याद है वो दिन जब मोबाईल फोन निर्माता कैरियर अनुबंधों को बढ़ावा देने और अधिक मुनाफा कमाने के लिए लॉक कर दिये जाते थे? विद्युत वाहन (ईवी) की बैटरियों का इकोसिस्टम कुछ इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है, हालांकि ये मुमकिन है कुछ प्रतिबंध वाजिब सुरक्षा चिंताओं के कारण लगाये गये हों।

हाल ही में यह लेख पढ़ने को मिला, जिसमें भारत में ईवी बैटरियों की मरम्मत की चुनौतियों पर चर्चा की गई है। ईवी को शुरुआती दिनों में अपनाने वाले, मसलन महिंद्रा e2o के मालिक, भाग्यशाली थे क्योंकि उनकी बैटरी की अलग-अलग सेल को बदलकर मरम्मत करना अपेक्षाकृत आसान था। पर नए ईवी में अक्सर सीलबंद बैटरी पैक होते हैं जिनकी स्वतंत्र मैकिनिकों द्वारा मरम्मत कराना मुश्किल या असंभव है।ईवी

ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से नई ईवी बैटरियों की मरम्मत करना मुश्किल है:
🔋 निर्माता स्पेयर पार्ट्स या मरम्मत करने की जानकारी प्रदान नहीं कर रहे हैं जिससे स्वतंत्र दुकानों के लिए वारंटी के बाहर बैटरियों को ठीक करना कठिन हो गया है।
🔋 नई बैटरियों में शीतलक और तापमान सेंसर जैसी विशेषताएं होती हैं जो उन्हें सुरक्षित रूप से अलग करना मुश्किल बनाती हैं।
🔋 निर्माता सुरक्षा चिंताओं के कारण मरम्मत को हतोत्साहित कर सकते हैं क्योंकि इन बैटरियों की मरम्मत के लिए विशेष प्रशिक्षण और उपकरण की आवश्यकता होती है।

हालाँकि बैटरी बदलना एक विकल्प है, लेकिन बैटरी की मरम्मत की तुलना में यह महंगा और कम टिकाऊ है। बैटरी की मरम्मत करने से उसका जीवनकाल बढ़ जाता है और तत्काल रीसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) की आवश्यकता से बचने के कारण पर्यावरणीय प्रभाव कम हो जाता है। सीलबंद बैटरी पैक इस मोर्चे पर चुनौतियां पैदा करते हैं।

ईवी पर सरकार के जोर के साथ, प्रयासों को लंबे समय तक टिकाऊ बनाने के लिए रीसाइक्लिंग और मरम्मत पहलुओं पर भी विचार करने की सख्त जरूरत है। पर बिल्ली के गले घंटी कौन बांधेगा?

चित्र आभारः Possessed Photography