संजय तिवारी के मन में दिल्ली की प्रस्तावित ब्लॉगर मीट से सहसा विस्फोट हुआ है। लिखते हैं,

“निश्चित रूप से इस भेंटवार्ता के पीछे कोई व्यावसायिक नजरिया है. स्पांसरों का खेल है. और जहां व्यावसायिक नजरिया और स्पांसर पहुंच जाते हैं वहां आयोजन हमेशा निमित्त बनकर रह जाते हैं. होता यह है कि आयोजन स्पांसरों के प्रचार के काम में आते हैं.”

इस मीट पर मुझे उनकी आपत्ति वाजिब नहीं लगती, आयोजक पैसा खर्च कर मंच बना कर दे रहे हों तो उन्हें कुछ लाभ मिलना ही चाहिये, वे अपने उत्पाद के ब्रोशर बाँट कर या बैनर लगा कर यह करें तो मुझे कोई कारण नहीं दिखता कि आपत्ति की जाय। ब्लॉगर अगर इस मीट के बहाने नेटवर्किंग भी कर रहे हों तो क्या बुराई है? नेट के अनेकानेक प्रयोक्ता सोशियल नेटवर्किंग साईटों के कारण भी नेट से जुड़े हैं, शायद यह उसी का एक्सटेंशन है।

पर हिन्दी सम्मेलन के बाद से चार पोस्ट लिख कर ब्लॉग विशेषज्ञ बने अशोक जी चक्रधर हिन्दी और भारतीय भाषाओं में माईक्रोसॉफ्ट का लिखा श्वेत पत्र ही पढ़ेंगे या अपने पुत्र और अपनी कंसल्टेंसी का प्रचार ही करेंगे इसमें मुझे संशय नहीं। मसीजीवी की बात से सहमती सहमति है। चक्रधर तो ब्लॉगिंग के नये मुल्ला हैं, अभी प्याज़ भी ठीक से भी खा नहीं पाये हैं वे इस विधा पर क्या प्रकाश डाल पायेंगे वे ही जानें। पर हाँ, व्यंग्य की दुकान से इंटरनेट पर हिन्दी प्रयोग की कंसल्टेंसी पर उनका ये सहसा डायवर्सीफिकेशन अचंभित करने वाला है। अगर वे अपने ब्लॉग से ये ज्ञान बाँटें तो हम जैसे कुछ चिट्ठाकार भी भारत सरकार को हिन्दी के नाम पर थोड़ा चूना मल सकें, हीहीहीही!