निरंतर काउंटडाउन भाग १

निरंतर एक अभिनव प्रयोग रहा है। यह पहली ऐसी पत्रिका है जो न केवल गैरपेशेवर प्रकाशकों द्वारा निकाली जाती है बल्कि पाठकों को प्रकाशित लेखों पर त्वरित टिप्पणी करने का मौका भी देती है। इस तरह ये सिर्फ ज़ीन नहीं, विश्व की प्रथम ब्लॉगज़ीन बन सकी। किसी भी प्रकाशन में पाठकों से सीधा संवाद जोड़ने का संभवतः इससे बेहतर माध्यम और नहीं हो सकता।

हिन्दी ब्लॉगमंडल के अन्य एक अनोखे प्रयोग बुनो कहानी में हमने कोलैबोरेशन यानि सहयोग की भावना को बल देने के लिये मल्टी आथर कहानियों को रचने का तरीका पेश किया, जिसमें कहानी लिखना कोई शुरु करता है और कोई अन्य इसे आगे लिखता है। लेखकों में कहानी के प्लॉट संबंधी कोई चर्चा नहीं होती और न यह तय होता है कि कहानी कितने भागों में लिखी जायेगी। शायद इसीलिये यह स्वतः प्रवर्तित कार्य मनोरंजक भी है और चुनौतीपूर्ण भी। इसमें मौजूद सस्पेंस और अप्रत्याशितता के तत्वों को भी नकारा नहीं जा सकता।

निरंतर के पुनर्वतार में हम ऐसा ही अनोखा प्रयोग पुनः करने जा रहे हैं। यह प्रयास है विश्व की पहली इंटरैक्टिव हिन्दी कहानी का एक नया स्तंभ। हिन्दी ब्लॉगजगत की सशक्त हस्ताक्षर प्रत्यक्षा ने इसे शुरु करने का बीड़ा उठाया है। तो सुधि पाठकों, निरंतर के अगस्त अंक में आप पढ़ पायेंगे एक ऐसी ही कहानी जिसके खुले सिरे आप को ही पिरोने हैं। जी हाँ, कहानी के पहले भाग के अंत में लेखिका आपका मत माँगेंगी कि अगले भाग में कहानी क्या मोड़ ले, और बहुमत जिस पक्ष में होगा ऊंट उसी करवट बैठेगा, यानी लेखिका कहानी का अगला भाग उसी थीम पर लिखेंगी।

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