शैल ने मेरे चिठ्ठे “राजनीतिक योग्यता क्या हो” पर प्रतिक्रिया लिखी हैः

बीजेपी को सोनिया से क्या समस्या है ये तो वो ही बता सकते हैं,लेकिन मुझे जो बात खटकती है वो है काँग्रेस की कुनबापरस्ती। आखिर ये लोग नेतृत्व के विचारों का प्रचार करने के बजाय इस बात पर क्यों बल देते रहते हैं कि सोनिया “गाँधी” हैं इसलिये हमें उनको वोट देना चाहिये।

शैल, अगर आप मुझ पर कांग्रेसी होने का शक न करें तो मैं ये कहुंगा कि वंशवाद का इल्ज़ाम सिर्फ गांधी घराने पर लगाना शायद पूर्णतः उचित नहीं है। क्या सुमित्रा महाजन अपने पुत्र को विधानसभा टिकट न मिलने पर मुँह फुलाए नहीं घूमतीं फिर रहीं? क्या राजस्थान की मुख्यमंत्री सिंधिया घराने की नहीं हैं? क्या फार्रुख अब्दुल्ला के पुत्र का राजनीतिक जीवन वंशवाद की उपज नहीं? अजीत सिंह व ओम प्रकाश चौटाला की राजनैतिक नींव किसने रखी? दरअसल हर पार्टी किसी न किसी करिश्माई व्यक्तित्व की तलाश में है जिसका हाथ थाम कर चुनावी वैतरणी पार हो जाए।

हाँ, कांग्रेस में बगैर गांधी उपनाम के करिश्माई बन पाना ज़रा टेड़ी खीर है। माधवराव सिंधिया व राजेश पायलट दोनों ऐसे व्यक्तित्व वाले थे पर अब वो हैं नहीं, सोनिया के नाम पर आम राय कभी थी ही नहीं। मनमोहन का व्यक्तित्व सौम्य हो पर मनमोहनी नहीं है, बचे कौन? नरसिंह राव, प्रणव मुखर्जी, नारायण दत्त तिवारी या मोतीलाल वोरा तो अब अकेले रथ खींचने के लिए ये सभी बहुत बुढ़ा चुके हैं। तिस पर इनकी कोई बहुत प्रभावी जनाधार भी नहीं है। जाहिर है निगाहें आ टिकी हैं प्रियंका और राहुल पर। कांग्रेसी मजबूरी का नाम…गांधी।