अमरीका आने के बाद भारतियों को सबसे अधिक तकलीफ किस चीज़ से होती होगी? मेरा तजुर्बा है, उस चीज से जिस के प्रयोग के बाद हम बिना धोये रह नहीं पाते। अरे भैया वही जिसे साफ रखने के लिये ये फिरंगी काग़ज से काम चला लेते हैं। सरजी मैं हाथों की बात नहीं कर रहा! अरे वो यार, जिस पर बैठते हो। अमां हद करते हो मैं कुर्सी की भी बात नहीं कर रहा। अच्छा चलो वो जिस का संबंध लोटे से है। अब समझे?

अब भई घर में तो लोटे या मग इस्तेमाल कर लें भले टॉयलेट वेस्टर्न ही हो, पर आफिस का क्या करें। अब अपने भारतीय रेल का डब्बा होता तो हज़ारों संभ्रांत भारतियों की तरह एकांत का लाभ उठाकर पश्चिमी टायलेट की सीट पर ही चढ़कर पूरबी शैली में निवृत हो आते पर दफ्तर में टायलेट की दीवार टखने से 2 फुट उपर शुरू होती है और सर के कुछ इंच ऊपर खत्म। ससुरा प्रिवेसी का मुरीद देश टायलेट में भी प्रिवेसी न रखें, अजीब लगता है।

तो बात हो रही थी कि बिना धोये कैसे रहा जाय। माना कि ठंडा देश है पर हर नल में गरम पानी उपलब्ध है मालिक, काहे आलस करते हो? जो काम एक लोटा पानी कर देगा वो गज भर कागज थोड़े कर पायेगा। इधर उधर फंसे टुकड़ों में पनपते कीटाणु वगैरा की बात तो छोड़ ही दो, केवल पोंछ कर काम चलाने से जो मन में कांटा चुभा रहता है उससे चट ये एहसास हो जाता है कि सैनिटरी पैड के देसी विज्ञापनों में कॉपीराईटर “दिन भर असुरक्षा की भावना” जैसे जुमलों से दरअसल क्या बताना चाहते हैं।

washletटाईम्स स्क्वेयर पर हाल में एक विज्ञापन बिलबोर्ड (चित्र बाजू में लगा है, अगर कमरे का दरवाज़ा बंद हो तो आप जालस्थल भी हिम्मत कर कनखियों से देख सकते हैं) पर हल्का सा बवाल मचा जिसे में अमरीका की थीम के मुताबिक जातिय व लैंगिक विविधता बराबर बनाये रखते हुये कुछ पिछवाड़ों के चित्र स्माईली चिपका कर दिखाये गये थे। हमारे यहाँ तो शिवसैनिक न जाने इन पिछवाड़ों का क्या हश्र करते, पर यहाँ बस थोड़ी नाक भौं सिकोड़ीं गईं जो वैसे भी न्यूयार्क में एशियाई मूल के लोगों की बढ़ती संख्या की वजह से मूल अमरीकियों की आदत में शुमार हो गया है। कुछ ने इसे एसवर्डटिज़्मेंट का नाम दे दिया तो कुछ ने बटबोर्ड्स का।

लो फिर भटक गया!

तो ये बिलबोर्ड टोटो नामक एक कंपनी के हैं जिन्होंने वॉशलेट नाम का एक नया टॉयलेट बनाया है जो पाखाना कम और कंप्यूटर ज्यादा है। इसमें टॉयलेट सीट को गर्म रखने के अलावा एक और नई सुविधा है और वो है धोने की सुविधा, जाहिर है बिना हाथों का प्रयोग किये। वायरलेस रिमोट द्वारा तापमान और “गति” दोनों का नियंत्रण किया जा सकेगा। मेरे एक मित्र ने कहा कि पहले पोर्ट अथारटी के गुसलखानों में लगाकर दिखाओं फिर लोग लगायेंगे। जाहिर है इशारा इस “लक्ज़री, स्टेट आफ फ आर्ट” टॉयलेट की कीमत की तरफ था।

इसमें दो राय नहीं कि बिलबोर्ड चतुराई भरा विज्ञापन है पर मैं आप को कहुंगा कि वॉशलेट की वेबसाईट भी ज़रूर देखें। ऐसा इंटरैक्टिव विडियो मेनु मैंने और किसी जगह अब तक नहीं देखा। विवरण भी विडियो में हैं और टॉयलेट की जानकारी देते समय पैनोरामिक व्यू भी शामिल किया गया है, माउस घुमा कर देखें। और हाँ आवाज़ चालू रखें।

अगर ये सफल हो गये तो आने वाले दिनों में यहाँ आने वाले भारतियों को आरामदायक शौच की सोच में नहीं पड़ना होगा।