क्या इलेक्ट्रिक वाहन मरम्मत के एकाधिकार की ओर बढ़ रहे हैं?

शुरुआती ईवी के विपरीत, नए मॉडलों में अक्सर सीलबंद बैटरी पैक होते हैं, जो मरम्मत और रीसाइक्लिंग रोक कर पर्यावरणीय चुनौतियां पैदा करते हैं।

आगे पढ़ें

कार-मुक्त शहरः भारत के लिए एक अधूरा सपना या एक स्थायी भविष्य?

क्या भारत के लिए कार-मुक्त भविष्य एक कल्पना है? यह लेख बेहतर सार्वजनिक परिवहन और बुनियादी ढांचे में बदलाव की आवश्यकता के मुद्दों पर चर्चा करती है।

आगे पढ़ें
Amazon Prime

नया ब्लॉग वर्गीकरण

क्षेत्रियता और विषय के आधार पर ब्लॉगों के वर्गीकरण तो होते रहते हैं, पहली बार देखा धर्म के नाम पर वर्गीकरण। गॉडब्लॉगकॉन क्रिस्तान ब्लॉगरों का पहला सम्मेलन है जो कथित रूप से इस समुदाय के ब्लॉगरों को एकजुट करेगा। एकजुट ही करना भाया, पृथकता से डर लगता है!

नासा और गूगल

खबर है कि नासा और गूगल अब मिल कर काम करेंगे, दोनों एक विशाल शोध केंद्र बनाने जा रहे हैं। क्या हमारे लालफीताशाह मुल्क में हम इसरो से यह उम्मीद कर सकते थे कभी?

पब्लिक सब जानती है

क्या गांगुली की कप्तानी २००५ के अंत तक टिकेगी? क्या राहुल गांधी २०१० में भारत के प्रधानमंत्री होंगे? ऐसे सवालों के जवाबों की उम्मीद तो अब तक तो हम बेजॉन दारूवाला जैसे लोगों से ही करते थे पर अब ये कयास वैज्ञानिक प्रयासों से काफी सच भी साबित हो सकते हैं। मेरे पसंदीदा चिट्ठाकारों में […]

बोले तो…

सिक्स अपार्ट २००६ में छोड़ने जा रहा है नया शगूफा, प्रोजेक्ट कॉमेट, जो कहते हैं कि लाईव जर्नल, टाईप पैड और मूवेबल टाईप का सम्मिश्रण है। अब यह कॉमेट कैसा होगा यह तो वो ही जाने पर म्हारे को तो जै याहू ३६० डिग्रीज़ जैसी ही बात लगे है। फीड के दीवानों के लिये एक […]

अब तो छोड़ो मोह!

हाल ही में हास्य कवि प्रदीप चौबे के दो‍ लाईना पर पुनः नज़र पड़ीः काहे के बड़े हैं, अगर दही में पड़े हैं। सत्ता को लालायित भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बारे में यह काफी सटीक वचन हैं। सत्ता से विछोह के बाद से उपरी तौर पर सुगठित दिखने वाले संगठन की अंदरूनी दरारें तो […]

मंगल पर दंगल

कहने को तो हम एक मुक्त समाज हैं, जहाँ हमें बोलने की मुकम्मल आज़ादी है पर यही आज़ादी बहस के नाम पर रोक टोक लगाने के भी काम आ जाती है। फिल्में तो ऐसे मामलों में ज्यादा प्रकाश में आती हैं। कभी आपत्ति फिल्म के टाईटल पर तो कभी एतराज़ कथानक या किरदार पर। आमिर […]