मैंक्या, हिन्दी दा पला तो हुआ!
वॉटब्लॉग ने एक नये हिन्दी पोर्टल दैट्स हिन्दी की खबर दी तो चेहरा जाना पहचाना लगा। दरअसल ये वनइंडिया साईट कुछ समय पहले से मौजूद है और अब नये नाम से सामने आ रही है। हिन्दी समाचार, क्लासीफाईड्स वगैरह पर क्या सामग्री नई है और आ कहाँ से रही है? पड़ताल करें तो माजरा कुछ कुछ साफ हो जाता है(?)। शायद ये भी ब्लॉगअड्डा जैसे लीचर श्रेणी के ही हैं (ध्यान दें मैंने लीचड़ नहीं लिखा)। हिन्दी ब्लॉग श्रेणी में जायें तो लगेगा, वाह हिन्दी चिट्ठे यहाँ भी पनप रहे हैं पर नहीं जनाब ये भी चोरी छुपे ब्लॉगर और वर्डप्रेस के हिन्दी चिट्ठे फ्रेम पेजेस में अपना कह कर दिखा रहे हैं। पोस्ट के पर्मालिंक तक बदल कर अपना चोला पहना दिया, कमेंट की अलग चलेगी थ्रेड, बस फीड का पता बदलना भूल गये। खबरें भी जागरण जैसे माध्यमों की फीड से चुरा रहे हैं या सिंडिकेट कर दिखा रहे हैं पता नहीं। कुल मिला कर होटल से खाना मंगा कर घर में परोसा जा रहा है। और क्यों नहीं, भई ग्राहकी बढ़ेगी तो विज्ञापनों से आय भी। और फिर हिन्दी वर्गीकृत में “एक प्यारी सी दोस्ती” निभाने के लिये तो एक खोजो हज़ार मिलेंगे। कोई नहीं जी! हिन्दी का भला तो हुआ 😉
पुनश्चः [22 Nov 2007]
वनइंडिया के दिनेश ने टिप्पणी द्वारा स्पष्टीकरण देते लिखा है,
“आपने जो उधार के कंटेट की बात लिखी है, वह महज एक भ्रम है. हम अपनी साइट पर दो न्यूज एजेंसियों तथा कुछ एंटरटेनमेंट एजेंसी तथा मुंबई स्थित हमारे कुछ विशेष संवाददाताओं की खबरें ही लेते हैं. साइट के शुरूआती दौर में भ्रमवश हमारी टीम में से किसी ने गूगल न्यूज की फीड से खबरें उठा लीं, बिना यह ध्यान दिए कि यह विशिष्ट साइट से जुडी है, (जैसा कि आप जानते हैं प्रिंट मीडिया में गूगल का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है.) दूसरी बात यह वन इंडिया का बदला संस्करण नहीं है बल्कि वन इंडिया के भाषाई संस्करणों की श्रृंखला के तहत इस शुरू किया गया है.”
दिनेश आपने मेरा भ्रम दूर किया शुक्रिया! मैंने हिन्दी चिट्ठों के बारे में भी कुछ संशय जाहिर किया था, आपकी ही संस्था के महेश की टिप्पणी का प्रतिवाद भी किया वॉटब्लॉग पर, आशा है इस बारे में भी स्थिति स्पष्ट करेंगे।
पुनश्चः [28 Nov 2007]
वॉटब्लॉग पर वनइंडिया ने स्पष्ट किया कि “जब भी ब्लॉग जोड़े जाते हैं तो संबंधित चिट्ठाकार को ईमेल द्वारा सूचित किया जाता है”। यह बात सरासर झूठ है क्योंकि मेरा हिन्दी ब्लॉग नुक्ताचीनी यहाँ जोड़ा गया है और अंग्रेज़ी ब्लॉग यहाँ और न मुझे इसकी पूर्वसूचना दी गई और न ही मुझसे इजाज़त ली गई। ऐसा अनेक और लोगों के साथ हुआ होगा। वनइंडिया ने यह भी माना कि “कई चिट्ठे स्वयं चिट्ठाकारों द्वारा जोड़े जाते हैं” (Many of the blogs are submitted by the bloggers itself), ध्यान दें Many but not all यानि “सारे” चिट्ठे नहीं।
हैरत की बात है कि फ्रेम पेजेस में पोस्ट दिखाने का बारे में कोई सूचना देना उचित नहीं समझा गया क्योंकि वनइंडिया के मुताबिक यह तो “rule of the game” है,
No, we are not intimating the search visibility part since this is the rule of the game. No body complains when a blog is listed and get visibility in google blogsearch or in some other search engine. This is also some thing like that. “किसी को शिकायत नहीं होती है अगर इनका ब्लॉग हमारे यहाँ दिखाया जाता है और गूगल व अन्य खोज इंजनों में मान बढ़ता है। यह भी कुछ ऐसा ही है।”
अनुवाद मेरा। मूल जवाब यहाँ हैं।
पोस्ट के पर्मालिंक बदलने और मूल चिट्ठे की कड़ी न दिखाने के पीछे जो असल उद्देश्य है वो स्पष्ट है। वनइंडिया यह सारी सामग्री किसी बॉट की मदद से स्वचालित रूप से अपनी साईट पर डाल रही है और कड़ियाँ बदल देने से मूल लेखक को इसका कभी पता नहीं चलेगा क्योंकि हिट्स उसके रेफरर लॉग में नहीं दिखेंगी। मैंने आज ही पाया कि अब इस फ्रेम पेज पर “Close” कड़ी के रूप में मूल चिट्ठे का पता देना शुरु किया गया है और इसी की क्लिक से मुझे अपने रेफरर लॉग से वनइंडिया पर मेरे ब्लॉग के भी होने का पता चला। दुख की बात यह है कि संस्थान इसे स्वीकारने की बजाय अनाप शनाप तर्क देने में लगा है। मैं वनइंडिया से यह सारे ब्लॉग्स, जिन्हें बिना अनुमति के उनकी साईट पर डाला गया है, को तुरंत हटा देने की अपेक्षा रखता हूँ।
होटल से खाना मंगा कर या चुरा कर?
वैसे पंजाबी में जो भ का उच्चारण होता है वह प से थोड़ा अलग होता है। हिंदी के प और भ के बीच का। अफ़सोस कि उस उच्चारण को समझाने के लिए यूनिकोड भी अपर्याप्त है 🙂
वैसे दादा, ये एडसेंस कदी छोटा कदी वड्डा, कदी दायें कदी बायें किस तरां हो रिया वे?
संजय, अलोकः बिल्कुल चंगा बोले जी!
ओ प्राजी, इसदे ज्वाब वास्ते साड्डी इक पुरानी पोस्ट पढ़ ली जाये! हुण
औरहोर दस्सो!और नहीं होर!
हे हे… हिन्दी ओनली पोर्टल मे मराठी का चिट्ठा भी शामिल है. देवनागरी मसाला एकत्र करने वाला इनका बॉट मराठी नेपाली सबको एकत्र कर एक साथ रख रहा है… 🙂
ey ek essa manch he jaha har koi apne dil ki baat kah sakta he baki rahi hindi ka bhala hone ki baat to bhul jao mujhe to hindi par pehle se jiada khatra mehsus hota he
दैट्स हिन्दी के बारे में आपकी टिप्पणी पढ़ी, आपके सुझावों और आलोचनाओं का स्वागत है. मगर आपने जो उधार के कंटेट की बात लिखी है, वह महज एक भ्रम है. हम अपनी साइट पर दो न्यूज एजेंसियों तथा कुछ एंटरटेनमेंट एजेंसी तथा मुंबई स्थित हमारे कुछ विशेष संवाददाताओं की खबरें ही लेते हैं. साइट के शुरूआती दौर में भ्रमवश हमारी टीम में से किसी ने गूगल न्यूज की फीड से खबरें उठा लीं, बिना यह ध्यान दिए कि यह विशिष्ट साइट से जुडी है, (जैसा कि आप जानते हैं प्रिंट मीडिया में गूगल का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है.) दूसरी बात यह वन इंडिया का बदला संस्करण नहीं है बल्कि वन इंडिया के भाषाई संस्करणों की श्रृंखला के तहत इस शुरू किया गया है. दैट्स हिन्दी अभी अपना स्वरूप ग्रहण कर रही है, हम चाहते हैं कि नेट पर हिन्दी से जुड़े लोग इसे एक सकारात्मक प्रयास के तौर पर ले और उसी सोच के साथ हमें सुझाव दें और हमारी खुलकर आलोचना भी करें.
धन्यवाद.
दिनेश श्रीनेत
संपादक, दैट्स हिन्दी
देबाशीष जी, आपकी टिप्पणी सही न होते हुए भी (खबरें भी जागरण जैसे माध्यमों की फीड से चुरा रहे हैं ) उसको सम्मान देते हुए ही मैंने आपके ब्लाग में अपना पक्ष रखा था. मैंने महज यह संभावना व्यक्त की थी कि शायद किसी ने इसे गूगल न्यूज से उठा लिया हो. मगर आपने मेरे इस वक्तव्य को मेरी स्वीकारोक्ति मानकर उसे http://www.watblog.com पर प्रस्तुत कर दिया जो कि बिल्कुल गलत है. नुक्ताचीनी में आपने खबरें चुराने की बात जो कही थी वह भी सही नहीं है. वास्तविकता यह है कि हमने अपनी खबरों के लिए समाचार एजेंसी यूनीवार्ता (यूएनआई) और एएनआई को सब्सक्राइब कर रखा है. जिसकी खबरों को तमाम दूसरे समाचारपत्र और वेबसाइट्स भी लेती हैं. उपरोक्त मोबाइल की खबर भी यूनीवार्ता से ही ली गई है. जिसे आप उसी दिन की तमाम साइट्स और अखबारों मे देख सकते हैं. साइट सर्च करते वक्त मुझे आपकी यह टिप्पणी दिखी जो मुझे उचित नहीं लगी तो मैंने शिष्टाचारवश यह स्वतःस्फूर्त प्रतिक्रिया व्यक्त की. कृपया मेरे शब्दों पर गौर करें (आपने जो उधार के कंटेट की बात लिखी है, वह महज एक भ्रम है. हम अपनी साइट पर दो न्यूज एजेंसियों तथा कुछ एंटरटेनमेंट एजेंसी तथा मुंबई स्थित हमारे कुछ विशेष संवाददाताओं की खबरें ही लेते हैं.) मुझे यह महज संभावना लगी कि शायद किसी ने इसे सर्च किया हो, मगर मेरी इस बात को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया है. आपकी इस एक प्रोफेशनल होने के नाते आप इन बातों की गंभीरता को समझ सकते हैं. इससे हमारी साइट की साख को तथा खुद संस्थान में मेरी छवि को नुकसान पहुंचा है. मैं आपसे अपेक्षा करूंगा कि http://www.watblog.com में आप इस पूरे प्रकरण में स्थिति को स्पष्ट करें.
दिनेश जी, कृपया यह विचार मन से निकाल दें कि मैंने आपके या आपके संस्थान के प्रति किसी दुर्भावना के अंतर्गत कुछ लिखा। वनइंडिया के संचालकों या इस साईट के किसी भी व्यक्ति से मेरा परिचय ही नहीं है तो दुराभाव का क्या सवाल होता। ब्लॉग लेखक के तौर पर मैं केवल एक whistle blower के रूप में अपनी जिम्मेवारी निभा रहा हूं, जिस बात से मुख्यधारा का मीडिया जी चुराता है। स्वयं मैं भी निरंतर, इंडीब्लॉगीज़ और पॉडभारती जैसी अनेक साईटें संचालित करता हूँ और ध्यान रखता हूँ कि नीतियाँ स्पष्ट रहें।
आपने कहीं भी “संभावना” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। आपकी टिप्पणी ऊपर अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकाशित है और जिसे “प्रोफेशनल” होने के नाते अपनी पोस्ट के अंत में स्पष्टिकरण के रूप में मैंने प्रकाशित भी किया। कृपया ये न सोचें कि जिम्मेवार लेखन केवल मुख्यधारा के मीडिया की बपौती है, मैंने जो भी लिखा जिम्मेवारी से लिखा और अपनी बात पर कायम हूँ। AOL से हुये आपकी संस्था के हालिया समझौते (जो कि मेरी मूल पोस्ट लिखने के बाद की घटना है) से यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि वनइंडिया पर इनआर्गेनिक रूप से बढ़त हासिल करने का कितना दबाव रहा होगा।
वनइंडिया ने वॉटब्लॉग पर ब्लॉग के Permalink बदल कर पोस्ट अपनी साईट पर फ्रेम पेजेस पर दिखाने और ब्लॉग को जोड़ने के पहले पूर्वनुमति लेने की बात पर लिखा है कि “Many of the blogs are submitted by the bloggers itself” और बड़े दंभ से यह कहा गया कि पर्मालिंक बदल कर ब्लॉग की गूगल रैंकिंग बढ़ाने में आप मदद कर रहे हैं। यह तर्क बेहद बेवकूफी भरा है।
रही बात समाचारों की तो मैंने अपनी पोस्ट पर जागरण पर भी छपे एक समाचार का हवाला देकर यह संशय भर प्रस्तुत किया था और सवालिया निशान लगाया था कि क्या ये सामग्री सिंडिकेटेड है? आपने स्पष्ट किया हाँ और यह मैंने अपनी पोस्ट को संपादित कर अपने पाठकों को स्पष्ट किया। आपका और मेरा पूर्ण संवाद इस पृष्ठ पर जस का तस प्रकाशित है, अब मेरे पाठक निर्णय लेंगे कि कौन सही और कौन गलत है।
आपकी संस्था को यह साधुवाद देना नहीं भूलना चाहता कि उन्होंने उठाये सवालों को गंभीरता से लिया और उनका जवाब दिया। मैं अपेक्षा करता हूं कि इसे constructive criticism मानते हुये अपनी नीतियों और कार्यकलाप में यथोचित बदलाव/सुधार करेंगे।
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद, मेरे ख्याल से आपकी टिप्पणी के बाद कि यह दुर्भावनावश नहीं था, बात काफी हद तक स्पष्ट हो जाती है. मुख्य बात यही है कि हम यहां कुछ साबित नहीं करना चाहते सिर्फ अपना आशय स्पष्ट करना चाहते हैं. जैसा कि मैंने पहले कहा कि मैंने स्वतःस्फूर्त ढंग से बस आपकी टिप्पणी पर जवाब भेजा था, मुझे लगा कि शायद यह गलती से हुआ हो और आपको उसी विशेष खबर पर यह आपत्ति हो, मैंने भी अपनी बात रखी थी, मगर यह नहीं पता था कि मुझे कहीं “कोट” किया जाएगा. मैं यह मान सकता हूं कि यह भ्रम कहीं मेरे लिखने के तरीके से आपके मन में उपजा हो मगर यह है एक भ्रम ही. दरअसल आपकी प्रथम टिप्पणी के क्रम में ही मैं दोबारा यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि दैट्स हिन्दी की खबरें न्यूज एजेंसियों तथा निजी संवाददाताओं के माध्यम से ही ली जाती हैं. आपके द्वारा इंगित खबर भी यूनीवार्ता से जारी हुई है. आशा है पुनः मेरे स्प्ष्टीकरण के बाद अब इस बिंदु पर आपको कोई शिकायत नहीं होगी और आप यह समझ सकते होंगे कि इस तकनीकी बहस के बीच watblog.com पर मेरी बात का गलत आशय चला गया है, जिसे कि आपने मेरी पिछली टिप्पणी के आधार पर ही “कोट” किया था, यदि आपको लगता है कि मेरा आशय स्पष्ट हो जाने के बाद आप watblog.com पर उसे स्पष्ट कर सकते हैं तो मुझे खुशी होगी. उम्मीद है कि आगे भी नुक्ताचीनी में दैट्स हिन्दी पर आपकी टिप्पणियां और सुझाव हमें मिलते रहेंगे.
शुक्रिया दिनेश! यह स्पष्टिकरण आप स्वयं वॉटब्लॉग पर दें तो बेहतर होगा क्योंकि मैंने वही उद्धत किया जो आपने लिखा। ब्लॉग की प्रविष्टि (यदि पासवर्ड प्रोटेक्ट न की जाय) और इस पर टिप्पणीयाँ सार्वजनिक होती हैं और चुंकि आप संस्था की ओर से लिख रहे हैं तो इसे आधिकारिक वक्तव्य मानने में मेरी कोई भूल नहीं है।
गूगल वाले जोड़ते हैं तो मूल कड़ी देते हैं। बिना मूल कड़ी दिए फ़्रेम में पन्ना दिखाना गूगल के खेल का नियम तो कतई नहीं है।
गूगल वाले पूरी सामग्री के बगल में विज्ञापन नहीं लगाते हैं। यह भी गूगल के खेल का नियम तो कतई नहीं है।
गूगल वाले मुख पृष्ठ पर पॉपप नहीं लगाते हैं – पर उसे छोड़ो, पहले दो नियमों के बारे में ही बात करते हैं!
पुनश्च – यह टिप्पणी पिछली बार दैट्स हिंदी पर जाने के समय पाई जानकारी पर आधारित है। इस वक़्त पन्ना खुल नहीं पाया इसलिए देख नहीं सका कि वास्तव में अब क्या हालत है।
दिनेश का स्पष्टीकरण निंतात लीपापोती है । कभी रामपुर ( उ०प्र०) गया है, आपसब में से कोई ? हकीम सुन्दरलाल की कई ” असली” शफ़ाखाने मिल जायेंगे, आपको ! ’ कमज़ोर क्यों रह्ते हो ?’ के विज्ञापनों में सभी जैन साहब असली ही हैं ! कुछ ऎसा ही माज़रा यहाँ भी है, लेकिन कुछ भी हो इससे हिंन्दी की महत्ता का मान बढ़ा ही है ! बनीबनायी लीक पकड़ने वाले को कुछ कहना ही बेकार है ।