात के विचारों को छद्म धर्मनिरपेक्षतावाद या वामपंथी विचारधारा बता कर खारिज […]
वनवास से वापसी
तकरीबन 3 सप्ताह के ब्लॉग वनवास के बाद वापसी हो रही है। अभी पूर्ण रूप से मन भी नहीं बन पा रहा है। सब नया सा लग रहा है। 12 फरवरी, 2004 को मेरी माताजी के पेट के अल्सर की शल्यक्रिया की गई। सब ठीक रहा, वो अब घर आ गईं हैं। सुखद बात ये […]