दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण में छपे ब्लॉग परिशिष्ट के बारे में संजय ने लिखा ही है। जैसा सिरिल ने लिखा, सभी ब्लॉग व जालपतों को सही सही लिखने वाला शायद ये पहला अखबारी प्रयास होगा। इसके लिये रवि भैया और अजीत भाई को साधुवाद! मुझसे ब्लॉगिंग के कृष्ण पक्ष पर प्रकाश डालता एक बॉक्स आलेख लिखने के लिये कहा गया था। पर जो अंततः छपा वो मूल लेख का अंश मात्र था और उसमें कुछ रद्दोबदल भी किये गये थे। अतएव मूल लेख मैं प्रकाशित कर रहा हूँ। बातें वहीं हैं जो विभिन्न मंचों पर कहता रहा हूं और एक चिट्ठाकार के तौर पर आप जिनसे वाकिफ हैं। तो ये लेख है खास उनके लिये जो चिट्ठाकारी से अनजान हैं या नये चिठेरे हैं।

ब्लॉगिंग के मैदान में उतरे सुजान जानते हैं कि आम जीवन की ही तरह ब्लॉगिंग भी कोई फूलों की सेज नहीं है, यहाँ काँटें भी विद्यमान हैं। ब्लॉगिंग की सबसे बड़ी और पहचानी दिक्कत है कि ज्यादातर लोगों के पास कहने के लिये और पाठकों को बाँधे रखने लायक रोचक बात नहीं होती। एक बड़ा तबका अपनी बात को स्पष्ट और रुचिकर तरीके से प्रस्तुत करने में भी अक्षम रहता है। स्थिति कुछ यूं कि जिनके पास कहने को बहुत है लिखने का समय नहीं दे पाते और जो समय देते हैं उनके पास कहने को खास कुछ नहीं रहता। ज़ाहिर है, ब्लॉग शुरु करना तो आसान है पर उसको जारी रखना सबसे मुश्किल।

splogs.jpgऔर इन सबसे बड़ी दिक्कत है ब्लॉग लोकतंत्र में अपनी राय को समझा पाना और उस पर सही बहस करा पाना। याद रखिये कि ब्लॉग में कई तरफा संवाद होते हैं, आप जो लिखते हैं उस पर लोग टिप्पणी करते हैं, उसे ट्रैकबैक करते हैं, लिंक  करते हैं, अक्सर जवाबी पोस्ट भी लिखते हैं। इस तरह कन्वर्शेसन  यानी बातचीत में नये आयाम जुड़ते जाते हैं। पर यह बहस हमेशा सधी, सुसंस्कृत हो ज़रूरी नहीं। हिन्दी ब्लॉगजगत में अनानिमस  यानि बेनाम लेखकों के कहर से सभी चिट्ठाकारों का कभी न कभी वास्ता पड़ चुका है। अनाम होने के प्रत्यक्ष लाभ के तौर पर वे किसी भी ब्लॉग पर कुछ भी लिख सकते हैं, मनचाहा कमेंट कर सकते हैं और बिना अपनी पहचान जाहिर होने के खतरे के अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं। चीन, मध्य पूर्व या कट्टरपंथी देशों में, जहाँ सरकार या धर्म जैसे मुद्दों पर साफगोई से लिखने पर कई चिट्ठाकार सलाखों के पीछे जा चुके हैं।

बेनाम चिट्ठाकारी वरदान है पर जहाँ इंटरनेट लोकतांत्रिक है वहाँ इसका बेजा फायदा भी उठाया जाता है। इंटरनेट पर साईबर स्टॉकर और ट्रॉलर भरे पड़े हैं। बेनामी का बुरका ओढ़ कर लोग जिस लहज़े में लिखते हैं, अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि यही लोग व्यक्तिगत तौर पर कभी किसी से इस तरह बात न करते होंगे। बेनामी हौसले बुलंद कर देती है। महिला चिट्ठाकारों को तो इसका खास तौर पर खामियाजा भुगतना पड़ता रहता है। कुछ साल पहले आइआईपीएम के खिलाफ ब्लॉग पोस्ट लिखने वाली लोकप्रिय अंग्रेज़ी ब्लॉगर व जैम पत्रिका की संपादिका रश्मि बंसल पर उस संस्था के छात्रों ने अनाम होकर अश्लील भाषा का खुला प्रयोग किया और व्यक्तिगत लाँछन तक लगाये। कैथी सियेरा नामक एक अमरीकी चिट्ठाकार के तकनीकी ब्लॉग पर स्टॉकरों ने उनकी जान लेने तक की धमकी दी। भयाक्रांत होकर उन्होंने अपने सारे भाषण कार्यक्रम रद्द कर दिये। उनके समर्थन में स्कॉबल जैसे अनेक नामचीन ब्लॉगरों के आने का बाद ही वे दुबारा लिखने का साहस जुटा पाईं। बेनाम लोगों के इस तरह के अनअपेक्षित व्यवहार से बचने के लिये कई लेखक अपने चिट्ठों पर बेनाम टिप्पणी स्वीकार नहीं करते।

सरकारों, संस्थाओं और लोगों पर आक्षेप करना ब्लॉग पर आसान है, संपादकीय कैंची का अभाव बोलने पर रोकटोक नहीं लगाता, पर जहाँ ये बेरोकटोक लिखने का अधिकार है वहाँ बड़ी ज़िम्मेदारी भी है। इनमें मानहानी, ट्रेड सीक्रेट  जैसे अनेक मुद्दे आ जाते हैं। पत्रकार प्रद्युम्न माहेश्वरी ने जब टाईम्स आफ इंडिया की संपादकीय नीति, जिसमें विज्ञापनों को बतौर आलेख पेश किया जाता था, के खिलाफ लिखा तो उन पर मानहानी का कानूनी नोटिस ठोंक दिया गया और संबंधित ब्लॉग प्रविष्टियों को हटाने को कहा गया। माहेश्वरी ने पोस्ट तो नहीं हटाये पर कानूनी पचड़े से बचने के लिये अपना ब्लॉग ही बंद करना उचित समझा। कार्पोरेट  चिट्ठाकारों को यह ध्यान रखना पड़ता है कि वे किसी कंपनी के इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राईट्स का हनन नहीं कर रहे। हाल ही में नामचीन कंपनी एप्पल के बारे में गॉसिप व उनके उत्पादों के बारे में अंदरूनी खबरें देती एक ब्लॉग साईट “थिंक सीक्रेट” को एप्पल ने कानूनी कार्यवाही की धौंस से बंद करा दिया। प्रसिद्ध ब्लॉग वायर्ड द्वारा पिछले पखवाड़े एप्पल के नये उत्पाद “मैकबुक एयर” के जारी होने के एक दिन पूर्व प्रकाशित सटीक अनुमान के बाद आशंका जताई जाने लगी थी कि स्टीव जॉब्स इस साईट पर भी ताले जड़वा देंगे। उल्लेखनीय है कि विगत वर्षों में अनेक लोग अपने ब्लॉग पर अपने नियोक्ता के बारे में तथ्य सार्वजनिक करने के कारण नौकरी से हाथ धो चुके हैं।

ब्लॉग जगत में हर किस्म के लेखक हैं। यहाँ लोग अलग अलग उद्देश्य के लिये लिखते हैं और कुछ का उद्देश्य अपना अजेंडा रखना भी होता है। किसी न किसी “वाद” के पक्ष विपक्ष में खड़े ब्लॉग तो अनगिनत हैं। इसमें बुराई भी नहीं क्योंकि ब्लॉग तो हैं ही विचार रखने के मंच, पर कितना अच्छा हो अगर ब्लॉग लेखक अपना अजेंडा आपको पहले ही बता दे, ताकि आप उसके छद्म लेखों में फंस न जायें।

एक और मुद्दा है मीडिया अटेंशन  का। मुख्यधारा के मीडिया का अब चिट्ठाकारी और चिट्ठाकारों पर काफी ध्यान रहता है। दोनों माध्यम हैं भी एक दूसरे पूरक। पर चिट्ठाकारी पर लिखे लेखों में तथ्यों का प्रस्तुतिकरण हमेशा सही नहीं रहता, तव्वजोह भी केवल लोकप्रिय चिट्ठाकारों पर रहती है।

ब्लॉग जब मकबूल हुये तो स्पैम के कारिंदो ने इस माध्यम को भुनाने में भी कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी। ब्लॉग पर कमेंट व ट्रैकबैक स्पैम एक विकराल समस्या है। अक्सर ये टिप्पणियाँ व ट्रैकबैक किसी इंसान द्वारा नहीं स्वचालित बॉट द्वारा धड़ल्ले से डाली जाती हैं। हालांकि ब्लॉग बनाने की साईटें इनसे बचने के लिये प्लगइन वगैरह भी मुहैया कराते हैं पर लाखों स्पैम में से कुछ का बच निकल जाना लाज़मी है। स्पैमर यहीं तक सीमित नहीं रहे हैं, उन्होंने ब्लॉग जैसे दिखने वाले स्पैम ब्लॉग यानि स्पलॉग भी बना डाले। यह सप्लॉग मूलतः गूगल एडसेंस जैसे माध्यमों से कमाई करने भर के लिये बने होते हैं और सामग्री के लिये किसी परभक्षी की तरह अन्य चिट्ठों की फीड या अन्य तरीकों से चुरा लेते हैं। अगर आपका ब्लॉग लोकप्रिय है तो संभव है कि उसकी नकल कर कोई स्पलॉग भी कहीं पनप रहा हो। ये नकली ब्लॉग रैंकिंग में उपर आने के लिये टेक्नोराती जैसे ब्लॉग की खबर रखने साईटों को बाकायदा पिंग भी करते हैं, टेक्नोराती के हालिया बयान के अनुसार अनुसार लगभग 99 फीसदी पिंग स्पैम होते हैं।