बाबू समझो इशारे

विश्व हिन्दी सम्मेलन अभी अभी समाप्त हुआ है। अभिव्यक्ति पत्रिका में गप्पी की रपट भी छपी है। साथ ही सूचना है दी गई है भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा आयोजित डा. होमी भाभा हिंदी विज्ञान लेख प्रतियोगिता-2007 के बारे में जिसके लिए विज्ञान लेख आमंत्रित किये गये हैं। इसके नियमों में एक जगह लिखा है, […]

एक बात कहूं?

छायाः अक्षय महाजन एक बात कहूं?बचपन के दिन अच्छे थे।कान उमेठे जाने पर दर्द तो होता थापर वो शरारतों में नहीं उतरता था।कान तो अब भी उमेठे जाते हैंपर दर्द ज़रा नहीं होता।अब शरारत करने से जी घबराता है। एक बात कहूं?बचपन के दिन अच्छे थे।लड़ते थे, रोते थे, रुलाते भी थेऔर कुट्टी की उम्र […]

वॉशलेट: अमरीकियों के लिये कंप्यूटरी लोटा

अमरीका आने के बाद भारतियों को सबसे अधिक तकलीफ किस चीज़ से होती होगी? मेरा तजुर्बा है, उस चीज से जिस के प्रयोग के बाद हम बिना धोये रह नहीं पाते। अरे भैया वही जिसे साफ रखने के लिये ये फिरंगी काग़ज से काम चला लेते हैं। सरजी मैं हाथों की बात नहीं कर रहा! […]

कलिंग का युद्ध फिर शुरु

अगर आपने ध्यान दिया हो तो विगत दो हफ्तों (शायद उससे भी पहले) से विभिन्न चैनलों पर एक सरकारी विज्ञापन दिखाया जा रहा है। एक चिकन पपेट के द्वारा मुर्गियों की सहसा मौत या बीमार मुर्गियों की जानकारी देने का अनुरोध किया जा रहा है। मुझे तभी खटका था कि अखबारों में तो इस तरह […]

बोतल में तूफान

कोला में पेस्टीसाईड की उपस्थिति पर बोतल में तूफान कई बार उठे हैं। कोला निर्माता और दोषारोपण करने वाली सी.एस.ई दोनों पर ही संदेह किया जा रहा है। निरंतर के नये अंक में अफ़लातून और अर्जुन स्वरूप की इसी विषय पर एक बहस प्रकाशित हुई। उनके विचारों को पढ़ते समय यह सोचा था कि अपने […]

दवा नहीं बैसाखी

मैं तब इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में था जब मंडल कमीशन की अनुशंसा के खिलाफ छात्र आंदोलन जोर पकड़ रहे थे। मुझे याद है, तब सीनियरों ने पकड़ पकड़ हम सब को इकट्ठा किया था और फिर भेड़ों की नाई चल पड़े थे हम “प्रदर्शन” करने। दोपहर जब पुलिसिया लाठियाँ चलीं तो जिसको जो रास्ता […]

जॉल बाचाईये, कॉल बाचाईये!

सरकारी विभागों में संदेशों की खास अहमियत है। हर साल का सरकारी बजट, काम करो न करो काम की नुमाईश करना ज़्यादा ज़रूरी है। हज़ारों योजनाओं के ज़िक्र आपको सरकारी बजट पर पनपते बिलबोर्ड, गाँव देहात में घरों और सरकारी अस्पतालों व स्कूलों की दीवारों और चिकने पृष्ठ वाली पत्रिकाओं में विज्ञापनों के द्वारा मिलेंगे। […]

जस्ट वाना हैव फ़न

परिवर्तन का दौर है। नया आर्थिक परिवेश है। आधुनिक शहरी मानस अब न तो भारतीय रहा, न ही अमरीकी। त्रिशंकू बना बीच में ही कहीं झूल रहा है। “गर्ल्स जस्ट वाना हैव फ़न“, टाईम्स कह रहा है। “लड़कियाँ भी अब कैजुअल सेक्स से हिचकती नहीं। वन नाईट स्टैंड जोर पकड़ रहे हैं।” पल भर की […]