मेहमान का चिट्ठा: चारू


एक सीधा‍ सादा सवाल करती हुँ, बाल मजदूरी क्या है? ज़रा इस व्यक्तव्य पर नज़र डालें…

विश्व में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं, विश्वस्त अनुमानों के अनुसार भारत में बाल मजदुरों की संख्या 6 से 11.5 करोड़ के बीच है। शिवकाशी के पटाखा कारखानों में, बीड़ी और कालीन बनाने वाले, पत्थर के खदानों और धान के खेतों में कमरतोड़ मेहनत करने वाले बच्चों के बारे में तो सबने सुना है लेकिन उन बच्चों के बारे में कोई चर्चा नहीं होती जो आपके और मेरे घरों में काम करते हैं।

मुम्बई में मेरे घर काम करने वाली बाई हर रोज़ अपनी 13 साल की बेटी को अपने साथ लाती है। पहले पहल तो मुझे लगा कि शायद वो बच्ची को सिर्फ अपने संगत में रखना चाहती है, पर धीरे‍ धीरे उसने छोटे मोटे काम भी करना शुरू कर दिया। पहले पोंछा लगाने लगी, और अब हाल ये है कि वो अपनी माँ से 15 मिनट पहले आ कर काम शुरू कर देती है ताकि उसे आसानी हो। जब मैंने प्रतिरोध किया तो माँ का जवाब था, “दीदी, वो तो सिर्फ मेरे काम में हाथ बंटा रही है”। “..कल से उसे घर छोड़ कर आना”, मैंने कहा। इस पर बाई का जवाब था, “उसे घर पर कैसे छोड़ सकतीं हूँ दीदी, वो तो अभी इत्ती छोटी है..”

देखा जाए तो मेरी बाई गरीब नहीं है। अपने मर्द के साथ मिल कर अच्छा खासा कमा लेती है, घर में टीवी है, बच्ची को स्कूल भी भेजती है। कहने का मतलब ये कि बच्ची का कहीं कोई शोषण नहीं हो रहा, ना ही अत्यधिक गरीबी की वजह से उसे काम करना पड़ रहा है…मुस्करा के काम करती है बिल्कुल जैसे मैं अपनी माँ की रसोईघर में मदद करती।

ये बच्ची स्कूल जाती है, अभी आठवीं कक्षा में है। क्या यह बच्ची अपने अधिकारों से वंचित है? क्या इसे बाल मजदूरी मान जाए? क्या इसमें मेरा भी दोष है? अगर हाँ तो इसका हल क्या है? क्या मैं अपनी बाई पर जोर डालूं कि वह अपनी बेटी को अपने साथ न लाए? पर क्या मैं उसे दूसरे घरों में काम करने से रोक पाउंगी? या फिर मैं इसे स्वीकार कर उसका काम और जीवन जितना हो सके उतना आसान बना दूं? दरअसल अभी तो मैं यही कर पाती हूं…पर…बाल मजदूरी का अंत फिर कैसे होगा?

“मेहमान का चिट्ठा” नुक्ता चीनी का पाक्षिक आकर्षण होगा। इस पक्ष की मेहमान मेरी मित्र श्रीमती चारुकेसी हैं। हाल ही में मुम्बई में बसीं चारु अपने अंग्रेज़ी चिट्ठे ए टाईम टू रिफ्लेक्ट में मुख्यतः सामाजिक और विकास के मुद्दों पर लिखती हैं।