बी बीसी की इस हालिया रपट को पढ़ कर काफी चिंता हुई। इसके मुताबिक संरचनात्मक असमानता और तकनीकी बदलाव भारत के उपभोक्ता बाजार और आर्थिक प्रक्षेपवक्र को नया आकार दे रहे हैं। भारत की...
आगे पढ़ेंबाहुबली बनने चले बुद्धिजीवी
सागरिका घोष मानती हैं कि भाजपा के मन में यह पेच रहा है कि वह बुद्धिजीवियों, कलाकारों और इतिहासकारों का दिल नहीं जीत पाई। सर विदिया को मंच पर ला कर वे इस बात को झुटलाना चाहते हैं। कैसी विडंबना है कि जिस जमात के विचारों को छद्म धर्मनिरपेक्षतावाद या वामपंथी विचारधारा बता कर खारिज […]
वनवास से वापसी
तकरीबन 3 सप्ताह के ब्लॉग वनवास के बाद वापसी हो रही है। अभी पूर्ण रूप से मन भी नहीं बन पा रहा है। सब नया सा लग रहा है। 12 फरवरी, 2004 को मेरी माताजी के पेट के अल्सर की शल्यक्रिया की गई। सब ठीक रहा, वो अब घर आ गईं हैं। सुखद बात ये […]
पहला संस्कृत चिट्ठा
अत्यंत हर्ष की बात है कि चिट्ठों की दुनिया में पहला संस्कृत चिट्ठा जसमीत ने कौटिल्य उपनाम से लिखना प्रारंभ किया है। अहो भाग्यम्! आशा है वे नियमित रूप से लिखेंगे।
बाल मजदूरी और हम
मेहमान का चिट्ठा: चारू एक सीधा सादा सवाल करती हुँ, बाल मजदूरी क्या है? ज़रा इस व्यक्तव्य पर नज़र डालें… विश्व में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं, विश्वस्त अनुमानों के अनुसार भारत में बाल मजदुरों की संख्या 6 से 11.5 करोड़ के बीच है। शिवकाशी के पटाखा कारखानों में, बीड़ी और कालीन बनाने […]
क्या वोट डालना अनिवार्य कर देना चाहिए?
आज के दैनिक भास्कर में मनोहर पुरी ने अपने एक लेख* में एक महत्वपूर्ण बिंदू पर चर्चा की है। क्या वोट डालना अनिवार्य कर देना चाहिए? हालांकि लेखक के इस तर्क से मैं कतई सहमत नहीं कि वोट न डालने वालों को सरकार के कलापों पर नुक्ता चीनी का हक नहीं होना चाहिए पर हाँ […]
अभिव्यक्तिः एक नया हिंदी चिट्ठा
शैल का हिंदी चिट्ठा अभिव्यक्ति इस श्रृंखला में एक और कड़ी है। लख लख बधाईयाँ शैल! हिंदी चिट्ठों की जमात में आपका स्वागत है।