कितने आदमी हैं?
चिट्ठाकार समूह पर अनुनाद ने सूचना दी कि वेबदुनिया भारतीय भाषाओं में अपना ब्लॉगिंग प्लैटफार्म शुरु करने जा रहा है (हालांकि अपनी प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने “प्लेटफार्म” की बजाय “ब्लॉग” लिखना उचित समझा जिससे ये समझ आता है कि बड़े समूहों को भी ब्लॉगिंग की वो बात समझ नहीं आ रही जो सामान्य चिट्ठाकारों को आ रही है और वजह वही पुरानी है, शाकाहारी लोग दूसरों के लिये मटन पका रहे हैं, इन लोगों के पास शायद एक भी ऐसा बंदा नहीं जो ब्लॉगिंग के बारे में जानता हो और इसे महसूस करता हो)।
जोश18 टीवी18 का नया शाहकार है। बढ़िता प्रयास है, ठसकीला और सजीला है, वृहद नेटवर्क का बैकअप है, बढ़िया वेबटीम की काबलियत भरी डिज़ाइन है। पर ब्लॉगिंग पर हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के चिट्ठाकारों को टैप करने के मामले में टाँय टाँय फिस्स, ये कहने में भी दुख होता जब करीब एक डेड़ साल गरम चाय पीने के बाद भी उनकी गुणी ब्लॉग टीम अपने प्रबंधन से इस उभरते और असीम संभावनाओं वाले माध्यम को कार्पोरेट ब्लू प्रिंट का हिस्सा बनवाने में फेल हो गई। ज़ाहिर है किसी तोंदियल बॉस, जो नेट पर केवल आर्कुटाई करने ही उतरता होगा, के भेजे में ब्लॉगिंग का ब भी समा न पाया। समझदार कंपनी वो होगी जो UTV की तरह टीवी, वेब और मोबाईल को ट्राईपॉड के तीन टाँगों की तरह बिठा, संतुलित फैलाव की बात सोचेगी।
एक बात जो मुझे इन उपक्रमों के बारे में हैरान करती है वो है इनका प्रयोक्ता समूह। मैं यह तो जानता हूं कि वेबदुनिया के ईपत्र मेल सेवा और पोर्टल पर ज्योतिष व ग्रीटिंग जैसी चीजों का प्रयोगकर्ता समूह है। इनकी संख्या का जाल पर हिन्दी लेखन व ब्लॉगिंग से जुड़े लोगों से overlap कितना है ये अज्ञात है। अगर ये overlap कम है तो निश्चित ही हमें अनेकानेक नये चिट्ठाकार मिलेंगे।
मेरी ये जिज्ञासा सुलेखा, इंस्टाब्लॉग्स जैसे मंचों के बारे भी रही है। क्या वाकई कोई ब्लॉगस्पॉट, वर्डप्रेस के रहते इन मंचों पर चिट्ठाकारी करेगा/कर रहा है? सुलेखा, रीडिफ या एनडीटीवी के प्लेटफार्म पर चिट्ठाकारी करने वालों के क्या किसी के पास पुख्ता आँकड़े हैं? मैं ये मान सकता हूं कि इन्हें इनके अन्य सेवाओं से जुड़े लोगों का लाभ मिलेगा, जैसे रिडिफमेल के प्रयोगकर्ता शायद आईलैंड की और झुकें, सुलेखा के नियमित क्लासीफाईड्स के पाठक या इसके पुराने लेखक शायद उससे जुड़ें। पर इंस्टाब्लॉग्स, आईबीबो या ब्लॉगअड्डा का क्या? इनका तो कोई वर्तमान प्रयोक्ता आधार नहीं है। क्या प्रांतीयता, भाषा का इससे कुछ लेना देना है?
ऐसे में तो, मेरे विचार में, कुछ ही राहें बचतीं हैं, जैसे कि इंस्टाब्लॉग्स या ब्लॉगअड्डा की तरह ये सुविधा भी दी जाय कि आप केवल अपनी फीड के प्रयोग की इजाजत इन्हें दे दें जिसे ये “अपना” कह कर अपने प्लेटफार्म पर दिखायें, फीड में केवल समरी पोस्ट के मामले में कड़ी क्लिक करने पर फ्रेम पेज में आपकी पोस्ट पेज दिखायें, या फिर कि वे किसी बॉट द्वारा चोरी छिपे अन्य चिट्ठों से सामग्री चुरा कर अपनी दुकान भरें (ऐसे मामले हो चुके हैं) या फिर लिखने के पैसे दें, लिखने की खुल्ली (अश्लील लेखन पढ़ें) छूट दें या सोशियल नेटवर्क से जुड़ने का प्रलोभन। क्या और कोई तरीका हो सकता है ईमानदारी से दुकान चलाने का? ज्ञानीजन प्रकाश डालें।
पुनश्चः :इस पोस्ट में जो बात रह गई वो है इन सब प्लैटफार्म की यूएसपी और ज़ाहिर तौर पर भारतीय भाषाओं के मामले में वेबदुनिया की यूएसपी होगी इन नौ भाषाओं में विभिन्न कीबोर्ड लेआउट और वर्ड कंप्लीशन टूल व शब्दकोश की मदद से टाईप करना आसान बनाना। अन्य प्लैटफार्म का ध्यान हिन्दी के अलावा किसी अन्य भारतीय भाषा की तरफ है ही नहीं। ये बात उन्हें फायदा पहुँचा सकती है।
मेरी समझ में नहीं आता कि हिन्दुस्तानी व्यवसाई भाषाई ब्लॉगिंग के बारे में ठस दिमाग है – इस तथ्य पर आप हैरान क्यों हैं!
जब पैसा नजर आयेगा, दिमाग भक्क से खुल जायेगा। जस्ट वेट!
ज्ञान जी से सहमत हूँ.
ऐसे नए ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म को देख कर नए प्रयोक्ता भले ही आ जाएँ, परंतु फिर वे और अच्छे की तलाश में या तो वर्डप्रेस या फिर ब्लॉगर की ही शरण में अंततः चले जाएंगे.