निरंतर काउंटडाउन भाग 6

Logoदेबाशीष ने मुझसे पूछा कि मैं निरंतर का किस तरह का हिस्सा बनना चाहूँगा, इसका उत्तर तो केवल यही हो सकता है कि मैं सबसे अच्छा हिस्सा होना चाहूँगा। लेकिन शायद अच्छा हिस्सा होने के लिए, काम कुछ अधिक करना पड़ सकता है, इसलिए अगर सबसे बढ़िया हिस्सा न भी बन सकूँ, कम से कम मध्यम श्रेणी का हिस्सा तो बन ही सकता हूँ।

बात को हँसी में नहीं उड़ाना चाहूँगा, अगर इस प्रश्न पर गम्भीरता से सोचा जाये तो मेरा विचार है कि मुझ जैसे थोड़े से खाली समय में हिंदी की वेब पत्रिका के सम्पादन मँडली का हिस्सा बन कर कुछ योगदान देने के लिए सोचने वालों को कोई लगातार प्रेरणा देना वाले चाहिए। चूँकि इस काम में लगने वाले सभी लोग मेरी ही तरह के “थोड़े से खाली समय वाले” स्वयंसेवी हैं, यह मान कर भी ऐसी अपेक्षा रखना ठीक नहीं होगा, हम सभी को एक दूसरे को प्रेरणा देने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए!

निरंतर के पिछले अंकों के बारे में सोचूँ तो मुझे लगता है कि निरंतर पत्रिका अधिक है, वेब पत्रिका कम। यह शायद इस लिए भी हो सकता है कि “वेब पत्रिका” क्या, कैसी होनी चाहिए, यह किसी को ठीक से मालूम नहीं है। मैंने इस बारे में कभी गम्भीरता से नहीं सोचा पर कुछ बातें हैं जो वेब पर लागू होती हैं और जिनका निरंतर को फ़ायदा उठाना चाहिए या कम से कम, उनको ध्यान में रखना चाहिए, जैसेः

  1. वेब संसार में क्या हो रहा है, इसको बहुत स्थान मिलना चाहिए। यह सच है कि आज कल वेब पर यह सब जानकारी कितने ही चिट्ठों आदि में मिल सकती है पर २४ घंटे प्रसारित होने वाले समाचार चैनलों की तरह वे क्षणभँगुर होती हैं, जबकि पत्रिका बन कर निरंतर को हिंदी के वेब जगत में होने वाले और अन्य भाषाओं में होने वाले को हिंदी पाठको को बताना दोनों ही उपयोगी हो सकते हैं क्योकि इस विषय में आम समाचार पत्रों या पत्रिकाओं को उतनी रुचि नहीं होगी।
  2. निरंतर वेबज़ीन है तो उसे साधारण बिकने वाली पत्रिओं की तरह न तो अधिक अंक बेचने या विज्ञापन पाने जैसे व्यवसायिक कारणों का दास नहीं बनना चाहिए, इस लिए निरंतर में ऐसे विषयों पर बात हो सकती है जिन्हें आम पत्रिकाओं में स्थान नहीं मिलता। अंतर्जाल पर होने की वजह से शायद निरंतर को सेंसरशिप का भी डर कम होना चाहिए!
  3. तकनीकी विषयों को निरंतर पर विशेष महत्व मिलना चाहिए। नानो तकनीकी, जेनेटिकली मोडीफाईड प्राणी, जैसे विषयों पर हिंदी के पाठकों को जानकारी का मौका मिलना चाहिए ।

मैं निरंतर को क्या योगदान दे सकता हूँ, और हम में से हर एक निरंतर की प्रगति के लिए क्या योगदान दे सकता है, यह हम में से हर एक की विषेश योग्यताओं पर निर्भर है। यानि वह कौन सी बातें हैं जिनमें हमारी विशिष्ठ क्षमताएँ हैं। मेरी खास क्षमता है विभिन्न यूरोपीय भाषाओं का ज्ञान, चिकित्सा और विकास के क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो हो रहा है उसके बारे में जान पहचान। इसका निरंतर को कैसे लाभ मिल सकता है, यह आप सब पर भी निर्भर है। अपनी योग्यताओं के साथ साथ दुर्बलताओं की बात करनी चाहिए, और मेरी दुर्बलता है थोड़े से समय को बहुत से अलग अलग कामों में खो देना। शायद इसलिए भी मुझे प्रेरणा देने वाले की आवश्यकता अधिक लगती है।

डॉ सुनील दीपक निरंतर की कोर टीम के नये सदस्य हैं।